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कई बार खूब जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी अनुकूल परिणाम नहीं मिलते और इसके कारण भी समझ में नहीं आता। लगातार कोई न कोई परेशानी घेरे रहती है। वास्तु में कुछ ऐसे सरल उपाय बताए गए हैं जिनको अपनाकर आप अपने जीवन में परेशानियों को दूर कर सुख, समृद्धि एवं खुशियां ला सकते हैं।
- दिशाओं के साथ-साथ रंगों के चयन में ध्यान रखना चाहिए क्योंकि हर रंग का अपना महत्व है। घर में सदैव सौम्य एवं दिशाओं के अनुरूप रंग होने चाहिए। ऐसा करने से पंचतत्वों का संतुलन ठीक बना रहता है। जो आपकी सुख-समृद्धि में सहायक होगा।
- प्राकृतिक चित्र शांति प्रदान करते हैं और देवता, महापुरुषों के चित्र प्रेरणा देते हैं। इन्हें दक्षिण-पश्चिम में लगाना अच्छा होता है। शयन कक्ष में देवी-देवताओं के चित्र नहीं लगाने चाहिए।
- अतिथि और अविवाहित पुत्रियों का कमरा वायव्यकोण में होना चाहिए। क्योंकि यह स्थान वायु का है और वायु का स्वभाव है चलना। जिन लड़कियों के विवाह में विलम्ब हो रहा हो अथवा बाधा आ रही हो उन्हें इस दिशा के कमरे में रखना चाहिए। यदि दिशा दोष हो तो उसे दूर करना चाहिए।
- विवाहित अथवा नवदम्पत्ति के शयनकक्ष में बेड का सिरहाना पूर्व अथवा दक्षिण दिशा में होना चाहिए। जिन घरों में शयनकक्ष में सामने की ओर दरवाजा होता है वहां रोग अथवा क्लेश रहता है अर्थात सोते समय पैर दरवाजे की तरफ न रहें।
- पूर्व अथवा उत्तर की ओर मुख करके भोजन करने से आरोग्यता प्राप्त होती है। दक्षिण की ओर मुख करके भोजन करना शास्त्र सम्मत नहीं है।
- यदि घर के मुख्य द्वार पर सफेद रंग के गणेशजी की प्रतिमा लगा दी जाए तो अतिशुभ होता है। स्मरण रहे एक स्थान पर दो गणेश या दो शंख नहीं रखना चाहिए। सुख-समृद्धि के लिए सफेद रंग के पत्थर की और बाधा निवारण के लिए काले रंग के पत्थर की गणेशजी की प्रतिमा लगानी चाहिए।
- छत पर पानी की टंकी को पश्चिम अथवा भवन के नैऋत्य कोण के क्षेत्र में रखें। परन्तु ध्यान रहे पानी की टंकी को नैऋत्य कोण और ईशान कोण के सूत्र पर कदापि न रखें। आर्थिक हानि से बचने के लिए छत पर रखी हुई पानी की टंकी कभी भी ओवर फ्लो या टपकनी नहीं चाहि ।
- घर, बाथरूम और रसोई के पानी की निकासी के पाइप का मुहं उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व में होना वास्तु सम्मत माना गया है।
- वास्तु में दक्षिण-पूर्व कोण को आग्नेय कोण कहा गया है,क्योंकि इसका संबंध अग्नि-कोण से है। ज्वलनशील वस्तुएं जैसे ओवन, गैस चूल्हा आदि हमेशा आग्नेय कोण में ही होना चाहिए।
- लकड़ी का फर्नीचर सर्वथा उपयुक्त रहता है। जहां तक हो सके फर्नीचर में धातु या शीशे का प्रयोग कम से कम करना चाहिए।ऐसा करने से मित्रता,अपनेपन,शीतलता व बौद्धिक कुशलता का एहसास होता है।
कई बार खूब जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी अनुकूल परिणाम नहीं मिलते और इसके कारण भी समझ में नहीं आता। लगातार कोई न कोई परेशानी घेरे रहती है। वास्तु में कुछ ऐसे सरल उपाय बताए गए हैं जिनको अपनाकर आप अपने जीवन में परेशानियों को दूर कर सुख, समृद्धि एवं खुशियां ला सकते हैं।
- दिशाओं के साथ-साथ रंगों के चयन में ध्यान रखना चाहिए क्योंकि हर रंग का अपना महत्व है। घर में सदैव सौम्य एवं दिशाओं के अनुरूप रंग होने चाहिए। ऐसा करने से पंचतत्वों का संतुलन ठीक बना रहता है। जो आपकी सुख-समृद्धि में सहायक होगा।
- प्राकृतिक चित्र शांति प्रदान करते हैं और देवता, महापुरुषों के चित्र प्रेरणा देते हैं। इन्हें दक्षिण-पश्चिम में लगाना अच्छा होता है। शयन कक्ष में देवी-देवताओं के चित्र नहीं लगाने चाहिए।
- अतिथि और अविवाहित पुत्रियों का कमरा वायव्यकोण में होना चाहिए। क्योंकि यह स्थान वायु का है और वायु का स्वभाव है चलना। जिन लड़कियों के विवाह में विलम्ब हो रहा हो अथवा बाधा आ रही हो उन्हें इस दिशा के कमरे में रखना चाहिए। यदि दिशा दोष हो तो उसे दूर करना चाहिए।
- विवाहित अथवा नवदम्पत्ति के शयनकक्ष में बेड का सिरहाना पूर्व अथवा दक्षिण दिशा में होना चाहिए। जिन घरों में शयनकक्ष में सामने की ओर दरवाजा होता है वहां रोग अथवा क्लेश रहता है अर्थात सोते समय पैर दरवाजे की तरफ न रहें।
- पूर्व अथवा उत्तर की ओर मुख करके भोजन करने से आरोग्यता प्राप्त होती है। दक्षिण की ओर मुख करके भोजन करना शास्त्र सम्मत नहीं है।
- यदि घर के मुख्य द्वार पर सफेद रंग के गणेशजी की प्रतिमा लगा दी जाए तो अतिशुभ होता है। स्मरण रहे एक स्थान पर दो गणेश या दो शंख नहीं रखना चाहिए। सुख-समृद्धि के लिए सफेद रंग के पत्थर की और बाधा निवारण के लिए काले रंग के पत्थर की गणेशजी की प्रतिमा लगानी चाहिए।
- छत पर पानी की टंकी को पश्चिम अथवा भवन के नैऋत्य कोण के क्षेत्र में रखें। परन्तु ध्यान रहे पानी की टंकी को नैऋत्य कोण और ईशान कोण के सूत्र पर कदापि न रखें। आर्थिक हानि से बचने के लिए छत पर रखी हुई पानी की टंकी कभी भी ओवर फ्लो या टपकनी नहीं चाहि ।
- घर, बाथरूम और रसोई के पानी की निकासी के पाइप का मुहं उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व में होना वास्तु सम्मत माना गया है।
- वास्तु में दक्षिण-पूर्व कोण को आग्नेय कोण कहा गया है,क्योंकि इसका संबंध अग्नि-कोण से है। ज्वलनशील वस्तुएं जैसे ओवन, गैस चूल्हा आदि हमेशा आग्नेय कोण में ही होना चाहिए।
- लकड़ी का फर्नीचर सर्वथा उपयुक्त रहता है। जहां तक हो सके फर्नीचर में धातु या शीशे का प्रयोग कम से कम करना चाहिए।ऐसा करने से मित्रता,अपनेपन,शीतलता व बौद्धिक कुशलता का एहसास होता है।