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हाल के वर्षों में पाकिस्तान में नोटों की संख्या बढ़ती दिख रही है। 30 जून, 2020 को समाप्त वित्तीय वर्ष में, वहां पिछले आठ वर्षों में नोटों के चलन में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई है। केवल एक वित्तीय वर्ष में नोटों की संख्या में 1.1 ट्रिलियन की वृद्धि हुई है।
पाकिस्तान की आर्थिक गति पर नजर रखने वालों लोगों के अनुसार, यह वृद्धि असामान्य है और अर्थव्यवस्था पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उनका कहना है कि अगर नोटों की संख्या बढ़ी है तो इसका मतलब है कि सरकार ने पुराने नोटों को नए नोटों के साथ बदल दिया है। इसके अलावा बड़ी संख्या में नए नोटों की छपाई भी की है।
उनके अनुसार, बाजार में नोटों की आपूर्ति और मांग को संतुलित करने के लिए, नए नोटों को सामान्य रूप से छापा जाता है, जिससे कुछ वृद्धि होती है। लेकिन असाधारण वृद्धि का मतलब है कि बहुत सारे नोट छापे गए हैं।
पिछले साल पाकिस्तान में नोट छापने केपेपर बनाने वाली 'सिक्योरिटी पेपर्स लिमिटेड' के वित्तीय नतीजों में भी वृद्धि देखने को मिली है। पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनी के वित्तीय परिणामों के अनुसार, पिछले वित्त वर्ष में इसके लाभ में 60% से भी अधिक वृद्धि हुई है।
याद रहे कि पाकिस्तान में प्रचलन में रहे नोटों की संख्या में वृद्धि ऐसे समय में देखी जा रही है। जब ई-कॉमर्स और डिजिटल लेन देन का चलन भी बढ़ रहा है, खास तौर से ऑनलाइन बैंकिंग और डिजिटल लेन देन कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद बढ़ गया है।
वार्षिक आधार पर प्रचलन में रही मुद्रा में वृद्धि
पाकिस्तान में सेंट्रल बैंक की वेबसाइट पर पिछले आठ वित्तीय वर्षों में प्रचलन में रही मुद्रा के आंकड़ों की जानकारी मिलती है। उनके अनुसार, वित्त वर्ष 2012 के अंत में चलन में रही मुद्राओं की संख्या 1.73 ट्रिलियन थी जो अगले वर्ष बढ़कर 1.93 ट्रिलियन हो गई। वित्तीय वर्ष 2014 के अंत में, यह संख्या बढ़कर 2.17 ट्रिलियन हो गई, फिर अगले वर्ष यह संख्या 2.55 ट्रिलियन तक पहुंच गई।
वित्त वर्ष 2016 में चलन में रही मुद्राओं की संख्या में और भी वृद्धि हुई और यह 3.33 ट्रिलियन पर जा कर बंद हुई। अगले वर्ष यह बढ़कर 3.91 ट्रिलियन हो गई। वित्त वर्ष 2018 के अंत में, यह संख्या 4.38 ट्रिलियन तक पहुंच गई और अगले वर्ष इसमें बहुत अधिक वृद्धि देखने में आई, जो 4.95 ट्रिलियन के उच्च स्तर पर बंद हुई।
पिछले वित्तीय वर्ष 2020 में इसकी संख्या में असामान्य वृद्धि देखने में आई जब यह 6.14 के स्तर पर बंद हुई। एकेडी सिक्योरिटीज के हेड ऑफ रिसर्च फरीद आलम के अनुसार, पिछले वित्तीय वर्ष में होने वाली वृद्धि सबसे अधिक थी।
उन्होंने कहा कि पिछली सरकार की तुलना में वर्तमान सरकार में दोगुना वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि सरकार अधिक मुद्रा छाप रही है, जिसके कारण यह वृद्धि देखने में आ रही है।
वार्षिक आधार पर प्रचलन में रही मुद्रा में वृद्धि
पाकिस्तान में सेंट्रल बैंक की वेबसाइट पर पिछले आठ वित्तीय वर्षों में प्रचलन में रही मुद्रा के आंकड़ों की जानकारी मिलती है। उनके अनुसार, वित्त वर्ष 2012 के अंत में चलन में रही मुद्राओं की संख्या 1.73 ट्रिलियन थी जो अगले वर्ष बढ़कर 1.93 ट्रिलियन हो गई। वित्तीय वर्ष 2014 के अंत में, यह संख्या बढ़कर 2.17 ट्रिलियन हो गई, फिर अगले वर्ष यह संख्या 2.55 ट्रिलियन तक पहुंच गई।
वित्त वर्ष 2016 में चलन में रही मुद्राओं की संख्या में और भी वृद्धि हुई और यह 3.33 ट्रिलियन पर जा कर बंद हुई। अगले वर्ष यह बढ़कर 3.91 ट्रिलियन हो गई। वित्त वर्ष 2018 के अंत में, यह संख्या 4.38 ट्रिलियन तक पहुंच गई और अगले वर्ष इसमें बहुत अधिक वृद्धि देखने में आई, जो 4.95 ट्रिलियन के उच्च स्तर पर बंद हुई।
पिछले वित्तीय वर्ष 2020 में इसकी संख्या में असामान्य वृद्धि देखने में आई जब यह 6.14 के स्तर पर बंद हुई। एकेडी सिक्योरिटीज के हेड ऑफ रिसर्च फरीद आलम के अनुसार, पिछले वित्तीय वर्ष में होने वाली वृद्धि सबसे अधिक थी। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार की तुलना में वर्तमान सरकार में दोगुना वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि सरकार अधिक मुद्रा छाप रही है, जिसके कारण यह वृद्धि देखने में आ रही है।
नोटों की छपाई से मुद्रास्फीति में कैसे वृद्धि होती है
बड़ी संख्या में नोट छापने से मुद्रास्फीति यानी महंगाई में वृद्धि होती है। विश्लेषक सना तौफीक का कहना है कि अधिक नोट छापने का मतलब है कि लोगों के पास ज्यादा पैसा आ रहा है। इससे उनकी क्रय शक्ति बढ़ रही है और वो ज्यादा पैसा खर्च करेंगे तो, यह चीजों की कीमतों के साथ-साथ मुद्रास्फीति दर में भी वृद्धि करता है।
वो बताती हैं कि इस तरह की मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों को बढ़ाया जाता है।
डॉक्टर कैसर बंगाली ने बताया कि वर्तमान सरकार के पहले दो वर्षों में आपूर्ति की समस्याओं के कारण मुद्रास्फीति बढ़ी है। हालांकि प्रचलित मुद्रा में बहुत अधिक वृद्धि से, मांग के लिहाज से भी मुद्रास्फीति में वृद्धि का खतरा है।
नोटों की संख्या में वृद्धि के नकारात्मक प्रभाव क्या होते हैं?
करंसी नोटों की संख्या में वृद्धि के नकारात्मक प्रभावों के बारे में बात करते हुए विश्लेषक सना तौफीक ने कहा कि ये वृद्धि कालाबाजारी को बढ़ाती है। उन्होंने कहा,"अगर बड़ी संख्या में नोट छप कर जा रहे हैं, तो इसका मतलब है कि लोग बैंक में जमा करने के बजाय नकदी के रूप में अपने पैसे को बचा रहे हैं। इसे गैर आधिकारिक या ब्लैक इकॉनमी कहा जाता है।"
इमरान खान को घेरने के लिए पाकिस्तान का विपक्ष लामबंद उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में करेंसी नोटों की छपाई से तस्करी और मनी लॉन्ड्रिंग भी बढ़ती है।
वो कहती हैं,"इसका मतलब है कि लोग बैंकों के बजाय पैसा अपने पास रख रहे हैं और यह वही पैसा होता है जो अवैध रूप से स्थानांतरित किया जाता है।" उन्होंने कहा कि अधिक करंसी नोट नकदी जमाखोरी का जरिया बनता है और पैसे को चंद हाथों तक सीमित करता है।
हाल के वर्षों में पाकिस्तान में नोटों की संख्या बढ़ती दिख रही है। 30 जून, 2020 को समाप्त वित्तीय वर्ष में, वहां पिछले आठ वर्षों में नोटों के चलन में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई है। केवल एक वित्तीय वर्ष में नोटों की संख्या में 1.1 ट्रिलियन की वृद्धि हुई है।
पाकिस्तान की आर्थिक गति पर नजर रखने वालों लोगों के अनुसार, यह वृद्धि असामान्य है और अर्थव्यवस्था पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। उनका कहना है कि अगर नोटों की संख्या बढ़ी है तो इसका मतलब है कि सरकार ने पुराने नोटों को नए नोटों के साथ बदल दिया है। इसके अलावा बड़ी संख्या में नए नोटों की छपाई भी की है।
उनके अनुसार, बाजार में नोटों की आपूर्ति और मांग को संतुलित करने के लिए, नए नोटों को सामान्य रूप से छापा जाता है, जिससे कुछ वृद्धि होती है। लेकिन असाधारण वृद्धि का मतलब है कि बहुत सारे नोट छापे गए हैं।
पिछले साल पाकिस्तान में नोट छापने केपेपर बनाने वाली 'सिक्योरिटी पेपर्स लिमिटेड' के वित्तीय नतीजों में भी वृद्धि देखने को मिली है। पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनी के वित्तीय परिणामों के अनुसार, पिछले वित्त वर्ष में इसके लाभ में 60% से भी अधिक वृद्धि हुई है।
याद रहे कि पाकिस्तान में प्रचलन में रहे नोटों की संख्या में वृद्धि ऐसे समय में देखी जा रही है। जब ई-कॉमर्स और डिजिटल लेन देन का चलन भी बढ़ रहा है, खास तौर से ऑनलाइन बैंकिंग और डिजिटल लेन देन कोरोना वायरस के प्रकोप के बाद बढ़ गया है।
वार्षिक आधार पर प्रचलन में रही मुद्रा में वृद्धि
पाकिस्तान में सेंट्रल बैंक की वेबसाइट पर पिछले आठ वित्तीय वर्षों में प्रचलन में रही मुद्रा के आंकड़ों की जानकारी मिलती है। उनके अनुसार, वित्त वर्ष 2012 के अंत में चलन में रही मुद्राओं की संख्या 1.73 ट्रिलियन थी जो अगले वर्ष बढ़कर 1.93 ट्रिलियन हो गई। वित्तीय वर्ष 2014 के अंत में, यह संख्या बढ़कर 2.17 ट्रिलियन हो गई, फिर अगले वर्ष यह संख्या 2.55 ट्रिलियन तक पहुंच गई।
वित्त वर्ष 2016 में चलन में रही मुद्राओं की संख्या में और भी वृद्धि हुई और यह 3.33 ट्रिलियन पर जा कर बंद हुई। अगले वर्ष यह बढ़कर 3.91 ट्रिलियन हो गई। वित्त वर्ष 2018 के अंत में, यह संख्या 4.38 ट्रिलियन तक पहुंच गई और अगले वर्ष इसमें बहुत अधिक वृद्धि देखने में आई, जो 4.95 ट्रिलियन के उच्च स्तर पर बंद हुई।
पिछले वित्तीय वर्ष 2020 में इसकी संख्या में असामान्य वृद्धि देखने में आई जब यह 6.14 के स्तर पर बंद हुई। एकेडी सिक्योरिटीज के हेड ऑफ रिसर्च फरीद आलम के अनुसार, पिछले वित्तीय वर्ष में होने वाली वृद्धि सबसे अधिक थी।
उन्होंने कहा कि पिछली सरकार की तुलना में वर्तमान सरकार में दोगुना वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि सरकार अधिक मुद्रा छाप रही है, जिसके कारण यह वृद्धि देखने में आ रही है।
वार्षिक आधार पर प्रचलन में रही मुद्रा में वृद्धि
पाकिस्तान में सेंट्रल बैंक की वेबसाइट पर पिछले आठ वित्तीय वर्षों में प्रचलन में रही मुद्रा के आंकड़ों की जानकारी मिलती है। उनके अनुसार, वित्त वर्ष 2012 के अंत में चलन में रही मुद्राओं की संख्या 1.73 ट्रिलियन थी जो अगले वर्ष बढ़कर 1.93 ट्रिलियन हो गई। वित्तीय वर्ष 2014 के अंत में, यह संख्या बढ़कर 2.17 ट्रिलियन हो गई, फिर अगले वर्ष यह संख्या 2.55 ट्रिलियन तक पहुंच गई।
वित्त वर्ष 2016 में चलन में रही मुद्राओं की संख्या में और भी वृद्धि हुई और यह 3.33 ट्रिलियन पर जा कर बंद हुई। अगले वर्ष यह बढ़कर 3.91 ट्रिलियन हो गई। वित्त वर्ष 2018 के अंत में, यह संख्या 4.38 ट्रिलियन तक पहुंच गई और अगले वर्ष इसमें बहुत अधिक वृद्धि देखने में आई, जो 4.95 ट्रिलियन के उच्च स्तर पर बंद हुई।
पिछले वित्तीय वर्ष 2020 में इसकी संख्या में असामान्य वृद्धि देखने में आई जब यह 6.14 के स्तर पर बंद हुई। एकेडी सिक्योरिटीज के हेड ऑफ रिसर्च फरीद आलम के अनुसार, पिछले वित्तीय वर्ष में होने वाली वृद्धि सबसे अधिक थी। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार की तुलना में वर्तमान सरकार में दोगुना वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि सरकार अधिक मुद्रा छाप रही है, जिसके कारण यह वृद्धि देखने में आ रही है।
नोटों की छपाई से मुद्रास्फीति में कैसे वृद्धि होती है
बड़ी संख्या में नोट छापने से मुद्रास्फीति यानी महंगाई में वृद्धि होती है। विश्लेषक सना तौफीक का कहना है कि अधिक नोट छापने का मतलब है कि लोगों के पास ज्यादा पैसा आ रहा है। इससे उनकी क्रय शक्ति बढ़ रही है और वो ज्यादा पैसा खर्च करेंगे तो, यह चीजों की कीमतों के साथ-साथ मुद्रास्फीति दर में भी वृद्धि करता है।
वो बताती हैं कि इस तरह की मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों को बढ़ाया जाता है।
डॉक्टर कैसर बंगाली ने बताया कि वर्तमान सरकार के पहले दो वर्षों में आपूर्ति की समस्याओं के कारण मुद्रास्फीति बढ़ी है। हालांकि प्रचलित मुद्रा में बहुत अधिक वृद्धि से, मांग के लिहाज से भी मुद्रास्फीति में वृद्धि का खतरा है।
नोटों की संख्या में वृद्धि के नकारात्मक प्रभाव क्या होते हैं?
करंसी नोटों की संख्या में वृद्धि के नकारात्मक प्रभावों के बारे में बात करते हुए विश्लेषक सना तौफीक ने कहा कि ये वृद्धि कालाबाजारी को बढ़ाती है। उन्होंने कहा,"अगर बड़ी संख्या में नोट छप कर जा रहे हैं, तो इसका मतलब है कि लोग बैंक में जमा करने के बजाय नकदी के रूप में अपने पैसे को बचा रहे हैं। इसे गैर आधिकारिक या ब्लैक इकॉनमी कहा जाता है।"
इमरान खान को घेरने के लिए पाकिस्तान का विपक्ष लामबंद उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में करेंसी नोटों की छपाई से तस्करी और मनी लॉन्ड्रिंग भी बढ़ती है।
वो कहती हैं,"इसका मतलब है कि लोग बैंकों के बजाय पैसा अपने पास रख रहे हैं और यह वही पैसा होता है जो अवैध रूप से स्थानांतरित किया जाता है।" उन्होंने कहा कि अधिक करंसी नोट नकदी जमाखोरी का जरिया बनता है और पैसे को चंद हाथों तक सीमित करता है।