आखिरकार राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद का हल सुप्रीम कोर्ट ने निकाल दिया। विवाद का हल इससे बेहतर विवाद नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अब दोनों समुदायों सहर्ष स्वीकार कर भारत के भविष्य निर्माण में लग जाए। हम यह नहीं कह सकते है कि सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला सिर्फ आस्था के आधार पर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने तमाम साक्ष्यों, इतिहास और आस्था के आधार पर राम जन्मभूमि पर अपना फैसला सुनाया है। इसमें किसी भी पक्ष को अपनी हार औऱ जीत नहीं समझना चाहिए।
मुस्लिम स्कॉलर केके महमूद ने विवादित स्थल को हिंदू मंदिर माना
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट को भी अपने फैसले में आधार बनाया है। दिलचस्प बात यह है कि विवादित स्थल की खुदाई करने वाली भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम में मुस्लिम पुरात्तत्वविद विद्वान भी शामिल रहे हैं।
बता दें कि 1976-77 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम ने विवादित स्थल का जाकर अध्ययन किया था। उस समय टीम में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पढ़े और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में निदेशक रहे केके महमूद शामिल थे। 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने दुबारा विवादित स्थल की खुदाई की। उस टीम में भी केके महमूद समेत तीन मुस्लिम सदस्य थे।
दरअसल, केके महमूद ने मस्जिद के नीचे मंदिर होने की रिपोर्ट दी थी। उन्होंने कहा था कि मस्जिद से पहले यहां मंदिर था और विवादित स्थल पर दसवीं शताब्दी में एक मंदिर मौजूद था। महमूद ने पुरात्तात्विक सबूत के साथ सत्रहवीं और अठाहरवीं शताब्दी में भारत आए विलियम फिंच और जोजफ टेफिनथलर का भी हवाला भी दिया जिन्होंने विवादित स्थल पर पूजा की बात की थी। महमूद के अनुसार अबू फजल का आइन-ए-अकबरी ने भी विवादित स्थल पर भगवान राम की पूजा का उल्लेख किया है।
जैसे मुस्लिमों का मक्का-मदीना, सिखों के लिए ननकाना साहिब वैसे हिंदुओं के लिए अयोध्या
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से एक बड़ा विवाद खत्म हो गया है। हिंदू और मुस्लिम समुदाय आपस में आए वैमनस्य को खत्म करें। एक दूसरे को शक की निगाह से देखना बंद करें। इस मुल्क पर सैकड़ों वर्ष मुसलमानों ने राज किया। लेकिन सामाजिक सौहार्द बना रहा। भारतीय सूफी परंपरा इसका उदाहरण है।
सूफियों को संरक्षण मुस्लिम शासकों से मिला, इनके भक्त बहुसंख्यक हिंदू रहे। मुस्लिम सूफियों ने राम और कृष्ण की भक्ति की। मलिक मोहम्मद जायसी से लेकर रसखान इसके उदाहरण हैं। भारतीय उपमहादीप निजामुद्दीन औलिया, शेख सलीम चिश्ती, ख्वाजा मोउनुद्दीन चिश्ती, बुल्लेशाह, फरीद की परंपरा के लिए जाना जाता रहा है। यह भारतीय सूफी परंपरा है, जिसने हिंदुओं और मुसलमानों को जोड़ा।
हालांकि पिछले चालीस सालों में इस मुल्क के अंदर हिंदुंओ और मुसलमानों के आपसी संबधों मे खासी गिरावट आई है। जबकि दोनों समुदाय की मूल समस्या गरीबी, बेरोजगारी और भूखमरी है। खुशी की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देश के अल्पसंख्यक समुदाय ने दिल से स्वीकार किया है। आशंका थी कि फैसले के बाद एक बार फिर तनाव बढ़ेगा, और कई लोगों की राजनीति चमकेगी। लेकिन दोनों तरफ के समुदायो ने फैसले के बाद बहुत ही अच्छा व्यववहार दिखाया है।
सऊदी अरब और पाकिस्तान से सबक ले भारत के हिंदू और मुसलमान
दरअसल, इस देश के मुस्लिम और हिंदुओं दोनों को समझना होगा कि उनके बच्चों का भविष्य उनके हाथों मे है। यह दोनों समुदायों ने फैसला करना है कि वे अपने बच्चों को कट्टरपंथियों के हवाले करना चाहते हैं या एक उज्जवल भविष्य देना चाहते हैं। सारी दुनिया बदल रही है।
किसी जमाने में कटटरपंथियों को भारी आर्थिक मदद देने वाला सऊदी अरब आज बदल रहा है। उस मुल्क में महिलाओं को अधिकार दिए जा रहे हैं। वहां देश के विकास के लिए नई योजनाएं बनाई जा रही हैं। पड़ोसी पाकिस्तान एक उदाहरण है, जहां कट्टरपंथियों और जेहादियों ने पिछले 15 सालों में लगभग 1 लाख मुसलमानों की जान ले ली है।
हिंदुओं को भी पाकिस्तान से सीख लेने की जरूरत है। अगर वो हिंदू स्टेट बनाने की सोच रहे हैं, तो पाकिस्तान की तरफ एक नजर जरूर डालें जो अपने आप को इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान कहता हैं। जैसे पाकिस्तान में कट्टर जेहादी आतंकी संगठनों ने अपने ही मुसलमानों को निशाना बनाया वैसे ही हिंदू कट्टरपंथ अपने ही समुदाय को निशाना भविष्य में बनाएंगे।
पाकिस्तान में जेहादियों ने उन लीडरों को भी निशाना बनाया जिन्होंने किसी समय में उन्हें संरक्षण दिया था। कट्टरपंथ और जेहाद ने पाकिस्तान को कहीं का नहीं छोड़ा।
आज देश चलाने के लिए पाकिस्तानी लीडरशीप विदेशों में पैसा मांगती फिरती है। आज इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान को भी बदलना पड़ रहा है। जेहाद ने पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को 123 अरब डॉलर का नुकसान पहुंचाया। आज पाकिस्तान अपने आर्थिक विकास के लिए, धार्मिक पर्यटन के विकास के लिए सिख गुरुओं से संबंधित धर्मस्थली का विकास करने की योजना बना रहा है। करतारपुर इसका उदाहरण है।
बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य देश की मख्य समस्या
दोनों समुदाय के बीच बनी खाई को पाटने के लिए सोच में बदलाव लाना होगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हिंदुओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण राम जन्म भूमि हिंदुओं को मिल गया है। अब हिंदू संगठन अपने बाकी धर्मस्थलों के दावों को छोड़ देश के विकास का खाका तैयार करे। देश की आर्थिक हालत खराब है। विकास दर नीचे जा रही है। देश के बैंकों की हालत खराब है। उद्योग धंधे चौपट हो रहे हैं।
पिछले पांच सालों में 90 लाख रोजगार प्राप्त लोग बेरोजगार हो गए हैं। शहरों में बेरोजगार युवा अब गांवों में मनरेगा में जाकर अपना पंजीकरण करा रहे हैं। गांवों मे किसान आत्महत्या कर रहे हैं। अगर भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना चाहते हैं तो भविष्य में मंदिर-मस्जिद और हिंदू मुस्लिम विवाद से दूर रहना होगा। अगर इसी तरह का माहौल रहा तो भविष्य में भारत में बड़ा निवेशक आने से डरेगा। आज पाकिस्तान मे बाहरी निवेशक आने से डरते हैं।
भारत में इस्लामिक शासन को कट्टर नजरिए से न देखे हिंदू
हमें इतिहास के अच्छी चीजों का गहन अध्ययन करना होगा। इस देश के बहुसंख्यक हिंदू इस्लामिक काल को शक के नजरिए से न देखें। वो इस्लामिक काल और खासकर मुगलों के काल का तार्किक अध्ययन करें। मीरबाकी और बाबरी मस्जिद के आधार पर मुगलों का मूल्यांकन न करें।
हिंदू मुगलकाल की बुराइयों को सिर्फ न देखे। बहुत अच्छे काम भी इस मुगल काल में हुए। यह सच्चाई है कि इस्लामिक युग में हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया। एक दूसरी सच्चाई भी है कि मुगल शासकों ने हिंदू मदिरों को दान भी दिया।
औरंगजेब कट्टर था, लेकिन उसी के कार्यकाल में बिहार के बोधगया स्थित शैव मठ को एक बड़ी जमींदारी मिली। यही नहीं कई और हिंदू मंदिरों को भी औरंगजेब ने दान दिए। औरंगजेब के दरबार में महत्वपूर्ण मंत्रियों में हिंदू समुदाय के लोग भी थे। अब इससे आगे बढ़िए।
इतिहास बताता है कि मुगल काल में विश्व अर्थव्यवस्था की कुल जीडीपी में भारत का योगदान 25 प्रतिशत था। मुगल काल में सिर्फ पचास साल के अंदर चीन की जीडीपी को भारत ने पछाड़ दिया था। जबकि आज चीन के सामने हम कहां है। 1980 के आसपास भारत और चीन का जीडीपी लगभग बराबर था।
आज चीन का जीडीपी भारत से पांच गुणा ज्यादा बड़ा है, क्योंकि 1980 के बाद भारत के लोग और मंदिर और मस्जिद के विवाद में लग गए। एक अल्लाह ओ अकबर का नारा लगा रहा था तो एक जय श्री राम का नारा लगा रहा था। दूसरी तरफ चीन तेज गति से अपना तेज आर्थिक करने में लग गया।
विकास की नई योजना वहां लागू की गई। बड़ी बड़ी सड़कों और रेलवे लाइन का जाल बिछा दिया गया। दुनिया भर के निवेशक चीन मे जाकर मैनुफैक्चरिंग प्लांट खोलने लगे। चीन दुनिया का बड़ा निर्यातक देश बन गया। चीन की अर्थव्यवस्था 14 ट्रिलियन डालर की हो गई, जबकि भारत की अर्थव्यवस्था मात्र 2.75 ट्रिलियन डालर तक पहुंची।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
आखिरकार राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद का हल सुप्रीम कोर्ट ने निकाल दिया। विवाद का हल इससे बेहतर विवाद नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अब दोनों समुदायों सहर्ष स्वीकार कर भारत के भविष्य निर्माण में लग जाए। हम यह नहीं कह सकते है कि सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला सिर्फ आस्था के आधार पर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने तमाम साक्ष्यों, इतिहास और आस्था के आधार पर राम जन्मभूमि पर अपना फैसला सुनाया है। इसमें किसी भी पक्ष को अपनी हार औऱ जीत नहीं समझना चाहिए।
मुस्लिम स्कॉलर केके महमूद ने विवादित स्थल को हिंदू मंदिर माना
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट को भी अपने फैसले में आधार बनाया है। दिलचस्प बात यह है कि विवादित स्थल की खुदाई करने वाली भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम में मुस्लिम पुरात्तत्वविद विद्वान भी शामिल रहे हैं।
बता दें कि 1976-77 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम ने विवादित स्थल का जाकर अध्ययन किया था। उस समय टीम में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पढ़े और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में निदेशक रहे केके महमूद शामिल थे। 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने दुबारा विवादित स्थल की खुदाई की। उस टीम में भी केके महमूद समेत तीन मुस्लिम सदस्य थे।
दरअसल, केके महमूद ने मस्जिद के नीचे मंदिर होने की रिपोर्ट दी थी। उन्होंने कहा था कि मस्जिद से पहले यहां मंदिर था और विवादित स्थल पर दसवीं शताब्दी में एक मंदिर मौजूद था। महमूद ने पुरात्तात्विक सबूत के साथ सत्रहवीं और अठाहरवीं शताब्दी में भारत आए विलियम फिंच और जोजफ टेफिनथलर का भी हवाला भी दिया जिन्होंने विवादित स्थल पर पूजा की बात की थी। महमूद के अनुसार अबू फजल का आइन-ए-अकबरी ने भी विवादित स्थल पर भगवान राम की पूजा का उल्लेख किया है।
जैसे मुस्लिमों का मक्का-मदीना, सिखों के लिए ननकाना साहिब वैसे हिंदुओं के लिए अयोध्या
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से एक बड़ा विवाद खत्म हो गया है। हिंदू और मुस्लिम समुदाय आपस में आए वैमनस्य को खत्म करें। एक दूसरे को शक की निगाह से देखना बंद करें। इस मुल्क पर सैकड़ों वर्ष मुसलमानों ने राज किया। लेकिन सामाजिक सौहार्द बना रहा। भारतीय सूफी परंपरा इसका उदाहरण है।
सूफियों को संरक्षण मुस्लिम शासकों से मिला, इनके भक्त बहुसंख्यक हिंदू रहे। मुस्लिम सूफियों ने राम और कृष्ण की भक्ति की। मलिक मोहम्मद जायसी से लेकर रसखान इसके उदाहरण हैं। भारतीय उपमहादीप निजामुद्दीन औलिया, शेख सलीम चिश्ती, ख्वाजा मोउनुद्दीन चिश्ती, बुल्लेशाह, फरीद की परंपरा के लिए जाना जाता रहा है। यह भारतीय सूफी परंपरा है, जिसने हिंदुओं और मुसलमानों को जोड़ा।
हालांकि पिछले चालीस सालों में इस मुल्क के अंदर हिंदुंओ और मुसलमानों के आपसी संबधों मे खासी गिरावट आई है। जबकि दोनों समुदाय की मूल समस्या गरीबी, बेरोजगारी और भूखमरी है। खुशी की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को देश के अल्पसंख्यक समुदाय ने दिल से स्वीकार किया है। आशंका थी कि फैसले के बाद एक बार फिर तनाव बढ़ेगा, और कई लोगों की राजनीति चमकेगी। लेकिन दोनों तरफ के समुदायो ने फैसले के बाद बहुत ही अच्छा व्यववहार दिखाया है।
अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसले पर हर भारतीय ने परिपक्व दृष्टि दिखाई।
- फोटो : Amar Ujala
सऊदी अरब और पाकिस्तान से सबक ले भारत के हिंदू और मुसलमान
दरअसल, इस देश के मुस्लिम और हिंदुओं दोनों को समझना होगा कि उनके बच्चों का भविष्य उनके हाथों मे है। यह दोनों समुदायों ने फैसला करना है कि वे अपने बच्चों को कट्टरपंथियों के हवाले करना चाहते हैं या एक उज्जवल भविष्य देना चाहते हैं। सारी दुनिया बदल रही है।
किसी जमाने में कटटरपंथियों को भारी आर्थिक मदद देने वाला सऊदी अरब आज बदल रहा है। उस मुल्क में महिलाओं को अधिकार दिए जा रहे हैं। वहां देश के विकास के लिए नई योजनाएं बनाई जा रही हैं। पड़ोसी पाकिस्तान एक उदाहरण है, जहां कट्टरपंथियों और जेहादियों ने पिछले 15 सालों में लगभग 1 लाख मुसलमानों की जान ले ली है।
हिंदुओं को भी पाकिस्तान से सीख लेने की जरूरत है। अगर वो हिंदू स्टेट बनाने की सोच रहे हैं, तो पाकिस्तान की तरफ एक नजर जरूर डालें जो अपने आप को इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान कहता हैं। जैसे पाकिस्तान में कट्टर जेहादी आतंकी संगठनों ने अपने ही मुसलमानों को निशाना बनाया वैसे ही हिंदू कट्टरपंथ अपने ही समुदाय को निशाना भविष्य में बनाएंगे।
पाकिस्तान में जेहादियों ने उन लीडरों को भी निशाना बनाया जिन्होंने किसी समय में उन्हें संरक्षण दिया था। कट्टरपंथ और जेहाद ने पाकिस्तान को कहीं का नहीं छोड़ा।
आज देश चलाने के लिए पाकिस्तानी लीडरशीप विदेशों में पैसा मांगती फिरती है। आज इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान को भी बदलना पड़ रहा है। जेहाद ने पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को 123 अरब डॉलर का नुकसान पहुंचाया। आज पाकिस्तान अपने आर्थिक विकास के लिए, धार्मिक पर्यटन के विकास के लिए सिख गुरुओं से संबंधित धर्मस्थली का विकास करने की योजना बना रहा है। करतारपुर इसका उदाहरण है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सभी ने स्वीकार किया।
- फोटो : सोशल मीडिया
बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य देश की मख्य समस्या
दोनों समुदाय के बीच बनी खाई को पाटने के लिए सोच में बदलाव लाना होगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हिंदुओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण राम जन्म भूमि हिंदुओं को मिल गया है। अब हिंदू संगठन अपने बाकी धर्मस्थलों के दावों को छोड़ देश के विकास का खाका तैयार करे। देश की आर्थिक हालत खराब है। विकास दर नीचे जा रही है। देश के बैंकों की हालत खराब है। उद्योग धंधे चौपट हो रहे हैं।
पिछले पांच सालों में 90 लाख रोजगार प्राप्त लोग बेरोजगार हो गए हैं। शहरों में बेरोजगार युवा अब गांवों में मनरेगा में जाकर अपना पंजीकरण करा रहे हैं। गांवों मे किसान आत्महत्या कर रहे हैं। अगर भारत को पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना चाहते हैं तो भविष्य में मंदिर-मस्जिद और हिंदू मुस्लिम विवाद से दूर रहना होगा। अगर इसी तरह का माहौल रहा तो भविष्य में भारत में बड़ा निवेशक आने से डरेगा। आज पाकिस्तान मे बाहरी निवेशक आने से डरते हैं।
भारत में इस्लामिक शासन को कट्टर नजरिए से न देखे हिंदू
हमें इतिहास के अच्छी चीजों का गहन अध्ययन करना होगा। इस देश के बहुसंख्यक हिंदू इस्लामिक काल को शक के नजरिए से न देखें। वो इस्लामिक काल और खासकर मुगलों के काल का तार्किक अध्ययन करें। मीरबाकी और बाबरी मस्जिद के आधार पर मुगलों का मूल्यांकन न करें।
हिंदू मुगलकाल की बुराइयों को सिर्फ न देखे। बहुत अच्छे काम भी इस मुगल काल में हुए। यह सच्चाई है कि इस्लामिक युग में हिंदू मंदिरों को तोड़ा गया। एक दूसरी सच्चाई भी है कि मुगल शासकों ने हिंदू मदिरों को दान भी दिया।
औरंगजेब कट्टर था, लेकिन उसी के कार्यकाल में बिहार के बोधगया स्थित शैव मठ को एक बड़ी जमींदारी मिली। यही नहीं कई और हिंदू मंदिरों को भी औरंगजेब ने दान दिए। औरंगजेब के दरबार में महत्वपूर्ण मंत्रियों में हिंदू समुदाय के लोग भी थे। अब इससे आगे बढ़िए।
इतिहास बताता है कि मुगल काल में विश्व अर्थव्यवस्था की कुल जीडीपी में भारत का योगदान 25 प्रतिशत था। मुगल काल में सिर्फ पचास साल के अंदर चीन की जीडीपी को भारत ने पछाड़ दिया था। जबकि आज चीन के सामने हम कहां है। 1980 के आसपास भारत और चीन का जीडीपी लगभग बराबर था।
आज चीन का जीडीपी भारत से पांच गुणा ज्यादा बड़ा है, क्योंकि 1980 के बाद भारत के लोग और मंदिर और मस्जिद के विवाद में लग गए। एक अल्लाह ओ अकबर का नारा लगा रहा था तो एक जय श्री राम का नारा लगा रहा था। दूसरी तरफ चीन तेज गति से अपना तेज आर्थिक करने में लग गया।
विकास की नई योजना वहां लागू की गई। बड़ी बड़ी सड़कों और रेलवे लाइन का जाल बिछा दिया गया। दुनिया भर के निवेशक चीन मे जाकर मैनुफैक्चरिंग प्लांट खोलने लगे। चीन दुनिया का बड़ा निर्यातक देश बन गया। चीन की अर्थव्यवस्था 14 ट्रिलियन डालर की हो गई, जबकि भारत की अर्थव्यवस्था मात्र 2.75 ट्रिलियन डालर तक पहुंची।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।