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देश में कोविड-19 से संक्रमित लोगों की संख्या 91.39 लाख पार कर चुकी है और 1.33 लाख से ज्यादा लोगों को इस वायरस के कारण जान गंवानी पड़ी है। दिल्ली में, जहां मैं रहती हूं, हाल के दिनों में संक्रमितों के नए मामलों और मौतों में खतरनाक बढ़ोतरी दिखाई पड़ी है। दिल्ली के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, केरल, गोवा और राजस्थान अब कोविड-19 के नए हॉट स्पॉट हैं। इस धरती के हर दूसरे व्यक्ति की तरह मैं भी वैक्सीन के बारे में अच्छी खबर सुनने के लिए बेताब हूं, जो इस नए वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रदान कर सके, जिसने हमारे जीवन को हिलाकर रख दिया है, प्रियजनों को हमसे छीन लिया है और पिछले एक साल में हममें से कइयों को घरों में बंद कर दिया है। बहरहाल, वैक्सीन के मोर्चे पर एक अच्छी खबर है। यदि सब कुछ ठीक रहा, तो अगले वर्ष देश में व्यापक टीकाकरण अभियान शुरू होने की संभावना है। लेकिन मैं सावधानीपूर्वक आशावादी हूं, क्योंकि अच्छी खबर के साथ कई किंतु-परंतु आते हैं और अब भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
वैक्सीन का उत्पादन एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें मानक प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है और जिसमें आम तौर पर कई वर्ष लग जाते हैं। मानवेतर प्राणियों जैसे बंदर, लंगूर आदि में प्री-क्लिनिकल परीक्षण किए जाते हैं, ताकि यह देखा जा सके कि वैक्सीन का मनुष्यों पर परीक्षण किया जाए या नहीं। सुरक्षा और खुराक की जांच के लिए पहले चरण का परीक्षण सीमित लोगों पर किया जाता है। सुरक्षा और प्रभावशीलता की जांच के लिए दूसरे चरण का परीक्षण लोगों के व्यापक समूहों पर किया जाता है। अब हम उन वैक्सीनों के नतीजे देख रहे हैं, जो दौड़ में सबसे आगे रहीं और फिलहाल परीक्षण के तीसरे चरण में हैं। यह असाधारण समय है और यह जानकर प्रसन्नता होती है कि दुनिया भर में कई वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल के शुरुआती चरणों में हैं। यह भारत में टीकाकरण की संभावनाओं के बारे में सकारात्मक बने रहने का कारण है। लेकिन अभी हम लक्ष्य के करीब नहीं पहुंचे हैं, और जब तक हम वहां नहीं पहुंचते, तब तक हमें सामाजिक दूरी बनाए रखनी चाहिए, मास्क पहनना चाहिए और हरसंभव सावधानी बरतनी चाहिए।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने हाल ही में बताया कि स्थानीय तौर पर विकसित एक वैक्सीन का अंतिम परीक्षण एक या दो महीने में पूरा हो सकता है। इससे दुनिया के दूसरे सबसे अधिक संक्रमण वाले देश में तेजी से टीकाकरण की उम्मीद बढ़ रही है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और निजी कंपनी भारत बायोटेक ने इस महीने कोवैक्सीन के तीसरे चरण का परीक्षण शुरू किया है। इस प्रक्रिया में 26,000 स्वयंसेवक शामिल होंगे और यह सबसे उन्नत भारतीय प्रायोगिक टीका है। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि कोविड-19 को नियंत्रित करने के लिए उन्हें कोवैक्सीन और चार अन्य स्थानीय वैक्सीनों पर भरोसा है, क्योंकि वे फाइजर और मॉडर्ना जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा विकसित वैक्सीनों की तुलना में भारतीयों के पास जल्दी पहुंचेंगी। हालांकि हम अभी यह नहीं जानते कि इनमें से कौन-सा टीका सबसे उत्तम है?
अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का कहना है कि फाइजर और मॉडर्ना, दोनों ने हजारों रोगियों का नामांकन किया है, लेकिन परीक्षण के हर चरण में प्रतिभागियों की विविधता की जांच की जानी चाहिए। मसलन, जो वैक्सीन बुजुर्ग रोगियों के लिए सबसे अच्छा काम करती है, जरूरी नहीं कि वह छोटे बच्चों के लिए भी उतनी उपयुक्त हो। एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित वैक्सीन के बारे में आशाजनक खबरें हैं और पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ का कहना है कि आगामी जनवरी तक एस्ट्राजेनेका वैक्सीन भारतीय स्वास्थ्यकर्मियों और बुजुर्गों तक पहुंच सकती है। हालांकि, हमें यह याद रखना चाहिए कि वैक्सीन की कहानी जटिल है और अनुसंधान, विकास व उत्पादन के साथ यह समाप्त नहीं होती। वैक्सीन की कीमत का मद्दा भी बड़ा मुद्दा है। प्रश्न है कि भारत में इसकी लागत कितनी होगी और इसके लिए कौन भुगतान करेगा। फिर वैक्सीन की आपूर्ति, वितरण और प्रबंधन के मुद्दे हैं, जिसकी अपनी चुनौतियां हैं।
भारत जैसे विशाल और बड़ी आबादी वाले देश के आम आदमी की जिज्ञासा यह है कि वैक्सीन सबसे पहले किसे और कब मिलेगी? वैक्सीन के आने के तुरंत बाद उनके त्वरित प्रबंधन के लिए स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े अग्रणी कार्यकर्ताओं का एक डाटाबेस, कोल्ड चेन का संवर्द्धन और सीरिंज, सुई आदि की खरीद तैयारी के उन्नत चरणों में है। लेकिन सच्चाई यह है कि हम ईमानदारी पूर्वक यह नहीं कह सकते कि आम आदमी कोविड-19 का टीका कब लगवा सकेगा। हम यह भी नहीं जानते कि भारत और दुनिया भर में उन्नत चरणों में विकसित हो रही वैक्सीन किस हद तक प्रतिरक्षा प्रदान करेगी। विभिन्न टीकों का समय के साथ अलग-अलग प्रभाव होगा। कुछ वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्तियों से बहुत अधिक उम्मीद रखने के बजाय हमें सतर्क रहना चाहिए।
इसलिए वैक्सीन के मोर्चे पर आशाजनक संकेत मिलने के बावजूद इसे महामारी के अंत की शुरुआत कहना जल्दबाजी होगा। ऐसे में, वैक्सीन का इंतजार करते हुए हमें क्या करना चाहिए? इसका संक्षिप्त-सा उत्तर है कि वैक्सीन आने तक हमें सामाजिक दूरी बनाए रखनी होगी, मास्क पहनना होगा, भीड़ से बचना होगा और नियमित रूप से अपने हाथों को साबुन और पानी से धोना होगा। प्रतिरक्षा विशेषज्ञों के बीच एक कहावत प्रचलित है, जिसे दोहराया जाना चाहिए कि टीका नहीं, टीकाकरण जान बचाते हैं। इस बीच भीड़भाड़ में जाने से हम बच सकते हैं। भीड़ भरे बाजार हमारा इंतजार कर सकते हैं, पर मौत इंतजार नहीं करती।
देश में कोविड-19 से संक्रमित लोगों की संख्या 91.39 लाख पार कर चुकी है और 1.33 लाख से ज्यादा लोगों को इस वायरस के कारण जान गंवानी पड़ी है। दिल्ली में, जहां मैं रहती हूं, हाल के दिनों में संक्रमितों के नए मामलों और मौतों में खतरनाक बढ़ोतरी दिखाई पड़ी है। दिल्ली के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, केरल, गोवा और राजस्थान अब कोविड-19 के नए हॉट स्पॉट हैं। इस धरती के हर दूसरे व्यक्ति की तरह मैं भी वैक्सीन के बारे में अच्छी खबर सुनने के लिए बेताब हूं, जो इस नए वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रदान कर सके, जिसने हमारे जीवन को हिलाकर रख दिया है, प्रियजनों को हमसे छीन लिया है और पिछले एक साल में हममें से कइयों को घरों में बंद कर दिया है। बहरहाल, वैक्सीन के मोर्चे पर एक अच्छी खबर है। यदि सब कुछ ठीक रहा, तो अगले वर्ष देश में व्यापक टीकाकरण अभियान शुरू होने की संभावना है। लेकिन मैं सावधानीपूर्वक आशावादी हूं, क्योंकि अच्छी खबर के साथ कई किंतु-परंतु आते हैं और अब भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है।
वैक्सीन का उत्पादन एक लंबी प्रक्रिया है, जिसमें मानक प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है और जिसमें आम तौर पर कई वर्ष लग जाते हैं। मानवेतर प्राणियों जैसे बंदर, लंगूर आदि में प्री-क्लिनिकल परीक्षण किए जाते हैं, ताकि यह देखा जा सके कि वैक्सीन का मनुष्यों पर परीक्षण किया जाए या नहीं। सुरक्षा और खुराक की जांच के लिए पहले चरण का परीक्षण सीमित लोगों पर किया जाता है। सुरक्षा और प्रभावशीलता की जांच के लिए दूसरे चरण का परीक्षण लोगों के व्यापक समूहों पर किया जाता है। अब हम उन वैक्सीनों के नतीजे देख रहे हैं, जो दौड़ में सबसे आगे रहीं और फिलहाल परीक्षण के तीसरे चरण में हैं। यह असाधारण समय है और यह जानकर प्रसन्नता होती है कि दुनिया भर में कई वैक्सीन क्लिनिकल ट्रायल के शुरुआती चरणों में हैं। यह भारत में टीकाकरण की संभावनाओं के बारे में सकारात्मक बने रहने का कारण है। लेकिन अभी हम लक्ष्य के करीब नहीं पहुंचे हैं, और जब तक हम वहां नहीं पहुंचते, तब तक हमें सामाजिक दूरी बनाए रखनी चाहिए, मास्क पहनना चाहिए और हरसंभव सावधानी बरतनी चाहिए।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने हाल ही में बताया कि स्थानीय तौर पर विकसित एक वैक्सीन का अंतिम परीक्षण एक या दो महीने में पूरा हो सकता है। इससे दुनिया के दूसरे सबसे अधिक संक्रमण वाले देश में तेजी से टीकाकरण की उम्मीद बढ़ रही है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और निजी कंपनी भारत बायोटेक ने इस महीने कोवैक्सीन के तीसरे चरण का परीक्षण शुरू किया है। इस प्रक्रिया में 26,000 स्वयंसेवक शामिल होंगे और यह सबसे उन्नत भारतीय प्रायोगिक टीका है। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि कोविड-19 को नियंत्रित करने के लिए उन्हें कोवैक्सीन और चार अन्य स्थानीय वैक्सीनों पर भरोसा है, क्योंकि वे फाइजर और मॉडर्ना जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा विकसित वैक्सीनों की तुलना में भारतीयों के पास जल्दी पहुंचेंगी। हालांकि हम अभी यह नहीं जानते कि इनमें से कौन-सा टीका सबसे उत्तम है?
अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का कहना है कि फाइजर और मॉडर्ना, दोनों ने हजारों रोगियों का नामांकन किया है, लेकिन परीक्षण के हर चरण में प्रतिभागियों की विविधता की जांच की जानी चाहिए। मसलन, जो वैक्सीन बुजुर्ग रोगियों के लिए सबसे अच्छा काम करती है, जरूरी नहीं कि वह छोटे बच्चों के लिए भी उतनी उपयुक्त हो। एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित वैक्सीन के बारे में आशाजनक खबरें हैं और पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ का कहना है कि आगामी जनवरी तक एस्ट्राजेनेका वैक्सीन भारतीय स्वास्थ्यकर्मियों और बुजुर्गों तक पहुंच सकती है। हालांकि, हमें यह याद रखना चाहिए कि वैक्सीन की कहानी जटिल है और अनुसंधान, विकास व उत्पादन के साथ यह समाप्त नहीं होती। वैक्सीन की कीमत का मद्दा भी बड़ा मुद्दा है। प्रश्न है कि भारत में इसकी लागत कितनी होगी और इसके लिए कौन भुगतान करेगा। फिर वैक्सीन की आपूर्ति, वितरण और प्रबंधन के मुद्दे हैं, जिसकी अपनी चुनौतियां हैं।
भारत जैसे विशाल और बड़ी आबादी वाले देश के आम आदमी की जिज्ञासा यह है कि वैक्सीन सबसे पहले किसे और कब मिलेगी? वैक्सीन के आने के तुरंत बाद उनके त्वरित प्रबंधन के लिए स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े अग्रणी कार्यकर्ताओं का एक डाटाबेस, कोल्ड चेन का संवर्द्धन और सीरिंज, सुई आदि की खरीद तैयारी के उन्नत चरणों में है। लेकिन सच्चाई यह है कि हम ईमानदारी पूर्वक यह नहीं कह सकते कि आम आदमी कोविड-19 का टीका कब लगवा सकेगा। हम यह भी नहीं जानते कि भारत और दुनिया भर में उन्नत चरणों में विकसित हो रही वैक्सीन किस हद तक प्रतिरक्षा प्रदान करेगी। विभिन्न टीकों का समय के साथ अलग-अलग प्रभाव होगा। कुछ वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्तियों से बहुत अधिक उम्मीद रखने के बजाय हमें सतर्क रहना चाहिए।
इसलिए वैक्सीन के मोर्चे पर आशाजनक संकेत मिलने के बावजूद इसे महामारी के अंत की शुरुआत कहना जल्दबाजी होगा। ऐसे में, वैक्सीन का इंतजार करते हुए हमें क्या करना चाहिए? इसका संक्षिप्त-सा उत्तर है कि वैक्सीन आने तक हमें सामाजिक दूरी बनाए रखनी होगी, मास्क पहनना होगा, भीड़ से बचना होगा और नियमित रूप से अपने हाथों को साबुन और पानी से धोना होगा। प्रतिरक्षा विशेषज्ञों के बीच एक कहावत प्रचलित है, जिसे दोहराया जाना चाहिए कि टीका नहीं, टीकाकरण जान बचाते हैं। इस बीच भीड़भाड़ में जाने से हम बच सकते हैं। भीड़ भरे बाजार हमारा इंतजार कर सकते हैं, पर मौत इंतजार नहीं करती।