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हाईकोर्ट ने एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति को अवमानना नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने पूर्व में लगाई गई रोक के बावजूद विवि की ओर से पत्र जारी किए जाने के मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना नोटिस जारी किया है।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। पूर्व में दून बिजनेस स्कूल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि एचएनबी गढ़वाल विवि की अधिसूचना के तहत 2009 के उपरांत नए पाठ्यक्रम व बढ़ाए गए पाठ्यक्रमों की संबद्धता को वापस ले लिया गया था।
कोर्ट ने विश्वविद्यालय के इस आदेश पर रोक लगा दी थी। याची ने कोर्ट में पुन: अपील कर कहा कि 12 मई 2018 को एचएनबी गढ़वाल विवि की कार्य परिषद ने निर्णय लिया था कि 2009 के बाद जो नए कोर्स लिए गए हैं उनकी संबद्धता के संबंध में पारित 20 मार्च 2018 के अधिसूचना को वापस ले लिया जाए।
उसके बाद रजिस्ट्रार एके झा ने सात जून 2018 को एक पत्र जारी कर सूचित किया कि कोई भी संस्थान 2009 के बाद दी गई संबद्धता के आधार पर कोई भी प्रवेश नहीं लेगा। याचिकाकर्ता की ओर से इन पत्रों को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की। जिस पर कोर्ट ने इस तथ्य का स्वत: संज्ञान लिया कि पूर्व में रोक के बाद भी विश्वविद्यालय की ओर से ऐसा पत्र जारी किया जाना कोर्ट की अवमानना है।
हाईकोर्ट ने एचएनबी गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति को अवमानना नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने पूर्व में लगाई गई रोक के बावजूद विवि की ओर से पत्र जारी किए जाने के मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना नोटिस जारी किया है।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। पूर्व में दून बिजनेस स्कूल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि एचएनबी गढ़वाल विवि की अधिसूचना के तहत 2009 के उपरांत नए पाठ्यक्रम व बढ़ाए गए पाठ्यक्रमों की संबद्धता को वापस ले लिया गया था।
कोर्ट ने विश्वविद्यालय के इस आदेश पर रोक लगा दी थी। याची ने कोर्ट में पुन: अपील कर कहा कि 12 मई 2018 को एचएनबी गढ़वाल विवि की कार्य परिषद ने निर्णय लिया था कि 2009 के बाद जो नए कोर्स लिए गए हैं उनकी संबद्धता के संबंध में पारित 20 मार्च 2018 के अधिसूचना को वापस ले लिया जाए।
उसके बाद रजिस्ट्रार एके झा ने सात जून 2018 को एक पत्र जारी कर सूचित किया कि कोई भी संस्थान 2009 के बाद दी गई संबद्धता के आधार पर कोई भी प्रवेश नहीं लेगा। याचिकाकर्ता की ओर से इन पत्रों को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की। जिस पर कोर्ट ने इस तथ्य का स्वत: संज्ञान लिया कि पूर्व में रोक के बाद भी विश्वविद्यालय की ओर से ऐसा पत्र जारी किया जाना कोर्ट की अवमानना है।