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मिजोरम के 30 हजार से ज्यादा ब्रू-रियांग शरणार्थियों को स्थायी रूप से त्रिपुरा में बसाने के सरकार के फैसले पर सुषमा स्वराज के पति और मिजोरम के पूर्व राज्यपाल स्वराज कौशल ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि यह तदर्थ समाधान नहीं बल्कि स्थायी समाधान है।
1990 से 1993 के बीच मिजोरम के राज्यपाल रहे स्वराज ने कहा, 'यह समझौता एक समाधान है, जो अंतिम होने वाला है। यह बहुत महत्वपूर्ण है। इसके पीछे बहुत सारे नेक इरादे हैं। 23 साल से ज्यादा समय तक ब्रू लोग कैंप में रह रहे थे। समझौता उन्हें स्थायी रूप से बसाने के लिए है ताकि वे गरिमापूर्ण जीवन जी सकें। शिविरों से सबकुछ गायब था।'
उन्होंने कहा, 'जो चीज गायब था वह घर है। जमीन गायब थी। लोगों का स्वास्थ्य और स्कूल गायब था। इस समझौते की सबसे अच्छी बात यह है कि यह एक तदर्थ व्यवस्था नहीं बल्कि स्थायी समाधान है।' कौशल ने यह भी रेखांकित किया कि यह समझौता सरकार की संवेदना और राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में देश के संकल्प को दर्शाता है।
कौशल से जब पूछा गया कि क्या समझौते में कोई राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला है तो उन्होंने कहा, 'इतने सालों में दिल्ली पूर्वोत्तर से बहुत दूर रही है और पूर्वोत्तर भी इससे काफी दूर रहा है। रियांग भारतीय नागरिक हैं। उनके रणनीतिक स्थान देखें। उनकी कुल जनसंख्या दो लाख है। एक लाख रियांग त्रिपुरा और 65,000 मिजोरम में हैं। ये 65,000 ब्रू शरणार्थी पहले सीमा पर फिर पूर्वी पाकिस्तान और अब बांग्लादेश में हैं।'
उन्होंने आगे कहा, 'वे सभी (ब्रू-रियांग) नदियों और भारत-बांग्लादेश सीमा पर हैं। तथ्य यह है कि रियांग उन जनजातियों में से एक है, जो आपकी रक्षा की पहली पंक्ति में आते हैं। आप उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। मुझे खुशी है कि सरकार ने इसके बारे में सोचा।' इस संबंध में गुरुवार को एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे।
मिजोरम के 30 हजार से ज्यादा ब्रू-रियांग शरणार्थियों को स्थायी रूप से त्रिपुरा में बसाने के सरकार के फैसले पर सुषमा स्वराज के पति और मिजोरम के पूर्व राज्यपाल स्वराज कौशल ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि यह तदर्थ समाधान नहीं बल्कि स्थायी समाधान है।
1990 से 1993 के बीच मिजोरम के राज्यपाल रहे स्वराज ने कहा, 'यह समझौता एक समाधान है, जो अंतिम होने वाला है। यह बहुत महत्वपूर्ण है। इसके पीछे बहुत सारे नेक इरादे हैं। 23 साल से ज्यादा समय तक ब्रू लोग कैंप में रह रहे थे। समझौता उन्हें स्थायी रूप से बसाने के लिए है ताकि वे गरिमापूर्ण जीवन जी सकें। शिविरों से सबकुछ गायब था।'
उन्होंने कहा, 'जो चीज गायब था वह घर है। जमीन गायब थी। लोगों का स्वास्थ्य और स्कूल गायब था। इस समझौते की सबसे अच्छी बात यह है कि यह एक तदर्थ व्यवस्था नहीं बल्कि स्थायी समाधान है।' कौशल ने यह भी रेखांकित किया कि यह समझौता सरकार की संवेदना और राष्ट्रीय सुरक्षा के बारे में देश के संकल्प को दर्शाता है।
कौशल से जब पूछा गया कि क्या समझौते में कोई राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला है तो उन्होंने कहा, 'इतने सालों में दिल्ली पूर्वोत्तर से बहुत दूर रही है और पूर्वोत्तर भी इससे काफी दूर रहा है। रियांग भारतीय नागरिक हैं। उनके रणनीतिक स्थान देखें। उनकी कुल जनसंख्या दो लाख है। एक लाख रियांग त्रिपुरा और 65,000 मिजोरम में हैं। ये 65,000 ब्रू शरणार्थी पहले सीमा पर फिर पूर्वी पाकिस्तान और अब बांग्लादेश में हैं।'
उन्होंने आगे कहा, 'वे सभी (ब्रू-रियांग) नदियों और भारत-बांग्लादेश सीमा पर हैं। तथ्य यह है कि रियांग उन जनजातियों में से एक है, जो आपकी रक्षा की पहली पंक्ति में आते हैं। आप उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। मुझे खुशी है कि सरकार ने इसके बारे में सोचा।' इस संबंध में गुरुवार को एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे।