न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Fri, 19 Jan 2018 01:43 PM IST
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा बलात्कार के मामले में आरोपी पीपली लाइव के सह-निर्देशक
महमूद फारुकी को बरी कर दिया है। अमरीकी महिला ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। शीर्ष अदालत का कहना है कि उसे सबूतों में कहीं से भी महिला द्वारा ना नहीं दिखा। कोर्ट ने पूछा कि बलात्कार के कितने ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें पीड़िता अपने आरोपी के प्रति प्यार जाहिर करने के लिए पत्र लिखती है।
इस मामले में कोर्ट ने कहा कि हम हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। यह काफी अच्छे तरीके से लिखा गया फैसला है। सितंबर 2017 में दिल्ली की हाईकोर्ट ने कमाल फारुकी को बरी कर दिया था। कोर्ट ने उन्हें संदेह का लाभ दिया था क्योंकि पीड़िता के बयान विश्वसनीय नहीं हैं। जस्टिस आशुतोष कुमार ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया था जिसमें कमाल को सात साल जेल की सजा दी गई थी। उनपर 30 साल की अमेरिकी शोधकर्ता ने दिल्ली के घर में मार्च 2015 में बलात्कार करने का आरोप लगाया था।
अपने 85 पेजों के फैसले में हाईकोर्ट ने फारुकी को बरी कर दिया था। अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि महिला की गवाही विश्वसनीय नहीं है और इसी वजह से आरोपी को संदेह का लाभ दिया जा सकता है। अगर इस तरह की कोई घटना घटी है, तो यह अभियोजन पक्ष की सहमति से हुआ है या नहीं, इसका संदेह है। फारुकी ने ट्रायल कोर्ट से खुद को मिली सजा को चुनौती दी थी। बहस के दौरान फारुकी के वकील ने बताया था कि उस दिन इस तरह की कोई घटना नहीं घटी थी। इसके लिए उन्होंने अपने मुवक्किल और पीड़िता के बीच हुए मैसेज के आदान-प्रदान को पेश करते हुए बताया था कि दोनों जनवरी 2015 से रिलेशनशिप में थे।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा बलात्कार के मामले में आरोपी पीपली लाइव के सह-निर्देशक
महमूद फारुकी को बरी कर दिया है। अमरीकी महिला ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। शीर्ष अदालत का कहना है कि उसे सबूतों में कहीं से भी महिला द्वारा ना नहीं दिखा। कोर्ट ने पूछा कि बलात्कार के कितने ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें पीड़िता अपने आरोपी के प्रति प्यार जाहिर करने के लिए पत्र लिखती है।
इस मामले में कोर्ट ने कहा कि हम हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। यह काफी अच्छे तरीके से लिखा गया फैसला है। सितंबर 2017 में दिल्ली की हाईकोर्ट ने कमाल फारुकी को बरी कर दिया था। कोर्ट ने उन्हें संदेह का लाभ दिया था क्योंकि पीड़िता के बयान विश्वसनीय नहीं हैं। जस्टिस आशुतोष कुमार ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया था जिसमें कमाल को सात साल जेल की सजा दी गई थी। उनपर 30 साल की अमेरिकी शोधकर्ता ने दिल्ली के घर में मार्च 2015 में बलात्कार करने का आरोप लगाया था।
अपने 85 पेजों के फैसले में हाईकोर्ट ने फारुकी को बरी कर दिया था। अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि महिला की गवाही विश्वसनीय नहीं है और इसी वजह से आरोपी को संदेह का लाभ दिया जा सकता है। अगर इस तरह की कोई घटना घटी है, तो यह अभियोजन पक्ष की सहमति से हुआ है या नहीं, इसका संदेह है। फारुकी ने ट्रायल कोर्ट से खुद को मिली सजा को चुनौती दी थी। बहस के दौरान फारुकी के वकील ने बताया था कि उस दिन इस तरह की कोई घटना नहीं घटी थी। इसके लिए उन्होंने अपने मुवक्किल और पीड़िता के बीच हुए मैसेज के आदान-प्रदान को पेश करते हुए बताया था कि दोनों जनवरी 2015 से रिलेशनशिप में थे।