हे भारत के वीर सपूतों,
तुमको शत-शत वन्दन है।
मातृभूमि हित सदा समर्पित,
भू करती अभिनन्दन है।।
सीमा के तुम ही हो प्रहरी,
राष्ट्र शीश ऊंचा करते।
गौरव गरिमा बढे़ देश की,
यही यत्न पल पल करते।।
सर्दी गर्मी तूफानों में,
तुम सीमा के रक्षक हो।
सीमा में जो पग रखता है,
उसके तो तुम भक्षक हो।।
हिम मंडित पर्वत की चोटी,
नित शुभ सुखद बिछौना है।
केशर क्यारी काश्मीर की,
भारत स्वर्ग सलोना है।।
कभी रुको न कभी झुको न,
रक्षा हित तत्पर रहते।
भारत माँ की बलिवेदी हित,
सदा अहिर्निश दुख सहते।।
'हरिकिंकर'इसका हर कण कण,
भाल सुशोभित चंदन है।
शस्य-श्यामला भू यह धरती,
'हरिकिंकर' वन नन्दन है।।
हे भारत के वीर सपूतों,
तुमको शत-शत वन्दन है।
मातृभूमि हित सदा समर्पित,
भू करती अभिनन्दन है।।
हमें विश्वास है कि हमारे पाठक स्वरचित रचनाएं ही इस कॉलम के तहत प्रकाशित होने के लिए भेजते हैं। हमारे इस सम्मानित पाठक का भी दावा है कि यह रचना स्वरचित है।
आपकी रचनात्मकता को अमर उजाला काव्य देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए
यहां क्लिक करें।