पता है तुझे उस रात मैं कितना कराही थी,
मेरे आखों के सामने मेरे सपने बिखर रहे थे,
पर चाह के भी मैं कुछ न कर पायी थी,
माँ तू मुझे इस दुनिया मे क्यों लाई थी!
मेरे जिस्म तो जिस्म रूह को भी छलनी किया था,
मुझमे जितनी जान थी मैं उतना चीखी चिल्लाई थी,
पर मैं खुद को बचा नहीं पायी थी,
माँ तू मुझे इस दुनिया में क्यों लाई थी!
उस रात मैंने ये सोचा जरूर था,
बेटी बन के पैदा होना मेरे लिए श्राप था,
न जाने ये बात कितनी बार मुझे इस समाज ने समझाई थी,
माँ तू मुझे इस दुनिया में क्यों लाई थी!
ये समाज मुझे ही गुनेहगार ठहरायेगा,
कोई मेरा दर्द समझ नहीं पायेगा,
बिना गलती के भी मुझे ही सजा दी जायेगी,
माँ तू मुझे इस दुनिया में क्यों लाई थी!
खुद को बचाने की मैंने पूरी कोशिश की थी,
उन लोगों के सामने मिन्नतें की थी,
पर उन लोगों ने मेरी एक नहीं सुनी थी,
माँ तू मुझे इस दुनिया में क्यों लाई थी!
हमारे समाज मे तो देवियों को पूजा जाता है,
फिर लड़कियों के साथ ऐसा सलूक क्यों किया जाता है,
क्या उन लोगों को मुझमे अपनी बहन या बेटी नजर नहीं आई थी,
माँ तू मुझे इस दुनिया में क्यों लाई थी!
आखिर कसूर क्या था मेरा,
बेटी बन के पैदा हुई ये कसूर था क्या मेरा,
क्या उन लोगों को थोड़ी सी भी शर्म नही आई थी,
माँ तू मुझे इस दुनिया में क्यों लाई थी!
- श्रेया सिन्हा
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