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रोज सोने से पहले दादी-नानी से सुनी वो परियों की कहानी याद है ना, और भला जंगल के राजा शेर को कौन भूल सकता है। दादी-नानी की इन्हीं कहानियों से हमारा बचपन गुलजार रहा करता था लेकिन अब दादी नानी के वही संदेशपरक किस्से दवा का काम कर रहे हैं।
जी हां, हाल ही में हुए शोध में ये बात साबित हुई है। 150 बच्चों पर किए गए शोध में ये पता चला है कि किस्सागोई बच्चों में सिर्फ संस्कार की नहीं गढ़ती बल्कि उन्हें तनाव से बचाती है, उनका अवसाद कम करती है।
इंडियन साइको-सोशियो फाउंडेशन की सचिव डॉ. समीक्षा कौर ने हाल ही में 150 बच्चों पर शोध किया है। कक्षा दस से 12 तक के (5-18 वर्ष) के ये वो बच्चे थे जिन्हें डिप्रेशन की शिकायत थी। क्लास में इनका पर्फामेंस पहले तो अच्छा रहता था लेकिन पढ़ाई के दबाव और दूसरी वजहों से इन्हें डिप्रेशन ने घेर लिया। जो पढ़ा लिखा, कुछ ही घंटे में भूल जाया करते थे, इस वजह से उनमें थोड़ा चिड़चिड़ापन भी आ गया था।
ऐसे बच्चों पर चार महीने तक शोध किया गया। हफ्ते में दो दिन इन बच्चों को कहानियां सुनाई गईं, हफ्ते भर के अंतराल पर उनसे कहानियां सुनी गईं, कहानियों से उन्होंने क्या सीखा, उनके अनुभव जाने गए। उनसे कहानियां लिखवाई भी गईं, जो उनसे, उनके परिवार और स्कूल से जुड़ी हुईं थीं जिससे उनका मनोभाव सामने आया।
करीब चार महीने बाद जब शोध का जो निष्कर्ष सामने आया वो वाकई खुश करने वाला था। अस्सी प्रतिशत बच्चों की परेशानी कम हो चुकी थी। डिप्रेशन से बहुत हद तक ऊबर चुके थे।
इस बारे में इंडियन साइको-सोशियो फाउंडेशन की सचिव डॉ. समीक्षा कौर बताती हैं, 'एकल परिवार का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ रहा है। दादी नानी के साथ रहने से न सिर्फ संस्कार और नैतिक मूल्य बच्चे सीखते हैं बल्कि उनकी कहानियां भी बच्चों के दिलो दिमाग पर असर करती हैं। आजकल बच्चों के मनोरंजन के लिए टीवी, वीडियो गेम, कंप्यटर और ई-मेल है जिसका समाज पर कहीं न कहीं नकारात्मक असर पड़ रहा है।'
इन समस्याओं में मददगार निकलीं कहानियां
चार महीने के बाद सामने आया निष्कर्ष वाकई चौंकाने वाला रहाः
- ओसीडी (ओबसेशन कंपल्शन बिहेवियर)- 13 प्रतिशत - 10 प्रतिशत
- चिंता - 50 प्रतिशत - 8.6 प्रतिशत
- डिप्रेशन - 54 प्रतिशत - 20 प्रतिशत
- सोमैटिक कंपलेंट (दैहिक शिकायत) - 40 प्रतिशत - 13.3 प्रतिशत
- फोबिक - 20 प्रतिशत - 3.3 प्रतिशत
- हिस्टीरिया - 43 प्रतिशत - 10 प्रतिशत
ऐसी कहानियां हैं मददगार
- बच्चों का भय दूर करने के लिए बहादुर लड़का, बहादुर सिपाही जैसी कहानियां सुनाई गईं।
- हीन भावना से ग्रसित बच्चों को कमजोर और बुद्धिमान बच्चे, बुद्धि और विवेक, आईक्यू लेवल से जुड़ी कहानियां सुनाईं गईं।
कहानी सुनने के और भी हैं फायदे
- सोचने की क्षमता में वृद्धि।
- अच्छे संबंध स्थापित होते हैं।
- रिजनिंग और एकाग्रता बढ़ती है।
- अकेलापन दूर होता है।
- नैतिक मूल्यों को बढ़ावा मिलता है।
- अनुशासन की भावना आती है।
रोज सोने से पहले दादी-नानी से सुनी वो परियों की कहानी याद है ना, और भला जंगल के राजा शेर को कौन भूल सकता है। दादी-नानी की इन्हीं कहानियों से हमारा बचपन गुलजार रहा करता था लेकिन अब दादी नानी के वही संदेशपरक किस्से दवा का काम कर रहे हैं।
जी हां, हाल ही में हुए शोध में ये बात साबित हुई है। 150 बच्चों पर किए गए शोध में ये पता चला है कि किस्सागोई बच्चों में सिर्फ संस्कार की नहीं गढ़ती बल्कि उन्हें तनाव से बचाती है, उनका अवसाद कम करती है।
इंडियन साइको-सोशियो फाउंडेशन की सचिव डॉ. समीक्षा कौर ने हाल ही में 150 बच्चों पर शोध किया है। कक्षा दस से 12 तक के (5-18 वर्ष) के ये वो बच्चे थे जिन्हें डिप्रेशन की शिकायत थी। क्लास में इनका पर्फामेंस पहले तो अच्छा रहता था लेकिन पढ़ाई के दबाव और दूसरी वजहों से इन्हें डिप्रेशन ने घेर लिया। जो पढ़ा लिखा, कुछ ही घंटे में भूल जाया करते थे, इस वजह से उनमें थोड़ा चिड़चिड़ापन भी आ गया था।
ऐसे बच्चों पर चार महीने तक शोध किया गया। हफ्ते में दो दिन इन बच्चों को कहानियां सुनाई गईं, हफ्ते भर के अंतराल पर उनसे कहानियां सुनी गईं, कहानियों से उन्होंने क्या सीखा, उनके अनुभव जाने गए। उनसे कहानियां लिखवाई भी गईं, जो उनसे, उनके परिवार और स्कूल से जुड़ी हुईं थीं जिससे उनका मनोभाव सामने आया।
करीब चार महीने बाद जब शोध का जो निष्कर्ष सामने आया वो वाकई खुश करने वाला था। अस्सी प्रतिशत बच्चों की परेशानी कम हो चुकी थी। डिप्रेशन से बहुत हद तक ऊबर चुके थे।
इस बारे में इंडियन साइको-सोशियो फाउंडेशन की सचिव डॉ. समीक्षा कौर बताती हैं, 'एकल परिवार का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ रहा है। दादी नानी के साथ रहने से न सिर्फ संस्कार और नैतिक मूल्य बच्चे सीखते हैं बल्कि उनकी कहानियां भी बच्चों के दिलो दिमाग पर असर करती हैं। आजकल बच्चों के मनोरंजन के लिए टीवी, वीडियो गेम, कंप्यटर और ई-मेल है जिसका समाज पर कहीं न कहीं नकारात्मक असर पड़ रहा है।'
इन समस्याओं में मददगार निकलीं कहानियां
चार महीने के बाद सामने आया निष्कर्ष वाकई चौंकाने वाला रहाः
- ओसीडी (ओबसेशन कंपल्शन बिहेवियर)- 13 प्रतिशत - 10 प्रतिशत
- चिंता - 50 प्रतिशत - 8.6 प्रतिशत
- डिप्रेशन - 54 प्रतिशत - 20 प्रतिशत
- सोमैटिक कंपलेंट (दैहिक शिकायत) - 40 प्रतिशत - 13.3 प्रतिशत
- फोबिक - 20 प्रतिशत - 3.3 प्रतिशत
- हिस्टीरिया - 43 प्रतिशत - 10 प्रतिशत
ऐसी कहानियां हैं मददगार
- बच्चों का भय दूर करने के लिए बहादुर लड़का, बहादुर सिपाही जैसी कहानियां सुनाई गईं।
- हीन भावना से ग्रसित बच्चों को कमजोर और बुद्धिमान बच्चे, बुद्धि और विवेक, आईक्यू लेवल से जुड़ी कहानियां सुनाईं गईं।
कहानी सुनने के और भी हैं फायदे
- सोचने की क्षमता में वृद्धि।
- अच्छे संबंध स्थापित होते हैं।
- रिजनिंग और एकाग्रता बढ़ती है।
- अकेलापन दूर होता है।
- नैतिक मूल्यों को बढ़ावा मिलता है।
- अनुशासन की भावना आती है।