हिंदी सिनेमा के पहले शो मैन रहे राज कपूर की फिल्म ‘बॉबी’ के बारे में सबको सब कुछ पता है। ऐसी फिल्मों का बाइस्कोप लिखना वाकई चुनौती भरा काम होता है जिनके बारे में लोगों को पहले से ही बहुत कुछ पता हो। आज के समय में लेखन की सबसे बड़ी चुनौती गूगल है। चुनौती ये है कि क्या अब भी कोई लेखक पाठकों को वह पढ़वा सकता है, जो उसने पहले गूगल के जरिए उस वस्तु, व्यक्ति या स्थान के बारे में न पढ़ रखा हो। बाइस्कोप की कसौटी भी मैंने यही रखने की कोशिश की है। सीनियर पत्रकारों से, पुराने कलाकारों से, उन लोगों से जिन्होंने हिंदी सिनेमा में लंबे समय तक परदे के पीछे रहकर काम किया, किताबों से, किस्सों से, जो कुछ मिला सब बटोरकर और उस पर ‘सार सार को गहि लहै, थोथा देइ उड़ाय’ का फॉर्मूला सेट कर मैं बाइस्कोप लिखता हूं। किस्से सब नए ही होंगे, इसका कोई दावा नहीं है लेकिन हां, किस्सागोई की मेरी अपनी शैली है, और यही ‘बाइस्कोप’ का असली परिचय है। आज के बाइस्कोप की फिल्म ‘बॉबी’ 28 सितंबर 1973 को रिलीज हुई। ये वह दौर था जब सलीम जावेद ने अमिताभ बच्चन के कंधे पर बंदूक रखकर अपने पुराने अजीज राजेश खन्ना के रूमानी शामियाने में फिल्म ‘जंजीर’ से छेद कर दिया था, लेकिन उसी साल रिलीज हुई फिल्म ‘बॉबी’ फिर से माहौल में रूमानियत का नया इंद्रधनुष ले आई।