‘अंदाज’, ‘हाथी मेरे साथी’ ‘सीता और गीता’, ‘जंजीर’, ‘यादों की बारात’ जैसी सुपरहिट फिल्मों के बाद मशहूर लेखक जोड़ी सलीम जावेद की कलम की स्याही का रंग पहली बार फीका होता दिखा 1974 में रिलीज हुई फिल्म ‘मजबूर’ में। इसके बाद ‘हाथ की सफाई’ में भी मामला ढीला ही रहा लेकिन 1975 में रिलीज हुई फिल्म ‘दीवार’ ने इन दोनों को हिंदी सिनेमा का सुपरस्टार बना दिया। सलीम जावेद और अमिताभ बच्चन के दोस्ताने में अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की एंट्री होती है साल 1979 में रिलीज हुई फिल्म ‘काला पत्थर’ से।
सलीम जावेद की इसके बाद लिखी तीन और बैक टू बैक फिल्मों में भी शत्रुघ्न सिन्हा नजर आए। ये फिल्में थीं, ‘दोस्ताना’, ‘शान’ और ‘क्रांति’। यही वह दौर था जब सलीम खान और जावेद अख्तर के बीच थोड़ा थोड़ा कुछ न कुछ टूट रहा था। जावेद अख्तर धीरे धीरे अमिताभ बच्चन की तरफ झुक रहे थे और सलीम खान का रुतबा अपना अलग ही तरह का बन रहा था। ये जोड़ी क्यों टूटी, कैसे टूटी, किसने पहले इसका एलान किया, इस पर विस्तार से फिर कभी चर्चा होगी, लेकिन, आज के बाइस्कोप की फिल्म ‘काला पत्थर’ के किस्से भी कुछ कम दिलचस्प नहीं हैं।
पढ़ें: बाइस्कोप: जब अभिषेक से मिलने मनाली पहुंच गए 70 पत्रकार, दूसरी फिल्म से ही दिखने लगा था बच्चन का रुआब
सलीम जावेद की इसके बाद लिखी तीन और बैक टू बैक फिल्मों में भी शत्रुघ्न सिन्हा नजर आए। ये फिल्में थीं, ‘दोस्ताना’, ‘शान’ और ‘क्रांति’। यही वह दौर था जब सलीम खान और जावेद अख्तर के बीच थोड़ा थोड़ा कुछ न कुछ टूट रहा था। जावेद अख्तर धीरे धीरे अमिताभ बच्चन की तरफ झुक रहे थे और सलीम खान का रुतबा अपना अलग ही तरह का बन रहा था। ये जोड़ी क्यों टूटी, कैसे टूटी, किसने पहले इसका एलान किया, इस पर विस्तार से फिर कभी चर्चा होगी, लेकिन, आज के बाइस्कोप की फिल्म ‘काला पत्थर’ के किस्से भी कुछ कम दिलचस्प नहीं हैं।
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