मुंबई में कोकिलाबेन अस्पताल के पास बनी एक इमारत की लिफ्ट में निर्देशक रमेश सिप्पी अक्सर अंदर जाते या बाहर निकलते वक्त टकराते हैं। कभी दुआ सलाम होती है, कभी वह अपनी पत्नी किरण जुनेजा से बातें करते बाहर निकल जाते हैं और कभी मैं इमारत के वॉचमैन से दुआ सलाम करते हुए अंदर चला जाता हूं। रमेश सिप्पी के आसपास न अब लोग होते हैं, न प्रशंसक उनके पीछे भागते हैं। वह खुद भी सिनेमा से धीरे धीरे दूर ही हो गए। उनकी निर्देशित अब तक की आखिरी फिल्म 'शिमला मिर्ची' लंबे समय तक रिलीज की राह तकने के बाद इसी साल की शुरूआत में रिलीज हुई। लेकिन, समय हमेशा ऐसा नहीं था, कभी उनके आसपास सितारों का मेला लगता था। और, इसकी शुरूआत हुई थी हिंदी सिनेमा की कालजयी फिल्म शोले से, जिसका तिलिस्म आज तक अनसुलझा है। फिल्म में सिक्का उछालकर फैसला करने वाला जय का स्टाइल बाद में क्रिस्टोफर नोलन जैसे निर्देशक ने अपनी फिल्म 'डार्कनाइट बिगिन्स' में इस्तेमाल किया। इस तिलिस्म पर एक आलेख मैंने 'अमर उजाला' की फिल्म मैगजीन 'रंगायन' में 19 साल पहले लिखा था। आज उसे बाइस्कोप के पाठकों के लिए फिर से ले आया हूं।

