बड़े परदे पर कुणाल खेमू पहली बार 27 साल पहले दिखे बाल कलाकार के रूप में। फिर 15 साल पहले वह फिल्म ‘कलयुग’ से हीरो बने। इस साल के शुरू में रिलीज हुई फिल्म ‘मलंग’ को उनकी कमबैक फिल्म माना गया और अब फिल्म ‘लूटकेस’ इस सीजन की फेवरिट कॉमेडी फिल्म मानी जा रही है। कुणाल खेमू से अमर उजाला की एक खास मुलाकात।
आप अभिनय बहुत छोटी उम्र से कर रहे हैं, आपके माता पिता का क्या रोल रहा आपको अभिनेता बनाने में?
आप यकीन नहीं मानेंगे लेकिन अभिनय मैंने खुद चुना। उस वक्त हम श्रीनगर में थे और दूरदर्शन के शो 'गुल गुलशन गुलफाम' में मेरे माता-पिता (ज्योति और रवि खेमू) दोनों अभिनय करते थे। हम मुंबई आए तो उसी शो के निर्देशक वेद राही एक और शो 'चित्र कथाएं' बना रहे थे। इसमें एक कहानी मां बेटे की थी। वहीं से मेरे अभिनय की शुरुआत हुई, मेरी मां भी उस धारावाहिक में मेरे साथ थी। जब 'हम हैं राही प्यार के' फिल्म बन रही थी तो मेरे पिता से किसी ने मेरे लिए बात की। मैं अपनी मौसी के घर दिल्ली में फिल्म ‘दिल’ देख रहा था। पापा ने फोन करके पूछा कि क्या मुझे एक्टर बनना है तो मैंने हां कर दी। यहीं से भट्ट साहब (महेश भट्ट) से भी मेरा रिश्ता पनप गया।
आप अभिनय बहुत छोटी उम्र से कर रहे हैं, आपके माता पिता का क्या रोल रहा आपको अभिनेता बनाने में?
आप यकीन नहीं मानेंगे लेकिन अभिनय मैंने खुद चुना। उस वक्त हम श्रीनगर में थे और दूरदर्शन के शो 'गुल गुलशन गुलफाम' में मेरे माता-पिता (ज्योति और रवि खेमू) दोनों अभिनय करते थे। हम मुंबई आए तो उसी शो के निर्देशक वेद राही एक और शो 'चित्र कथाएं' बना रहे थे। इसमें एक कहानी मां बेटे की थी। वहीं से मेरे अभिनय की शुरुआत हुई, मेरी मां भी उस धारावाहिक में मेरे साथ थी। जब 'हम हैं राही प्यार के' फिल्म बन रही थी तो मेरे पिता से किसी ने मेरे लिए बात की। मैं अपनी मौसी के घर दिल्ली में फिल्म ‘दिल’ देख रहा था। पापा ने फोन करके पूछा कि क्या मुझे एक्टर बनना है तो मैंने हां कर दी। यहीं से भट्ट साहब (महेश भट्ट) से भी मेरा रिश्ता पनप गया।