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धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान काल भैरव का जन्म मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर हुआ था। इस साल यह तिथि 7 दिसंबर को पड़ रही है। इस दिन मध्याह्न में भगवान शिव के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी जिन्हें शिव का पांचवा अवतार माना गया है। भैरव का अर्थ होता है भय को हर के जगत की रक्षा करने वाला। ऐसा भी मान्यता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव, शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं।
हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी के कोतवाल भी कहा जाता है। इनकी शक्ति का नाम है 'भैरवी गिरिजा ',जो अपने उपासकों की अभीष्ट दायिनी हैं। इस दिन इनके दो रूप है पहला बटुक भैरव जो भक्तों को अभय देने वाले सौम्य रूप में प्रसिद्ध है तो वहीं काल भैरव अपराधिक प्रवृतियों पर नियंत्रण करने वाले भयंकर दंडनायक है।
सारे संकट होते हैं दूर
- शिव पुराण में कहा गया है कि ''भैरवः पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मनः । मूढास्तेवै न जानन्ति मोहितारूशिवमायया।'' अर्थात भैरव परमात्मा शंकर के ही रूप हैं लेकिन अज्ञानी मनुष्य शिव की माया से ही मोहित रहते हैं। नंदीश्वर भी कहते हैं कि जो शिव भक्त शंकर के भैरव रूप की आराधना नित्य प्रति करता है उसके लाखों जन्मों में किए हुए पाप नष्ट हो जाते हैं। इनके स्मरण और दर्शन मात्र से ही प्राणी के सब दुःख दूर होकर वह निर्मल हो जाता है । मान्यता है कि इनके भक्तों का अनिष्ट करने वालों को तीनों लोकों में कोई शरण नहीं दे सकता । काल भी इनसे भयभीत रहता है इसलिए इन्हें काल भैरव एवं हाथ में त्रिशूल,तलवार और डंडा होने के कारण इन्हें दंडपाणि भी कहा जाता है । इनकी पूजा-आराधना से घर में नकारात्मक शक्तियां,जादू-टोने तथा भूत-प्रेत आदि से किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता बल्कि इनकी उपासना से मनुष्य का आत्मविश्वास बढ़ता है।
कैसे करें पूजा-
- इस दिन भगवान शिव के अंश काल भैरव की पूजा करना विशेष फलदाई है। कालाष्टमी के दिन सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर नित्य-क्रिया आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। संभव हो तो गंगा जल नहाने के जल में डालें।
- भैरव को प्रसन्न करने के लिए उड़द की दाल या इससे निर्मित मिष्ठान जैसे इमरती,मीठे पुए या दूध-मेवा का भोग लगाया जाता है। चमेली का पुष्प इनको अतिप्रिय है ।
- कालिका पुराण के अनुसार भैरव जी का वाहन श्वान है इसलिए विशेष रूप से इस दिन काले कुत्ते को मीठी चीजें खिलाने से भैरव की कृपा मिलती है।
- कालाष्टमी के दिन कालभैरव की पूजा के साथ भगवान शिव, माता पार्वती और शिव परिवार की पूजा भी करनी चाहिए।
- भगवान काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए इस दिन कालभैवाष्टक का पाठ करना चाहिए,ऐसा करने से आदि-व्याधि दूर होती है।
- इस दिन भगवान कालभैरव को 7 या 11 नींबू की माला चढ़ाने से व्यक्ति को समस्त परेशानियों से मुक्ति मिलती है। पूजन के पश्चात गरीबों को दान अवश्य दें।
काशी के हैं कोतवाल
- भगवान विश्वनाथ काशी के राजा हैं और काल भैरव इस नगर के कोतवाल माने जाते हैं। इसी कारण से इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। इनके दर्शन किये बिना बाबा विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है। इसलिए विश्वनाथ के दर्शन कर कालभैरव के दर्शन करना चाहिए।
सार
भगवान काल भैरव का जन्म मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर हुआ था। इस साल यह तिथि 7 दिसंबर को पड़ रही है।
विस्तार
धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान काल भैरव का जन्म मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर हुआ था। इस साल यह तिथि 7 दिसंबर को पड़ रही है। इस दिन मध्याह्न में भगवान शिव के अंश से भैरव की उत्पत्ति हुई थी जिन्हें शिव का पांचवा अवतार माना गया है। भैरव का अर्थ होता है भय को हर के जगत की रक्षा करने वाला। ऐसा भी मान्यता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है। भैरव, शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं।
हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है। इन्हें काशी के कोतवाल भी कहा जाता है। इनकी शक्ति का नाम है 'भैरवी गिरिजा ',जो अपने उपासकों की अभीष्ट दायिनी हैं। इस दिन इनके दो रूप है पहला बटुक भैरव जो भक्तों को अभय देने वाले सौम्य रूप में प्रसिद्ध है तो वहीं काल भैरव अपराधिक प्रवृतियों पर नियंत्रण करने वाले भयंकर दंडनायक है।
सारे संकट होते हैं दूर
- शिव पुराण में कहा गया है कि ''भैरवः पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मनः । मूढास्तेवै न जानन्ति मोहितारूशिवमायया।'' अर्थात भैरव परमात्मा शंकर के ही रूप हैं लेकिन अज्ञानी मनुष्य शिव की माया से ही मोहित रहते हैं। नंदीश्वर भी कहते हैं कि जो शिव भक्त शंकर के भैरव रूप की आराधना नित्य प्रति करता है उसके लाखों जन्मों में किए हुए पाप नष्ट हो जाते हैं। इनके स्मरण और दर्शन मात्र से ही प्राणी के सब दुःख दूर होकर वह निर्मल हो जाता है । मान्यता है कि इनके भक्तों का अनिष्ट करने वालों को तीनों लोकों में कोई शरण नहीं दे सकता । काल भी इनसे भयभीत रहता है इसलिए इन्हें काल भैरव एवं हाथ में त्रिशूल,तलवार और डंडा होने के कारण इन्हें दंडपाणि भी कहा जाता है । इनकी पूजा-आराधना से घर में नकारात्मक शक्तियां,जादू-टोने तथा भूत-प्रेत आदि से किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता बल्कि इनकी उपासना से मनुष्य का आत्मविश्वास बढ़ता है।
कैसे करें पूजा-
- इस दिन भगवान शिव के अंश काल भैरव की पूजा करना विशेष फलदाई है। कालाष्टमी के दिन सुबह ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर नित्य-क्रिया आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। संभव हो तो गंगा जल नहाने के जल में डालें।
- भैरव को प्रसन्न करने के लिए उड़द की दाल या इससे निर्मित मिष्ठान जैसे इमरती,मीठे पुए या दूध-मेवा का भोग लगाया जाता है। चमेली का पुष्प इनको अतिप्रिय है ।
- कालिका पुराण के अनुसार भैरव जी का वाहन श्वान है इसलिए विशेष रूप से इस दिन काले कुत्ते को मीठी चीजें खिलाने से भैरव की कृपा मिलती है।
- कालाष्टमी के दिन कालभैरव की पूजा के साथ भगवान शिव, माता पार्वती और शिव परिवार की पूजा भी करनी चाहिए।
- भगवान काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए इस दिन कालभैवाष्टक का पाठ करना चाहिए,ऐसा करने से आदि-व्याधि दूर होती है।
- इस दिन भगवान कालभैरव को 7 या 11 नींबू की माला चढ़ाने से व्यक्ति को समस्त परेशानियों से मुक्ति मिलती है। पूजन के पश्चात गरीबों को दान अवश्य दें।
काशी के हैं कोतवाल
- भगवान विश्वनाथ काशी के राजा हैं और काल भैरव इस नगर के कोतवाल माने जाते हैं। इसी कारण से इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है। इनके दर्शन किये बिना बाबा विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है। इसलिए विश्वनाथ के दर्शन कर कालभैरव के दर्शन करना चाहिए।