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क्रोएशिया के कप्तान लुका मॉड्रिक की कहानी काफी प्रेरणादायी है। फीफा विश्व कप में शानदार प्रदर्शन कर अपनी टीम को फाइनल तक पहुंचाने वाले इस खिलाड़ी को अब वर्ष के सर्वश्रेष्ठ फुटबॉलर के अवार्ड से नवाजा गया है। इसके साथ ही लुका ने रोनाल्डो-मेसी की दशकों तक चली आ रही बादशाहत को खत्म किया।
उनका बचपन रिफ्यूजी कैंप और बम धमाकों की आवाज के बीच गुजरा। डर के साए में भी मॉड्रिक का फुटबॉल के लिए लगाव कम नहीं हुआ और आज नतीजा सबके सामने है।
जब वह 6 साल के थे, तो उनके दादा को गोली मार दी गई थी। उनका परिवार युद्ध क्षेत्र में शरणार्थी था। वह ग्रेनेड के विस्फोटों के बीच बड़े हुए। उनके कोच कहते हैं कि वो फुटबॉल खेलने के लिए बहुत कमजोर थे। उसी मॉड्रिक ने अपने देश क्रोएशिया को पहली बार फुटबॉल वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंचा दिया।
लुका मॉड्रिक उन कुछ युवकों में से हैं जो क्रोएशियाई फुटबॉल की स्वर्णिम कहानी लिख रहे हैं। वह और उनकी टीम के कुछ खिलाड़ियों ने अपने बचपन में खूनी संघर्ष और फिर 1991 में यूगोस्लाविया के पतन को देखा है।
स्लोवेनिया और क्रोएशिया की एकतरफा आजादी की घोषणा के बाद यूगोस्लावियाई सेना की खूनी प्रतिक्रिया हुई।
उस दौरान पूरे इलाके में फैली सांप्रदायिक हिंसा की वजह से टीम के उनके एक अन्य साथी वेद्रन कोर्लुका (टीम के सबसे प्रसिद्ध खिलाड़ियों में से एक) को भी क्रोएशिया में एक शरणार्थी के रूप में रहने के लिए मजबूर किया गया था।
कई अन्य लोगों को देश छोड़ना पड़ गया, जैसा कि इवान राकिटिच के मामले में हुआ, वो अपने परिवार के साथ स्विट्जरलैंड में जाकर बस गए थे। क्रोएशिया के लिए खेलने से पहले बार्सिलोना के यह स्टार फुटबॉलर स्विटजरलैंड के लिए कई जूनियर कैटेगरी में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
द प्लेयर ट्रिब्यून में छपे एक लेख में मॉड्रिक ने लिखा, 'बाल्कन में क्या हो रहा है, बचपन में ये समझना मुश्किल था।' उन्होंने स्वीकार किया, 'मेरे माता-पिता ने कभी मुझसे या मेरे भाई से युद्ध के बारे में बातें नहीं की क्योंकि इसमें उन्होंने अपने बहुत से चाहने वालों को खो दिया था। हालांकि, हम भाग्यशाली रहे।'
अपने बचपन के दौरान विस्थापित एक और खिलाड़ी मारियो मांद्ज़ुकित्श हैं, जिनके निर्णायक गोल की बदौलत इंग्लैंड के ख़िलाफ़ सेमीफ़ाइनल में क्रोएशिया को जीत मिली। वो जर्मनी में अपने परिवार के साथ बड़े हुए हैं।
लेकिन मॉड्रिक को अपने देश में ही रहना पड़ा, हालांकि सच्चाई यह है कि भले ही प्रतिद्वंद्वी के रूप में उन्हें बारूदी सुरंगों का सामना नहीं करना पड़ा लेकिन सर्बियाई सेना की बमबारी खत्म होने के बाद उन्हें जेडार की सड़कों पर खेलना पड़ा।
मॉड्रिक जैसे बच्चों को यह चेतावनी भी दी गई थी कि वो खतरनाक इलाकों में पहुंच जाने के जोखिम के कारण शरणार्थी कैंपों से बहुत दूर न जाएं। 2008 में मॉड्रिक ने युद्ध के बारे में कहा था, 'मैं केवल छह साल का था और तब वास्तव में बहुत कठिन समय था। मुझे अच्छी तरह याद है लेकिन इसके बारे में आप सोचना भी नहीं चाहते।
उन्होंने कहा, 'युद्ध ने मुझे मजबूत बना दिया, मैं न तो इसे याद रखना चाहता हूं और न ही इसे भूलना चाहता हूं।'
32 वर्षीय लुका मॉड्रिक ने अपने करियर के इस मुकाम पर पहुंचने के लिए कई चुनौतियों का सामना किया है। 9 सितंबर 1985 को जन्में मोद्रिच जब 10 साल के थे तो कई कोच ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि वो बेहद कमजोर और शर्मीले हैं लिहाजा फुटबॉल नहीं खेल सकते।
हालांकि एक एक पुराने कोच ने उन्हें डायनामो जेग्रेब क्लब का ट्रायल दिलवाया। 16 साल की उम्र में मॉड्रिक ने डायनेमो के साथ अनुबंध हुआ। यहां उनकी प्रतिभा में निखार आया और फिर वो क्लब और देश के लिए खेलने लगे।
2006 में मोड्रिक ने अर्जेंटीना का खिलाफ अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की। वर्ल्ड कप सेमीफाइनल तक मोड्रिक अपने देश के लिए 112 मैच खेल चुके हैं। वो इंग्लैंड में फुटबॉल क्लब टॉन्टम (2008-12) से भी खेल चुके हैं और फिलहाल 2012 से स्पैनिश क्लब रियाल मैड्रिड के लिए खेल रहे हैं।
मॉड्रिक दुनिया के सबसे कीमती फुटबॉलर्स में से एक हैं और छह बार क्रोएशियाई फुटबॉलर ऑफ द ईयर चुने जा चुके हैं। वो ऐसे एकमात्र क्रोएशियाई फुटबॉलर भी हैं जिन्हें फीफा वर्ल्ड XI की टीम में शामिल किया गया है।
क्रोएशिया के कप्तान लुका मॉड्रिक की कहानी काफी प्रेरणादायी है। फीफा विश्व कप में शानदार प्रदर्शन कर अपनी टीम को फाइनल तक पहुंचाने वाले इस खिलाड़ी को अब वर्ष के सर्वश्रेष्ठ फुटबॉलर के अवार्ड से नवाजा गया है। इसके साथ ही लुका ने रोनाल्डो-मेसी की दशकों तक चली आ रही बादशाहत को खत्म किया।
उनका बचपन रिफ्यूजी कैंप और बम धमाकों की आवाज के बीच गुजरा। डर के साए में भी मॉड्रिक का फुटबॉल के लिए लगाव कम नहीं हुआ और आज नतीजा सबके सामने है।
जब वह 6 साल के थे, तो उनके दादा को गोली मार दी गई थी। उनका परिवार युद्ध क्षेत्र में शरणार्थी था। वह ग्रेनेड के विस्फोटों के बीच बड़े हुए। उनके कोच कहते हैं कि वो फुटबॉल खेलने के लिए बहुत कमजोर थे। उसी मॉड्रिक ने अपने देश क्रोएशिया को पहली बार फुटबॉल वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंचा दिया।
लुका मॉड्रिक उन कुछ युवकों में से हैं जो क्रोएशियाई फुटबॉल की स्वर्णिम कहानी लिख रहे हैं। वह और उनकी टीम के कुछ खिलाड़ियों ने अपने बचपन में खूनी संघर्ष और फिर 1991 में यूगोस्लाविया के पतन को देखा है।
स्लोवेनिया और क्रोएशिया की एकतरफा आजादी की घोषणा के बाद यूगोस्लावियाई सेना की खूनी प्रतिक्रिया हुई।
विस्थापन और निर्वासन
उस दौरान पूरे इलाके में फैली सांप्रदायिक हिंसा की वजह से टीम के उनके एक अन्य साथी वेद्रन कोर्लुका (टीम के सबसे प्रसिद्ध खिलाड़ियों में से एक) को भी क्रोएशिया में एक शरणार्थी के रूप में रहने के लिए मजबूर किया गया था।
कई अन्य लोगों को देश छोड़ना पड़ गया, जैसा कि इवान राकिटिच के मामले में हुआ, वो अपने परिवार के साथ स्विट्जरलैंड में जाकर बस गए थे। क्रोएशिया के लिए खेलने से पहले बार्सिलोना के यह स्टार फुटबॉलर स्विटजरलैंड के लिए कई जूनियर कैटेगरी में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।
द प्लेयर ट्रिब्यून में छपे एक लेख में मॉड्रिक ने लिखा, 'बाल्कन में क्या हो रहा है, बचपन में ये समझना मुश्किल था।' उन्होंने स्वीकार किया, 'मेरे माता-पिता ने कभी मुझसे या मेरे भाई से युद्ध के बारे में बातें नहीं की क्योंकि इसमें उन्होंने अपने बहुत से चाहने वालों को खो दिया था। हालांकि, हम भाग्यशाली रहे।'
अपने बचपन के दौरान विस्थापित एक और खिलाड़ी मारियो मांद्ज़ुकित्श हैं, जिनके निर्णायक गोल की बदौलत इंग्लैंड के ख़िलाफ़ सेमीफ़ाइनल में क्रोएशिया को जीत मिली। वो जर्मनी में अपने परिवार के साथ बड़े हुए हैं।
लेकिन मॉड्रिक को अपने देश में ही रहना पड़ा, हालांकि सच्चाई यह है कि भले ही प्रतिद्वंद्वी के रूप में उन्हें बारूदी सुरंगों का सामना नहीं करना पड़ा लेकिन सर्बियाई सेना की बमबारी खत्म होने के बाद उन्हें जेडार की सड़कों पर खेलना पड़ा।
मॉड्रिक जैसे बच्चों को यह चेतावनी भी दी गई थी कि वो खतरनाक इलाकों में पहुंच जाने के जोखिम के कारण शरणार्थी कैंपों से बहुत दूर न जाएं। 2008 में मॉड्रिक ने युद्ध के बारे में कहा था, 'मैं केवल छह साल का था और तब वास्तव में बहुत कठिन समय था। मुझे अच्छी तरह याद है लेकिन इसके बारे में आप सोचना भी नहीं चाहते।
उन्होंने कहा, 'युद्ध ने मुझे मजबूत बना दिया, मैं न तो इसे याद रखना चाहता हूं और न ही इसे भूलना चाहता हूं।'
मॉड्रिक का करियर
32 वर्षीय लुका मॉड्रिक ने अपने करियर के इस मुकाम पर पहुंचने के लिए कई चुनौतियों का सामना किया है। 9 सितंबर 1985 को जन्में मोद्रिच जब 10 साल के थे तो कई कोच ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि वो बेहद कमजोर और शर्मीले हैं लिहाजा फुटबॉल नहीं खेल सकते।
हालांकि एक एक पुराने कोच ने उन्हें डायनामो जेग्रेब क्लब का ट्रायल दिलवाया। 16 साल की उम्र में मॉड्रिक ने डायनेमो के साथ अनुबंध हुआ। यहां उनकी प्रतिभा में निखार आया और फिर वो क्लब और देश के लिए खेलने लगे।
2006 में मोड्रिक ने अर्जेंटीना का खिलाफ अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की। वर्ल्ड कप सेमीफाइनल तक मोड्रिक अपने देश के लिए 112 मैच खेल चुके हैं। वो इंग्लैंड में फुटबॉल क्लब टॉन्टम (2008-12) से भी खेल चुके हैं और फिलहाल 2012 से स्पैनिश क्लब रियाल मैड्रिड के लिए खेल रहे हैं।
मॉड्रिक दुनिया के सबसे कीमती फुटबॉलर्स में से एक हैं और छह बार क्रोएशियाई फुटबॉलर ऑफ द ईयर चुने जा चुके हैं। वो ऐसे एकमात्र क्रोएशियाई फुटबॉलर भी हैं जिन्हें फीफा वर्ल्ड XI की टीम में शामिल किया गया है।