न्यूज डेस्क, अमर उजाला, आगरा
Updated Fri, 08 Nov 2019 02:00 PM IST
तीन साल पहले आठ नवंबर को की गई नोटबंदी ने ताजनगरी के जूता उद्योग को जो चोट पहुंचाई, उससे जूते का कुटीर उद्योग अब तक उबर नहीं पाया है। जूता कारोबार में नकदी का चक्र घूम नहीं रहा, वहीं जीएसटी ने कोढ़ में खाज का काम किया।
नोटबंदी से परेशान व्यापारियों को जीएसटी में टैक्स दरों और रिफंड की मुश्किलों ने उलझा दिया। घरेलू जूता कारोबार तीन साल बाद भी पटरी पर नहीं लौट पाया है। शहर में आठ हजार से ज्यादा छोटी इकाइयां जूते के निर्माण में लगी हैं जो देश में जूते की जरूरतों को 65 फीसदी पूरा करती हैं।
तीन साल पहले 8 नवंबर को जब 500 और एक हजार रुपये के नोट चलन से बंद किए गए तो दो माह तक शहर की 50 फीसदी घरेलू जूता निर्माण इकाइयां बंद रही थीं। कारखानेदारों के मुताबिक नोटबंदी से लगे झटकों से अब तक वो उबर नहीं पाए हैं।
आगरा जूता दस्तकार एसोसिएशन के अध्यक्ष धर्मेंद्र सोनी ने बताया कि नोटबंदी का फायदा सरकार को तो हुआ नहीं, हमें जबरदस्त नुकसान हो गया। यह पूरा बाजार उधारी पर चलता है। नकदी का संकट जैसा अब है, पहले कभी नहीं था। नोटबंदी से हमारी कमर टूट गई।
दस्तकारों को ज्यादा नुकसान
जूता दस्तकार फेडरेशन के अध्यक्ष भरत सिंह का कहना है कि नोटबंदी के बाद जो नियम लागू किए गए, उससे नकदी का संकट खड़ा हो गया। डिजिटल पेमेंट और नकदी की सीमा तय करने का नुकसान हमें ज्यादा हुआ है।
आगरा शू फैक्टर्स फेडरेशन के अध्यक्ष गागन दास रामानी ने कहा कि सरकार का नोटबंदी का प्रयोग हम पर काफी भारी पड़ा है। नोटबंदी तो फेल हुई, लेकिन हमारा जमा जमाया कारोबार मुश्किल में आ गया। उत्पादन कम हुआ तो बेरोजगारी भी बढ़ गई।
जीएसटी ने उलझन बढ़ाई
आगरा शू मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष जितेंद्र त्रिलोकानी ने कहा कि नोटबंदी का असली असर तो इसी साल देखने को मिला है। तात्कालिक नुकसान के बाद अब दो पाटों में हम फंस गए हैं। नगदी के संकट के साथ जीएसटी की उलझनों ने परेशानी बढ़ाई है, जिसका बुरा असर पड़ रहा है।
तीन साल पहले आठ नवंबर को की गई नोटबंदी ने ताजनगरी के जूता उद्योग को जो चोट पहुंचाई, उससे जूते का कुटीर उद्योग अब तक उबर नहीं पाया है। जूता कारोबार में नकदी का चक्र घूम नहीं रहा, वहीं जीएसटी ने कोढ़ में खाज का काम किया।
नोटबंदी से परेशान व्यापारियों को जीएसटी में टैक्स दरों और रिफंड की मुश्किलों ने उलझा दिया। घरेलू जूता कारोबार तीन साल बाद भी पटरी पर नहीं लौट पाया है। शहर में आठ हजार से ज्यादा छोटी इकाइयां जूते के निर्माण में लगी हैं जो देश में जूते की जरूरतों को 65 फीसदी पूरा करती हैं।
तीन साल पहले 8 नवंबर को जब 500 और एक हजार रुपये के नोट चलन से बंद किए गए तो दो माह तक शहर की 50 फीसदी घरेलू जूता निर्माण इकाइयां बंद रही थीं। कारखानेदारों के मुताबिक नोटबंदी से लगे झटकों से अब तक वो उबर नहीं पाए हैं।
नगदी के संकट से जूझ रहीं जूता इकाइयां
आगरा जूता दस्तकार एसोसिएशन के अध्यक्ष धर्मेंद्र सोनी ने बताया कि नोटबंदी का फायदा सरकार को तो हुआ नहीं, हमें जबरदस्त नुकसान हो गया। यह पूरा बाजार उधारी पर चलता है। नकदी का संकट जैसा अब है, पहले कभी नहीं था। नोटबंदी से हमारी कमर टूट गई।
दस्तकारों को ज्यादा नुकसान
जूता दस्तकार फेडरेशन के अध्यक्ष भरत सिंह का कहना है कि नोटबंदी के बाद जो नियम लागू किए गए, उससे नकदी का संकट खड़ा हो गया। डिजिटल पेमेंट और नकदी की सीमा तय करने का नुकसान हमें ज्यादा हुआ है।
उत्पादन कम हुआ, बेरोजगारी बढ़ी
आगरा शू फैक्टर्स फेडरेशन के अध्यक्ष गागन दास रामानी ने कहा कि सरकार का नोटबंदी का प्रयोग हम पर काफी भारी पड़ा है। नोटबंदी तो फेल हुई, लेकिन हमारा जमा जमाया कारोबार मुश्किल में आ गया। उत्पादन कम हुआ तो बेरोजगारी भी बढ़ गई।
जीएसटी ने उलझन बढ़ाई
आगरा शू मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष जितेंद्र त्रिलोकानी ने कहा कि नोटबंदी का असली असर तो इसी साल देखने को मिला है। तात्कालिक नुकसान के बाद अब दो पाटों में हम फंस गए हैं। नगदी के संकट के साथ जीएसटी की उलझनों ने परेशानी बढ़ाई है, जिसका बुरा असर पड़ रहा है।