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यूरोपियन यूनियन (ईयू) की शिखर बैठक में भी कोरोना पैकेज को मंजूरी का रास्ता नहीं खुल सका। 1.82 खरब यूरो के बजट-एंड-रिकवरी पैकेज के साथ ये शर्त जोड़ी गई है कि जिन सदस्य देशों में कानून के शासन के सिद्धांत का उल्लंघन होगा, उन्हें इस पैकेज से रकम नहीं मिलेगी। इस शर्त से नाराज हंगरी और पोलैंड ने सोमवार को ईयू के राजदूतों की बैठक में इस पैकेज को वीटो कर दिया था। तब उम्मीद जताई गई थी कि शिखर बैठक में इस मसले का समाधान निकल आएगा। लेकिन इस बीच हंगरी और पोलैंड को स्लोवेनिया का भी साथ मिल गया है।
बैठक से एक दिन पहले यानी बुधवार को स्लोवेनिया के प्रधानमंत्री जनेज जानसा ने ईयू परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल को लिखे पत्र कहा- कुछ समूह ईयू के कुछ सदस्य देशों को दंडित करने के लिए खुलेआम एक उपाय के इस्तेमाल की धमकी दे रहे हैं, जिसे गलत रूप में ‘कानून का राज’ कह कर पेश किया जा रहा है। अपने चार पेज के पत्र में जानसा ने ईयू पर दोहरे मानदंड अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि 2004 के बाद ईयू में शामिल हुए पूर्व कम्युनिस्ट देशों के साथ अलग व्यवहार किया जा रहा है, लेकिन ये देश अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता पर समझौता नहीं करेंगे।
पोलैंड के प्रधानमंत्री ने ईयू की बैठक में यहां तक कह दिया कि ईयू का वजूद ही अपने-आप में कानून के राज के सिद्धांत का उल्लंघन है। हंगरी पहले ही ईयू पर दोहरे मानदंड अपनाने के आरोप लगाता रहा है। उसके नेताओं कहना है कि ऑस्ट्रिया के राष्ट्रपति चुनाव में कानून का घोर उल्लंघन हुआ, फ्रांस में येलो वेस्ट आंदोलनकारियों का क्रूर दमन किया जा रहा है, और बेल्जियम में स्लोवाक नागरिकों के साथ पुलिस दुर्व्यवहार करती है। लेकिन ईयू इन मामलों को कानून के राज का उल्लंघन नहीं मानता।
ईयू के निशाने पर रोमानिया भी रहा है। लेकिन उसके प्रधानमंत्री लुडोविच ऑर्बन ने हंगरी और पोलैंड से अनुरोध किया कि वे कोरोना पैकेज के साथ जोड़े गए कानून के राज की शर्त को स्वीकार कर लें। उन्होंने कहा- जिन देशों की सरकारें इस शर्त का विरोध कर रही हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि इस पैकेज के लिए जनता में विश्वास पैदा करना जरूरी है। इसके बिना यूरोप की अर्थव्यवस्था में फिर से जान नहीं फूंकी जा सकेगी। जब अर्थव्यवस्था सुधरेगी तो उसका लाभ पोलैंड और हंगरी के नागरिकों को भी मिलेगा।
ईयू की शिखर बैठक में एक मुद्दा ब्रेग्जिट भी था, लेकिन इस पर भी सहमति नहीं बन पाई। इसे देखते हुए कि तय समयसीमा 31 दिसंबर तक ब्रेग्जिट करार नहीं हो पाएगा, फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों और नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री मार्क रूट ने कहा कि यूरोपीय आयोग को बीच की अवधि के लिए जरूरी इंतजाम करने चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसा नहीं हुआ तो यूरोप के भीतर कारोबार में भारी रुकावट आ जाएगी।
इन अहम मुद्दों पर सहमति बनाने में नाकाम रहे ईयू नेता सिर्फ इस बात पर संतुष्ट हो पाए कि कोरोना वायरस के वैक्सीन को दिसंबर तक मंजूरी मिल जाएगी। उन्होंने वैक्सीन के उत्पादन और वितरण संबंधी संभावित दिक्कतों की चर्चा की। इस बात पर सहमति बनी कि लोग टीका लगवाएं इसके लिए बड़े पैमाने पर प्रचार अभियान छेड़ा जाएगा। ईयू नेताओं ने कहा कि क्रिसमस और नए साल पर लोग यात्राओं और उत्सवों को सीमित रखें, इसके लिए भी लोगों को समझाने का अभियान चलाया जाएगा।
वर्चुअल शिखर बैठक में कोई खास कामयाबी नहीं मिलने के बाद ईयू नेताओं ने फैसला किया कि दिसंबर में वे ब्रसेल्स में निजी तौर पर उपस्थित होकर मीटिंग करेंगे। फिलहाल, यूरोप को कोरोना पैकेज के लिए इंतजार करना होगा।
सार
ईयू नेताओं ने कहा कि क्रिसमस और नए साल पर लोग यात्राओं और उत्सवों को सीमित रखें, इसके लिए भी लोगों को समझाने का अभियान चलाया जाएगा...
विस्तार
यूरोपियन यूनियन (ईयू) की शिखर बैठक में भी कोरोना पैकेज को मंजूरी का रास्ता नहीं खुल सका। 1.82 खरब यूरो के बजट-एंड-रिकवरी पैकेज के साथ ये शर्त जोड़ी गई है कि जिन सदस्य देशों में कानून के शासन के सिद्धांत का उल्लंघन होगा, उन्हें इस पैकेज से रकम नहीं मिलेगी। इस शर्त से नाराज हंगरी और पोलैंड ने सोमवार को ईयू के राजदूतों की बैठक में इस पैकेज को वीटो कर दिया था। तब उम्मीद जताई गई थी कि शिखर बैठक में इस मसले का समाधान निकल आएगा। लेकिन इस बीच हंगरी और पोलैंड को स्लोवेनिया का भी साथ मिल गया है।
बैठक से एक दिन पहले यानी बुधवार को स्लोवेनिया के प्रधानमंत्री जनेज जानसा ने ईयू परिषद के अध्यक्ष चार्ल्स मिशेल को लिखे पत्र कहा- कुछ समूह ईयू के कुछ सदस्य देशों को दंडित करने के लिए खुलेआम एक उपाय के इस्तेमाल की धमकी दे रहे हैं, जिसे गलत रूप में ‘कानून का राज’ कह कर पेश किया जा रहा है। अपने चार पेज के पत्र में जानसा ने ईयू पर दोहरे मानदंड अपनाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि 2004 के बाद ईयू में शामिल हुए पूर्व कम्युनिस्ट देशों के साथ अलग व्यवहार किया जा रहा है, लेकिन ये देश अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता पर समझौता नहीं करेंगे।
पोलैंड के प्रधानमंत्री ने ईयू की बैठक में यहां तक कह दिया कि ईयू का वजूद ही अपने-आप में कानून के राज के सिद्धांत का उल्लंघन है। हंगरी पहले ही ईयू पर दोहरे मानदंड अपनाने के आरोप लगाता रहा है। उसके नेताओं कहना है कि ऑस्ट्रिया के राष्ट्रपति चुनाव में कानून का घोर उल्लंघन हुआ, फ्रांस में येलो वेस्ट आंदोलनकारियों का क्रूर दमन किया जा रहा है, और बेल्जियम में स्लोवाक नागरिकों के साथ पुलिस दुर्व्यवहार करती है। लेकिन ईयू इन मामलों को कानून के राज का उल्लंघन नहीं मानता।
ईयू के निशाने पर रोमानिया भी रहा है। लेकिन उसके प्रधानमंत्री लुडोविच ऑर्बन ने हंगरी और पोलैंड से अनुरोध किया कि वे कोरोना पैकेज के साथ जोड़े गए कानून के राज की शर्त को स्वीकार कर लें। उन्होंने कहा- जिन देशों की सरकारें इस शर्त का विरोध कर रही हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि इस पैकेज के लिए जनता में विश्वास पैदा करना जरूरी है। इसके बिना यूरोप की अर्थव्यवस्था में फिर से जान नहीं फूंकी जा सकेगी। जब अर्थव्यवस्था सुधरेगी तो उसका लाभ पोलैंड और हंगरी के नागरिकों को भी मिलेगा।
ईयू की शिखर बैठक में एक मुद्दा ब्रेग्जिट भी था, लेकिन इस पर भी सहमति नहीं बन पाई। इसे देखते हुए कि तय समयसीमा 31 दिसंबर तक ब्रेग्जिट करार नहीं हो पाएगा, फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों और नीदरलैंड्स के प्रधानमंत्री मार्क रूट ने कहा कि यूरोपीय आयोग को बीच की अवधि के लिए जरूरी इंतजाम करने चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसा नहीं हुआ तो यूरोप के भीतर कारोबार में भारी रुकावट आ जाएगी।
इन अहम मुद्दों पर सहमति बनाने में नाकाम रहे ईयू नेता सिर्फ इस बात पर संतुष्ट हो पाए कि कोरोना वायरस के वैक्सीन को दिसंबर तक मंजूरी मिल जाएगी। उन्होंने वैक्सीन के उत्पादन और वितरण संबंधी संभावित दिक्कतों की चर्चा की। इस बात पर सहमति बनी कि लोग टीका लगवाएं इसके लिए बड़े पैमाने पर प्रचार अभियान छेड़ा जाएगा। ईयू नेताओं ने कहा कि क्रिसमस और नए साल पर लोग यात्राओं और उत्सवों को सीमित रखें, इसके लिए भी लोगों को समझाने का अभियान चलाया जाएगा।
वर्चुअल शिखर बैठक में कोई खास कामयाबी नहीं मिलने के बाद ईयू नेताओं ने फैसला किया कि दिसंबर में वे ब्रसेल्स में निजी तौर पर उपस्थित होकर मीटिंग करेंगे। फिलहाल, यूरोप को कोरोना पैकेज के लिए इंतजार करना होगा।