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पश्चिमी देशों में कोरोना वायरस कहर बरपा रहा है लेकिन जर्मनी इकलौता ऐसा देश है, जहां बड़ी तादाद में संक्रमितों के बावजूद मौतों की संख्या बेहद कम है। मंगलवार तक इस देश में करीब 105519 हजार लोग संक्रमित हुए। इस मामले में अमेरिका, इटली और स्पेन ही उससे आगे थे लेकिन यहां मृत्यु दर इसके पड़ोसी देशों की तुलना में बेहद कम रही है।
जर्मनी में करीब 1902 लोगों की ही जान गई है। इस हिसाब से उसकी मृत्यु दर महज 1.4 फीसदी है। वहीं, इटली में यह 12 फीसदी, स्पेन, फ्रांस और ब्रिटेन में 10 फीसदी, चीन में 4 फीसदी व अमेरिका में 2.5 फीसदी रही है। यहां तक कि दक्षिण कोरिया, जो कर्व फ्लैट्निंग के मॉडल के लिए जाना गया, वहां भी मृत्यु दर 1.7 फीसदी रही है।
पता लगते ही शुरू हुई लोगों की ट्रैकिंग
जर्मनी में मृत्यु दर कम रख पाने के पीछे ट्रैकिंग का बड़ा योगदान रहा है। किसी के पॉजिटिव पाए जाने पर लक्षण न मिलने के बाद भी वह जिस-जिस से मिला था सभी की जांच की गई और उसे दो हफ्ते तक आइसोलेट रहने को कहा गया। इसी तरह पॉजिटिव की चेन पहचानी गई। जो कारगर रहा। वहीं, बाकी देश ऐसा नहीं कर पाए।
हालांकि, जर्मनी में मौत का आंकड़ा इतना कम रहने पर अमेरिका समेत कुछ देश उस पर आंकड़ों से खिलवाड़ का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन कई विशेषज्ञ तथ्यों के आधार पर जर्मनी के पक्ष में खड़े हैं। स्वास्थ्य तैयारियों के साथ-साथ चांसलर एंजेला मर्केल के लोगों के साथ दोस्ताना संवाद से भी देश में भरोसा बढ़ा। उनके द्वारा लगाए गए लॉकडाउन नियमों को विपक्षी दलों समेत सभी लोगों ने एक स्वर में माना। उन्होंने जांच से इलाज तक बड़े तार्किक निर्णय लिए।
जनवरी मध्य तक जब काफी लोग वायरस की भयावहता का अंदाज नहीं लगा पाए थे तब बर्लिन स्थित एक अस्पताल ने जांच का फॉर्मूला बना ऑनलाइन पोस्ट भी कर दिया था। जर्मनी में पहला मामला फरवरी में आया था, तब तक देशभर में प्रयोगशालाओं ने जांच किटों का स्टॉक बनाने समेत अन्य तैयारियां कर ली थीं। वायरसविद डॉ. क्रिस्टियन द्रोस्तें के मुताबिक, संक्रमण पर काबू करने में हमारी प्रयोगशालाओं ने भूमिका निभाई, जहां बड़ी तादाद में जांच की गईं।
भविष्य की रणनीति के साथ काम...
जर्मनी ने आगे की योजना भी बना ली है। वहां अप्रैल अंत तक बड़े स्तर पर एंटीबॉडी अध्ययन किया जाएगा। इसके तहत जर्मनी में हर हफ्ते एक लाख लोगों की रैंडम सैंपलिंग होगी ताकि लोगों में प्रतिरक्षा बनने का पता लगाया जा सके।
पश्चिमी देशों में कोरोना वायरस कहर बरपा रहा है लेकिन जर्मनी इकलौता ऐसा देश है, जहां बड़ी तादाद में संक्रमितों के बावजूद मौतों की संख्या बेहद कम है। मंगलवार तक इस देश में करीब 105519 हजार लोग संक्रमित हुए। इस मामले में अमेरिका, इटली और स्पेन ही उससे आगे थे लेकिन यहां मृत्यु दर इसके पड़ोसी देशों की तुलना में बेहद कम रही है।
जर्मनी में करीब 1902 लोगों की ही जान गई है। इस हिसाब से उसकी मृत्यु दर महज 1.4 फीसदी है। वहीं, इटली में यह 12 फीसदी, स्पेन, फ्रांस और ब्रिटेन में 10 फीसदी, चीन में 4 फीसदी व अमेरिका में 2.5 फीसदी रही है। यहां तक कि दक्षिण कोरिया, जो कर्व फ्लैट्निंग के मॉडल के लिए जाना गया, वहां भी मृत्यु दर 1.7 फीसदी रही है।
पता लगते ही शुरू हुई लोगों की ट्रैकिंग
जर्मनी में मृत्यु दर कम रख पाने के पीछे ट्रैकिंग का बड़ा योगदान रहा है। किसी के पॉजिटिव पाए जाने पर लक्षण न मिलने के बाद भी वह जिस-जिस से मिला था सभी की जांच की गई और उसे दो हफ्ते तक आइसोलेट रहने को कहा गया। इसी तरह पॉजिटिव की चेन पहचानी गई। जो कारगर रहा। वहीं, बाकी देश ऐसा नहीं कर पाए।
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आंकड़े छिपाने के कई देशों के आरोप नहीं टिक पाए
हालांकि, जर्मनी में मौत का आंकड़ा इतना कम रहने पर अमेरिका समेत कुछ देश उस पर आंकड़ों से खिलवाड़ का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन कई विशेषज्ञ तथ्यों के आधार पर जर्मनी के पक्ष में खड़े हैं। स्वास्थ्य तैयारियों के साथ-साथ चांसलर एंजेला मर्केल के लोगों के साथ दोस्ताना संवाद से भी देश में भरोसा बढ़ा। उनके द्वारा लगाए गए लॉकडाउन नियमों को विपक्षी दलों समेत सभी लोगों ने एक स्वर में माना। उन्होंने जांच से इलाज तक बड़े तार्किक निर्णय लिए।
व्यापक जांच रही कारगर
जनवरी मध्य तक जब काफी लोग वायरस की भयावहता का अंदाज नहीं लगा पाए थे तब बर्लिन स्थित एक अस्पताल ने जांच का फॉर्मूला बना ऑनलाइन पोस्ट भी कर दिया था। जर्मनी में पहला मामला फरवरी में आया था, तब तक देशभर में प्रयोगशालाओं ने जांच किटों का स्टॉक बनाने समेत अन्य तैयारियां कर ली थीं। वायरसविद डॉ. क्रिस्टियन द्रोस्तें के मुताबिक, संक्रमण पर काबू करने में हमारी प्रयोगशालाओं ने भूमिका निभाई, जहां बड़ी तादाद में जांच की गईं।
भविष्य की रणनीति के साथ काम...
जर्मनी ने आगे की योजना भी बना ली है। वहां अप्रैल अंत तक बड़े स्तर पर एंटीबॉडी अध्ययन किया जाएगा। इसके तहत जर्मनी में हर हफ्ते एक लाख लोगों की रैंडम सैंपलिंग होगी ताकि लोगों में प्रतिरक्षा बनने का पता लगाया जा सके।