पढ़ें अमर उजाला ई-पेपर
कहीं भी, कभी भी।
*Yearly subscription for just ₹299 Limited Period Offer. HURRY UP!
कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने की होड़ में फिलहाल चीन पिछड़ गया है। पिछले महीने अमेरिका की मशहूर पत्रिका फॉरेन अफेयर्स ने ये खबर ब्रेक की थी कि कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में चीन सबसे आगे चल रहा है। इस पत्रिका की रिपोर्ट में कहा गया था कि चीन सबसे पहले बाजार में अपनी वैक्सीन उतार देगा। रिपोर्ट के मुताबिक, तब तक तमाम परीक्षणों के बीच चीन में बन रही वैक्सीन खरी उतरी थी। लेकिन अब मशहूर ब्रिटिश मेडिकल जर्नल द लासेंट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, चीन का वैक्सीन कोविड-19 के मरीजों में निम्न स्तर का एंटीबॉडी ही बना पा रहा है। ये वैक्सीन चीन की कंपनी सिनोवाक बायोटेक ने बनाया है।
अमेरिकी कंपनियों की वैक्सीन 90 फीसदी प्रभावी
द लांसेट में छपी रिपोर्ट आरंभिक क्लीनिकल परीक्षणों पर आधारित है। इस रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी कंपनियों- फाइजर और मॉडेरना के वैक्सीन 90 फीसदी तक प्रभावी हैं। ब्रिटिश कंपनी एस्ट्राजेनेका का वैक्सीन 70 फीसदी तक प्रभावी है। वैसे एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन की परीक्षण विधि पर कुछ सवाल खड़े हो गए हैं, जिस कारण इस कंपनी ने अपने वैक्सीन का फिर से परीक्षण करने का फैसला किया है।
बता दें कि कोरोना वायरस का वैक्सीन बनाने का काम सबसे पहले चीन में शुरू हुआ था। अमेरिकी और यूरोपीय दवा कंपनियों ने बाद में ये काम शुरू किया। अब दो अमेरिकी कंपनियां उसे बाजार में उतारने को तैयार हैं। जानकारों के मुताबिक, एस्ट्रैजेनेका भी कुछ देर से उसे बाजार में उतारने में कामयाब हो जाएगी।
द लासेंट ने इस बात की पुष्टि की है कि सिनोवाक के वैक्सीन में एंटीबॉडीज हैं और उसमें सुरक्षा से संबंधित कोई कमी नहीं है। पत्रिका का कहना है कि इसलिए इसका क्लीनिकल ट्रायल जारी रखा जा सकता है। सिनोवाक के डायरेक्टर मेंग वेइनिंग ने कहा है कि इस वैक्सीन का तीसरे चरण का ट्रायल सहज ढंग से चल रहा है। इसके आंकड़े दिसंबर में उपलब्ध हो जाएंगे।
मेंग के मुताबिक, अब तक के परीक्षणों से ये संकेत मिला है कि 'कोरोनावैक' नाम से आने वाले उनके कंपनी के वैक्सीन को मानव शरीर में लगाने के चार हफ्तों के बाद एंटीबॉडी बनने लगते हैं। इस वैक्सीन की दो खूराकें 14 दिन के अंतराल पर देनी होंगी। लेकिन इस खबर से दुनिया में वैसा उत्साह पैदा नहीं हुआ है, जैसा अमेरिकी कंपनियों की घोषणा से हुआ था। वैसे सिनोवाक की वेबसाइट पर दी गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि फाइजर और मोडेरना कंपनियों के वैक्सीन के भी पूरे आंकड़े अभी प्रकाशित नहीं हुए हैं। साथ ही समकक्ष विशेषज्ञों की समीक्षा भी अभी पूरी नहीं हुई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि ऐसा इसलिए नहीं हुआ है क्योंकि यह कई दौर में होने वाली प्रक्रिया है, जिसे कई हाथों से गुजरना पड़ता है।
11 और वैक्सीन पर चल रहा है काम
अभी जिन वैक्सीनों का एलान हुआ है, उनके अलावा दुनिया में 11 और वैक्सीन पर काम चल रहा है। उनमें चार चीन में बनाए जा रहे हैं। सिनोवाक कंपनी अपने वैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल टर्की, इंडोनेशिया और ब्राजील में कर रही है। इस महीने के आरंभ में ब्राजील ने सुरक्षा संबंधित चिंताओं को लेकर सिनोवाक के वैक्सीन के ट्रायल पर अपने यहां रोक लगा दी थी। लेकिन बाद में परीक्षण फिर शुरू हो गया।
चीन को मलाल दूसरे देश आगे निकले !
वैसे चीन ने अपने यहां बड़ी संख्या में लोगों पर सिनोवाक के वैक्सीन का परीक्षण किया है। निक्कई एशिया वेबसाइट पर छपी एक तस्वीर में दिखाया गया कि इस वैक्सीन को लगवाने के लिए बड़ी संख्या में लोग कतार में खड़े हैं। कुछ रिपोर्टों में ऐसे लोगों की संख्या दस लाख तक बताई गई है। ये खबर भी है कि चीन के नेशनल ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के पास चीनी वैक्सीन की मंजूरी के लिए अर्जी दे दी गई है। लेकिन चीन को फिर भी इसका मलाल जरूर रहेगा कि दूसरे देशों की कंपनियां वैक्सीन बनाने की होड़ में उससे आगे निकल गई हैं।
कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने की होड़ में फिलहाल चीन पिछड़ गया है। पिछले महीने अमेरिका की मशहूर पत्रिका फॉरेन अफेयर्स ने ये खबर ब्रेक की थी कि कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में चीन सबसे आगे चल रहा है। इस पत्रिका की रिपोर्ट में कहा गया था कि चीन सबसे पहले बाजार में अपनी वैक्सीन उतार देगा। रिपोर्ट के मुताबिक, तब तक तमाम परीक्षणों के बीच चीन में बन रही वैक्सीन खरी उतरी थी। लेकिन अब मशहूर ब्रिटिश मेडिकल जर्नल द लासेंट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, चीन का वैक्सीन कोविड-19 के मरीजों में निम्न स्तर का एंटीबॉडी ही बना पा रहा है। ये वैक्सीन चीन की कंपनी सिनोवाक बायोटेक ने बनाया है।
अमेरिकी कंपनियों की वैक्सीन 90 फीसदी प्रभावी
द लांसेट में छपी रिपोर्ट आरंभिक क्लीनिकल परीक्षणों पर आधारित है। इस रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी कंपनियों- फाइजर और मॉडेरना के वैक्सीन 90 फीसदी तक प्रभावी हैं। ब्रिटिश कंपनी एस्ट्राजेनेका का वैक्सीन 70 फीसदी तक प्रभावी है। वैसे एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन की परीक्षण विधि पर कुछ सवाल खड़े हो गए हैं, जिस कारण इस कंपनी ने अपने वैक्सीन का फिर से परीक्षण करने का फैसला किया है।
बता दें कि कोरोना वायरस का वैक्सीन बनाने का काम सबसे पहले चीन में शुरू हुआ था। अमेरिकी और यूरोपीय दवा कंपनियों ने बाद में ये काम शुरू किया। अब दो अमेरिकी कंपनियां उसे बाजार में उतारने को तैयार हैं। जानकारों के मुताबिक, एस्ट्रैजेनेका भी कुछ देर से उसे बाजार में उतारने में कामयाब हो जाएगी।
द लासेंट ने इस बात की पुष्टि की है कि सिनोवाक के वैक्सीन में एंटीबॉडीज हैं और उसमें सुरक्षा से संबंधित कोई कमी नहीं है। पत्रिका का कहना है कि इसलिए इसका क्लीनिकल ट्रायल जारी रखा जा सकता है। सिनोवाक के डायरेक्टर मेंग वेइनिंग ने कहा है कि इस वैक्सीन का तीसरे चरण का ट्रायल सहज ढंग से चल रहा है। इसके आंकड़े दिसंबर में उपलब्ध हो जाएंगे।
मेंग के मुताबिक, अब तक के परीक्षणों से ये संकेत मिला है कि 'कोरोनावैक' नाम से आने वाले उनके कंपनी के वैक्सीन को मानव शरीर में लगाने के चार हफ्तों के बाद एंटीबॉडी बनने लगते हैं। इस वैक्सीन की दो खूराकें 14 दिन के अंतराल पर देनी होंगी। लेकिन इस खबर से दुनिया में वैसा उत्साह पैदा नहीं हुआ है, जैसा अमेरिकी कंपनियों की घोषणा से हुआ था। वैसे सिनोवाक की वेबसाइट पर दी गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि फाइजर और मोडेरना कंपनियों के वैक्सीन के भी पूरे आंकड़े अभी प्रकाशित नहीं हुए हैं। साथ ही समकक्ष विशेषज्ञों की समीक्षा भी अभी पूरी नहीं हुई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि ऐसा इसलिए नहीं हुआ है क्योंकि यह कई दौर में होने वाली प्रक्रिया है, जिसे कई हाथों से गुजरना पड़ता है।
11 और वैक्सीन पर चल रहा है काम
अभी जिन वैक्सीनों का एलान हुआ है, उनके अलावा दुनिया में 11 और वैक्सीन पर काम चल रहा है। उनमें चार चीन में बनाए जा रहे हैं। सिनोवाक कंपनी अपने वैक्सीन के तीसरे चरण का ट्रायल टर्की, इंडोनेशिया और ब्राजील में कर रही है। इस महीने के आरंभ में ब्राजील ने सुरक्षा संबंधित चिंताओं को लेकर सिनोवाक के वैक्सीन के ट्रायल पर अपने यहां रोक लगा दी थी। लेकिन बाद में परीक्षण फिर शुरू हो गया।
चीन को मलाल दूसरे देश आगे निकले !
वैसे चीन ने अपने यहां बड़ी संख्या में लोगों पर सिनोवाक के वैक्सीन का परीक्षण किया है। निक्कई एशिया वेबसाइट पर छपी एक तस्वीर में दिखाया गया कि इस वैक्सीन को लगवाने के लिए बड़ी संख्या में लोग कतार में खड़े हैं। कुछ रिपोर्टों में ऐसे लोगों की संख्या दस लाख तक बताई गई है। ये खबर भी है कि चीन के नेशनल ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के पास चीनी वैक्सीन की मंजूरी के लिए अर्जी दे दी गई है। लेकिन चीन को फिर भी इसका मलाल जरूर रहेगा कि दूसरे देशों की कंपनियां वैक्सीन बनाने की होड़ में उससे आगे निकल गई हैं।