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मां सरस्वती की वरद् पुत्री श्री लता मंगेशकर जी का जन्म 28 सितंबर 1929 को रात्रि के 10 बजकर 45 मिनट पर अश्लेषा नक्षत्र के प्रथम चरण में मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में हुआ। इनके जन्म के समय वृषभ और मिथुन लग्न का संधिकाल चल रहा था। इसलिए जन्मलग्न में तो वृषभ राशि है और भाव लग्न में मिथुन राशि है। उस समय एकादशी तिथि और सिद्धियोग का भी संयोग था।
इन योगों ने दिलाई कामयाबी
वृषभ लग्न की इनकी कुंडली में लग्न में ही देवगुरु बृहस्पति, तृतीय पराक्रम भाव में कर्क राशिगत चंद्रमा, चतुर्थ सुख भाव में लग्नेश शुक्र एवं पंचम विद्याभाव में सूर्य और बुध बैठे हैं जो बुधादित्य योग भी बना रहे हैं। जबकि छठे शत्रु भाव में केतु और मंगल सप्तम आयु भाव में शनि एवं द्वादश व्यय भाव में राहु बैठे हैं।
बुध ने दी कोयल सी आवाज
लता जी के जीवन में सर्वाधिक प्रभावशाली ग्रह एवं वाणीभाव के कारक बुध का प्रभाव अत्यधिक रहा है। बुध योगकारक सूर्य के साथ पंचम भाव में बैठे हैं, जो शास्त्रों के अनुसार केंद्रभाव के स्वामी होकर त्रिकोणेश के साथ त्रिकोण में ही बैठे हैं और यह युति पंचम विद्या भाव में बनी है। क्योंकि पंचम भाव प्रेम का भी कारक है इसलिए लता ने अपनी वाणी से रोमांटिक गानों को ज्यादा आवाज दी है।
बृहस्पति ने बढ़ाया मान
कुंडली में वृषभ लग्न के सबसे बड़े राजयोग कारक ग्रह शनि अष्टम प्रताप, आयु और यश भाव में बैठे हैं, जिनकी पूर्ण दृष्टि वाणी भाव पर पड़ रही है। फलस्वरूप लता जी ने 12 वर्ष बाद ही प्रोफेशन तौर पर गायन आरंभ कर दिया। गुरुदेव बृहस्पति के लग्न में होने एवं चंद्रमा से एकादश होने के कारण इन्हें कई मानद उपाधियों विभूषित किया गया। इन्हीं सभी शुभ योगों ने इन्हें भारत रत्न भी दिलाया।
जानें क्यों नहीं हुआ विवाह
लता जी के जीवन में शनिदेव का प्रभाव सर्वाधिक रहा। पति भाव के स्वामी मंगल मारकेश होते हुए सप्तम भाव से हानि भाव में बैठ गए हैं। ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार किसी भी जातक की जन्मकुंडली में कोई भी ग्रह किसी भी भाव का स्वामी होकर यदि 6, 8 और 12वें भाव में बैठता है, तो वह जिस भाव का भी स्वामी होता है, उस भाव का फल क्षीण कर देता है। यहां पर मंगल प्रबल मारकेश भी है पति भाव के स्वामी भी हैं। जिसके परिणाम स्वरूप कुछ संयोग बनते हुए भी विवाह संभव नहीं हो पाया।
मां सरस्वती की वरद् पुत्री श्री लता मंगेशकर जी का जन्म 28 सितंबर 1929 को रात्रि के 10 बजकर 45 मिनट पर अश्लेषा नक्षत्र के प्रथम चरण में मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में हुआ। इनके जन्म के समय वृषभ और मिथुन लग्न का संधिकाल चल रहा था। इसलिए जन्मलग्न में तो वृषभ राशि है और भाव लग्न में मिथुन राशि है। उस समय एकादशी तिथि और सिद्धियोग का भी संयोग था।
इन योगों ने दिलाई कामयाबी
वृषभ लग्न की इनकी कुंडली में लग्न में ही देवगुरु बृहस्पति, तृतीय पराक्रम भाव में कर्क राशिगत चंद्रमा, चतुर्थ सुख भाव में लग्नेश शुक्र एवं पंचम विद्याभाव में सूर्य और बुध बैठे हैं जो बुधादित्य योग भी बना रहे हैं। जबकि छठे शत्रु भाव में केतु और मंगल सप्तम आयु भाव में शनि एवं द्वादश व्यय भाव में राहु बैठे हैं।
बुध ने दी कोयल सी आवाज
लता जी के जीवन में सर्वाधिक प्रभावशाली ग्रह एवं वाणीभाव के कारक बुध का प्रभाव अत्यधिक रहा है। बुध योगकारक सूर्य के साथ पंचम भाव में बैठे हैं, जो शास्त्रों के अनुसार केंद्रभाव के स्वामी होकर त्रिकोणेश के साथ त्रिकोण में ही बैठे हैं और यह युति पंचम विद्या भाव में बनी है। क्योंकि पंचम भाव प्रेम का भी कारक है इसलिए लता ने अपनी वाणी से रोमांटिक गानों को ज्यादा आवाज दी है।
बृहस्पति ने बढ़ाया मान
कुंडली में वृषभ लग्न के सबसे बड़े राजयोग कारक ग्रह शनि अष्टम प्रताप, आयु और यश भाव में बैठे हैं, जिनकी पूर्ण दृष्टि वाणी भाव पर पड़ रही है। फलस्वरूप लता जी ने 12 वर्ष बाद ही प्रोफेशन तौर पर गायन आरंभ कर दिया। गुरुदेव बृहस्पति के लग्न में होने एवं चंद्रमा से एकादश होने के कारण इन्हें कई मानद उपाधियों विभूषित किया गया। इन्हीं सभी शुभ योगों ने इन्हें भारत रत्न भी दिलाया।
जानें क्यों नहीं हुआ विवाह
लता जी के जीवन में शनिदेव का प्रभाव सर्वाधिक रहा। पति भाव के स्वामी मंगल मारकेश होते हुए सप्तम भाव से हानि भाव में बैठ गए हैं। ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार किसी भी जातक की जन्मकुंडली में कोई भी ग्रह किसी भी भाव का स्वामी होकर यदि 6, 8 और 12वें भाव में बैठता है, तो वह जिस भाव का भी स्वामी होता है, उस भाव का फल क्षीण कर देता है। यहां पर मंगल प्रबल मारकेश भी है पति भाव के स्वामी भी हैं। जिसके परिणाम स्वरूप कुछ संयोग बनते हुए भी विवाह संभव नहीं हो पाया।