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24 मई, 1971 की सुबह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की संसद मार्ग ब्रांच में कोई खास गहमागहमी नहीं थी। दिन के बारह बजने वाले थे। बैंक के चीफ कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा के सामने रखे फोन की घंटी बजी। फोन के दूसरे छोर पर एक शख्स ने अपना परिचय देते हुए कहा कि वो प्रधानमंत्री कार्यालय से प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीएन हक्सर बोल रहे हैं।
'प्रधानमंत्री को बांग्लादेश में एक गुप्त अभियान के लिए 60 लाख रुपये चाहिए। उन्होंने मल्होत्रा को निर्देश दिए कि वो बैंक से 60 लाख रुपये निकालें और संसद मार्ग पर ही बाइबल भवन के पास खड़े एक शख्स को पकड़ा दें। ये सारी रकम सौ रुपये के नोटों में होनी चाहिए। मल्होत्रा ये सब सुन कर थोड़े परेशान से हो गए।'
तभी प्रधानमंत्री कार्यालय से बोलने वाले व्यक्ति ने मल्होत्रा से कहा कि लीजिए प्रधानमंत्री से ही बात कर लीजिए। इसके कुछ सेकेंडों बाद एक महिला ने मल्होत्रा से कहा कि 'आप ये रुपये ले कर खुद बाइबिल भवन पर आइए। वहां एक शख्स आपसे मिलेगा और एक कोड कहेगा, 'बांग्लादेश का बाबू'। आपको इसके जवाब में कहना होगा 'बार एट लॉ'।इसके बाद आप वो रकम उनके हवाले कर दीजिएगा और इस मामले को पूरी तरह से गुप्त रखिएगा।'
कोडवर्ड बोल कर पैसे लिए
इसके बाद मल्होत्रा ने उप मुख्य कैशियर राम प्रकाश बत्रा से एक कैश बॉक्स में 60 लाख रुपये रखने के लिए कहा। बत्रा साढ़े 12 बजे स्ट्रॉन्ग रूम में घुसे और रुपये निकाल लाए। बत्रा और उनके एक और साथी एच आर खन्ना ने वो रुपये कैश बॉक्स में रखे। डिप्टी हेड कैशियर रुहेल सिंह ने रजिस्टर में हुई एंट्री पर अपने दस्तखत किए और पेमेंट वाउचर बनवाया। वाउचर पर मल्होत्रा ने अपने दस्तखत किए। इसके बाद दो चपरासियों ने उस कैश ट्रंक को बैंक की गाड़ी (डीएलए 760) में लोड किया और मल्होत्रा खुद उसे चला कर बाइबल हाउस के पास ले गए।
कार के रुकने के बाद एक लंबे और गोरे व्यक्ति ने आ कर वो कोड वर्ड उनके सामने बोला। फिर वो व्यक्ति बैंक की ही कार में बैठ गया और मल्होत्रा और वो सरदार पटेल मार्ग और पंचशील मार्ग के जंक्शन के टैक्सी स्टैंड पर पहुंचे। वहां पर उस व्यक्ति ने वो ट्रंक उतारा और मल्होत्रा से कहा कि वो प्रधानमंत्री निवास पर जा कर इस रकम का वाउचर ले लें।
इंदिरा गांधी की जीवनी लिखने वाली कैथरीन फ्रैंक लिखती हैं, 'मल्होत्रा ने वैसा ही किया जैसा उनसे कहा गया था। बाद में पता चला कि उस शख्स का नाम रुस्तम सोहराब नागरवाला है। वो कुछ समय पहले भारतीय सेना में कैप्टन के पद पर काम कर रहा था और उस समय भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के लिए काम कर रहा था।'
मल्होत्रा जब प्रधानमंत्री निवास पहुंचे तो उन्हें बतलाया गया कि इंदिरा गांधी संसद में हैं। वो तुरंत संसद भवन पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात इंदिरा गांधी से तो नहीं हुई, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव परमेश्वर नारायण हक्सर उनसे जरूर मिले। जब मल्होत्रा ने हक्सर को सारी बात बताई तो हक्सर के पैरों तले जमीन निकल गई। उन्होंने मल्होत्रा से कहा किसी ने आपको ठग लिया है।
प्रधानमंत्री कार्यालय से हमने इस तरह का कोई फोन नहीं किया। आप तुरंत पुलिस स्टेशन जाइए और इसकी रिपोर्ट करिए। इस बीच बैंक के डिप्टी हेड कैशियर रुहेल सिंह ने आरबी बत्रा से दो या तीन बार उन 60 लाख रुपयों के वाउचर के बारे में पूछा। बत्रा ने उन्हें आश्वासन दिया कि उन्हें वाउचर जल्द मिल जाएंगे। लेकिन जब उन्हें काफी देर तक वाउचर नहीं मिले और मल्होत्रा भी वापस नहीं लौटे तो उन्होंने इस मामले की रिपोर्ट अपने उच्चाधिकारियों से कर दी। फिर उनके कहने पर उन्होंने संसद मार्ग थाने पर इस पूरे मामले की एफआईआर लिखवाई। पुलिस ने मामला सामने आते ही जांच शुरू कर दी।
नागरवाला की गिरफ्तारी
इसके बाद पुलिस हरकत में आ गई और उसने रात करीब पौने दस बजे नागरवाला को दिल्ली गेट के पास पारसी धर्मशाला से पकड़ लिया और डिफेंस कॉलोनी में उसके एक मित्र के घर ए-277 से 59 लाख 95 हजार रुपये बरामद कर लिए। इस पूरे अभियान को 'ऑपरेशन तूफान' का नाम दिया गया।
उसी दिन आधी रात को दिल्ली पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि मामले को हल कर लिया गया है। पुलिस ने बताया कि टैक्सी स्टैंड से नागरवाला राजेंदर नगर के घर गया। वहां से उसने एक सूटकेस लिया। वहां से वो पुरानी दिल्ली के निकलसन रोड गया। वहां पर उसने ड्राइवर के सामने ट्रंक से निकाल कर सारे पैसे सूटकेस में रखे। ड्राइवर को ये राज अपने तक रखने के लिए उसने 500 रुपये टिप भी दी। उस समय संसद का सत्र चल रहा था।
इंदर मल्होत्रा इंदिरा गांधी की जीवनी 'इंदिरा गांधी अ पर्सनल एंड पोलिटिकल बायोग्राफी' में लिखते हैं, 'जैसी कि उम्मीद थी संसद में इसपर जम कर हंगामा हुआ। कुछ ऐसे सवाल थे जिनके जवाब सामने नहीं आ रहे थे। मसलन क्या इससे पहले भी कभी प्रधानमंत्री ने मल्होत्रा से बात की थी? अगर नहीं तो उसने इंदिरा गांधी की आवाज कैसे पहचानी? क्या बैंक का कैशियर सिर्फ जुबानी आदेश पर बैंक से इतनी बड़ी रकम निकाल सकता था? और सबसे बड़ी बात ये पैसा किसका था?'
27 मई, 1971 को नागरवाला ने अदालत में अपना जुर्म कबूल कर लिया। उसी दिन पुलिस ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के पी खन्ना की अदालत में नागरवाला के खिलाफ मुकदमा दायर किया। शायद भारत के न्यायिक इतिहास में ये पहली बार हुआ था कि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किए जाने के तीन दिन के अंदर उस पर मुकदमा चला कर सजा भी सुना दी गई।
रुस्तम नागलवाला को चार साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई और 1000 रुपये जुर्माना भी किया गया, लेकिन इस घटना की तह तक कोई नहीं पहुंच पाया। नागरवाला ने अदालत में ये कबूला कि उसने बांग्लादेश अभियान का बहाना बना कर मल्होत्रा को बेवकूफ बनाया था, लेकिन बाद में उसने अपना बयान बदल दिया और फैसले के खिलाफ अपील कर दी। उसकी मांग थी कि इस मुकदमे की सुनवाई फिर से हो, लेकिन 28 अक्तूबर, 1971 को नागरवाला की ये मांग ठुकरा दी गई।
जांच करने वाले पुलिस अधिकारी की कार दुर्घटना में मौत
इस केस में एक रहस्यमय मोड़ तब आया, जब 20 नवंबर 1971 को इस केस की तफ्तीश करने वाले एएसपी डी के कश्यप की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। वो उस समय अपने हनीमून के लिए जा रहे थे। इस बीच नागरवाला ने मशहूर साप्ताहिक अखबार करेंट के संपादक डी एफ कराका को पत्र लिख कर कहा कि वो उन्हें इंटरव्यू देना चाहते हैं।
कराका की तबियत खराब हो गई। इसलिए उन्होंने अपने असिस्टेंट को इंटरव्यू लेने भेजा, लेकिन नागरवाला ने उसे इंटरव्यू देने से इनकार कर दिया। फरवरी 1972 के शुरू में नागरवाला को तिहाड़ जेल के अस्पताल में भर्ती किया गया। वहां से उसे 21 फरवरी को जीबी पंत अस्पताल ले जाया गया, जहां दो मार्च को उसकी तबियत खराब हो गई और दो बजकर 15 मिनट पर दिल का दौरा पड़ने से नागरवाला का देहांत हो गया।
उस दिन उसकी 51वीं सालगिरह थी। इस पूरे प्रकरण से इंदिरा गांधी की बहुत बदनामी हुई थी। बाद में सागारिका घोष ने 'इंदिरा गांधी की जीवनी इंदिरा - इंडियाज मोस्ट पॉवरफुल प्राइम मिनिस्टर' में लिखा, 'क्या नागरवाला की प्रधानमंत्री की आवाज की नकल करने की हिम्मत पड़ती अगर उनको ताकतवर लोगों का समर्थन नहीं होता? मल्होत्रा ने पीएम हाउस से महज एक फोन कॉल के चलते बैंक से इतनी बड़ी रकम क्यों निकाली?'
1977 में जब जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई तो उसने नागरवाला की मौत की परिस्थितियों की जांच के आदेश दिए। इसके लिए जगनमोहन रेड्डी आयोग बनाया गया, लेकिन इस जांच में कुछ भी नया निकल कर सामने नहीं आया और नागरवाला की मौत में कुछ भी असमान्य नहीं पाया गया। लेकिन सवाल ये उठा कि अगर इस तरह का भुगतान करना भी था तो बैंक के मैनेजर से संपर्क स्थापित न कर चीफ कैशियर से क्यों संपर्क किया गया? क्या स्टेट बैंक को बिना चेक और वाउचर इतनी बड़ी रकम देने का अधिकार मिला हुआ था?
सीआईए का ऑपरेशन?
बाद में अखबारों में इस तरह की अपुष्ट खबरें छपीं कि ये पैसा रॉ के कहने पर बांग्लादेश ऑपरेशन के लिए निकलवाया गया था। रॉ पर एक किताब 'मिशन आरएंड डब्लू' लिखने वाले आर के यादव लिखते हैं कि 'उन्होंने इस संबंध में रॉ के पूर्व प्रमुख रामनाथ काव और उनके नंबर दो के संकरन नायर से पूछा था और दोनों ने इस बात का जोरदार खंडन किया था कि रॉ का इस केस से कोई लेनादेना था।' उन अधिकारियों ने इस बात का भी खंडन किया था कि रॉ का स्टेट बैंक में कोई गुप्त खाता था।
इंदिरा गांधी की मौत के दो साल बाद हिंदुस्तान टाइम्स के 11 और 12 नवंबर के अंक में ये आरोप लगाया गया था कि नागरवाला रॉ नहीं बल्कि सीआईए के लिए काम करता था और इस पूरे प्रकरण का मुख्य उद्देश्य इंदिरा गांधी को बदनाम करना था, खासतौर से उस समय जब उनकी बांग्लादेश नीति निक्सन प्रशासन को बहुत नागवार लग रही थी। लेकिन इस आरोप के समर्थन में कोई साक्ष्य नहीं पेश किए गए थे और इस सवाल का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया था कि एक बैंक के कैशियर ने बिना किसी दस्तावेज के इतनी बड़ी रकम किसी अनजान शख्स को कैसे हवाले कर दी थी।
हालांकि ठगी के बाद पांच हजार रुपये छोड़ कर पूरे 59 लाख 95 हजार रुपये बरामद हो गए थे और वो पांच हजार रुपये भी मल्होत्रा ने अपनी जेब से भरे थे। बैंक को इससे कोई माली नुकसान नहीं पहुंचा था लेकिन इससे उसकी खराब हुई छवि के कारण स्टेट बैंक ने मल्होत्रा को डिपार्टमेंटल इनक्वाएरी को बाद नौकरी से निकाल दिया था। दिलचस्प बात ये है करीब 10 साल बाद जब भारत में मारुति उद्योग की स्थापना हुई थी तो तत्कालीन सरकार ने वेद प्रकाश मल्होत्रा को इस कंपनी का चीफ अकाउंट्स ऑफिसर बना दिया था।
24 मई, 1971 की सुबह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की संसद मार्ग ब्रांच में कोई खास गहमागहमी नहीं थी। दिन के बारह बजने वाले थे। बैंक के चीफ कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा के सामने रखे फोन की घंटी बजी। फोन के दूसरे छोर पर एक शख्स ने अपना परिचय देते हुए कहा कि वो प्रधानमंत्री कार्यालय से प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीएन हक्सर बोल रहे हैं।
'प्रधानमंत्री को बांग्लादेश में एक गुप्त अभियान के लिए 60 लाख रुपये चाहिए। उन्होंने मल्होत्रा को निर्देश दिए कि वो बैंक से 60 लाख रुपये निकालें और संसद मार्ग पर ही बाइबल भवन के पास खड़े एक शख्स को पकड़ा दें। ये सारी रकम सौ रुपये के नोटों में होनी चाहिए। मल्होत्रा ये सब सुन कर थोड़े परेशान से हो गए।'
तभी प्रधानमंत्री कार्यालय से बोलने वाले व्यक्ति ने मल्होत्रा से कहा कि लीजिए प्रधानमंत्री से ही बात कर लीजिए। इसके कुछ सेकेंडों बाद एक महिला ने मल्होत्रा से कहा कि 'आप ये रुपये ले कर खुद बाइबिल भवन पर आइए। वहां एक शख्स आपसे मिलेगा और एक कोड कहेगा, 'बांग्लादेश का बाबू'। आपको इसके जवाब में कहना होगा 'बार एट लॉ'।इसके बाद आप वो रकम उनके हवाले कर दीजिएगा और इस मामले को पूरी तरह से गुप्त रखिएगा।'
कोडवर्ड बोल कर पैसे लिए
इसके बाद मल्होत्रा ने उप मुख्य कैशियर राम प्रकाश बत्रा से एक कैश बॉक्स में 60 लाख रुपये रखने के लिए कहा। बत्रा साढ़े 12 बजे स्ट्रॉन्ग रूम में घुसे और रुपये निकाल लाए। बत्रा और उनके एक और साथी एच आर खन्ना ने वो रुपये कैश बॉक्स में रखे। डिप्टी हेड कैशियर रुहेल सिंह ने रजिस्टर में हुई एंट्री पर अपने दस्तखत किए और पेमेंट वाउचर बनवाया। वाउचर पर मल्होत्रा ने अपने दस्तखत किए। इसके बाद दो चपरासियों ने उस कैश ट्रंक को बैंक की गाड़ी (डीएलए 760) में लोड किया और मल्होत्रा खुद उसे चला कर बाइबल हाउस के पास ले गए।
कार के रुकने के बाद एक लंबे और गोरे व्यक्ति ने आ कर वो कोड वर्ड उनके सामने बोला। फिर वो व्यक्ति बैंक की ही कार में बैठ गया और मल्होत्रा और वो सरदार पटेल मार्ग और पंचशील मार्ग के जंक्शन के टैक्सी स्टैंड पर पहुंचे। वहां पर उस व्यक्ति ने वो ट्रंक उतारा और मल्होत्रा से कहा कि वो प्रधानमंत्री निवास पर जा कर इस रकम का वाउचर ले लें।
हक्सर ने फोन करने से किया इनकार
इंदिरा गांधी की जीवनी लिखने वाली कैथरीन फ्रैंक लिखती हैं, 'मल्होत्रा ने वैसा ही किया जैसा उनसे कहा गया था। बाद में पता चला कि उस शख्स का नाम रुस्तम सोहराब नागरवाला है। वो कुछ समय पहले भारतीय सेना में कैप्टन के पद पर काम कर रहा था और उस समय भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ के लिए काम कर रहा था।'
मल्होत्रा जब प्रधानमंत्री निवास पहुंचे तो उन्हें बतलाया गया कि इंदिरा गांधी संसद में हैं। वो तुरंत संसद भवन पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात इंदिरा गांधी से तो नहीं हुई, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव परमेश्वर नारायण हक्सर उनसे जरूर मिले। जब मल्होत्रा ने हक्सर को सारी बात बताई तो हक्सर के पैरों तले जमीन निकल गई। उन्होंने मल्होत्रा से कहा किसी ने आपको ठग लिया है।
प्रधानमंत्री कार्यालय से हमने इस तरह का कोई फोन नहीं किया। आप तुरंत पुलिस स्टेशन जाइए और इसकी रिपोर्ट करिए। इस बीच बैंक के डिप्टी हेड कैशियर रुहेल सिंह ने आरबी बत्रा से दो या तीन बार उन 60 लाख रुपयों के वाउचर के बारे में पूछा। बत्रा ने उन्हें आश्वासन दिया कि उन्हें वाउचर जल्द मिल जाएंगे। लेकिन जब उन्हें काफी देर तक वाउचर नहीं मिले और मल्होत्रा भी वापस नहीं लौटे तो उन्होंने इस मामले की रिपोर्ट अपने उच्चाधिकारियों से कर दी। फिर उनके कहने पर उन्होंने संसद मार्ग थाने पर इस पूरे मामले की एफआईआर लिखवाई। पुलिस ने मामला सामने आते ही जांच शुरू कर दी।
नागरवाला की गिरफ्तारी
इसके बाद पुलिस हरकत में आ गई और उसने रात करीब पौने दस बजे नागरवाला को दिल्ली गेट के पास पारसी धर्मशाला से पकड़ लिया और डिफेंस कॉलोनी में उसके एक मित्र के घर ए-277 से 59 लाख 95 हजार रुपये बरामद कर लिए। इस पूरे अभियान को 'ऑपरेशन तूफान' का नाम दिया गया।
उसी दिन आधी रात को दिल्ली पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि मामले को हल कर लिया गया है। पुलिस ने बताया कि टैक्सी स्टैंड से नागरवाला राजेंदर नगर के घर गया। वहां से उसने एक सूटकेस लिया। वहां से वो पुरानी दिल्ली के निकलसन रोड गया। वहां पर उसने ड्राइवर के सामने ट्रंक से निकाल कर सारे पैसे सूटकेस में रखे। ड्राइवर को ये राज अपने तक रखने के लिए उसने 500 रुपये टिप भी दी। उस समय संसद का सत्र चल रहा था।
इंदर मल्होत्रा इंदिरा गांधी की जीवनी 'इंदिरा गांधी अ पर्सनल एंड पोलिटिकल बायोग्राफी' में लिखते हैं, 'जैसी कि उम्मीद थी संसद में इसपर जम कर हंगामा हुआ। कुछ ऐसे सवाल थे जिनके जवाब सामने नहीं आ रहे थे। मसलन क्या इससे पहले भी कभी प्रधानमंत्री ने मल्होत्रा से बात की थी? अगर नहीं तो उसने इंदिरा गांधी की आवाज कैसे पहचानी? क्या बैंक का कैशियर सिर्फ जुबानी आदेश पर बैंक से इतनी बड़ी रकम निकाल सकता था? और सबसे बड़ी बात ये पैसा किसका था?'
नागरवाला को चार साल की सजा
27 मई, 1971 को नागरवाला ने अदालत में अपना जुर्म कबूल कर लिया। उसी दिन पुलिस ने न्यायिक मजिस्ट्रेट के पी खन्ना की अदालत में नागरवाला के खिलाफ मुकदमा दायर किया। शायद भारत के न्यायिक इतिहास में ये पहली बार हुआ था कि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किए जाने के तीन दिन के अंदर उस पर मुकदमा चला कर सजा भी सुना दी गई।
रुस्तम नागलवाला को चार साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई और 1000 रुपये जुर्माना भी किया गया, लेकिन इस घटना की तह तक कोई नहीं पहुंच पाया। नागरवाला ने अदालत में ये कबूला कि उसने बांग्लादेश अभियान का बहाना बना कर मल्होत्रा को बेवकूफ बनाया था, लेकिन बाद में उसने अपना बयान बदल दिया और फैसले के खिलाफ अपील कर दी। उसकी मांग थी कि इस मुकदमे की सुनवाई फिर से हो, लेकिन 28 अक्तूबर, 1971 को नागरवाला की ये मांग ठुकरा दी गई।
जांच करने वाले पुलिस अधिकारी की कार दुर्घटना में मौत
इस केस में एक रहस्यमय मोड़ तब आया, जब 20 नवंबर 1971 को इस केस की तफ्तीश करने वाले एएसपी डी के कश्यप की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। वो उस समय अपने हनीमून के लिए जा रहे थे। इस बीच नागरवाला ने मशहूर साप्ताहिक अखबार करेंट के संपादक डी एफ कराका को पत्र लिख कर कहा कि वो उन्हें इंटरव्यू देना चाहते हैं।
कराका की तबियत खराब हो गई। इसलिए उन्होंने अपने असिस्टेंट को इंटरव्यू लेने भेजा, लेकिन नागरवाला ने उसे इंटरव्यू देने से इनकार कर दिया। फरवरी 1972 के शुरू में नागरवाला को तिहाड़ जेल के अस्पताल में भर्ती किया गया। वहां से उसे 21 फरवरी को जीबी पंत अस्पताल ले जाया गया, जहां दो मार्च को उसकी तबियत खराब हो गई और दो बजकर 15 मिनट पर दिल का दौरा पड़ने से नागरवाला का देहांत हो गया।
उस दिन उसकी 51वीं सालगिरह थी। इस पूरे प्रकरण से इंदिरा गांधी की बहुत बदनामी हुई थी। बाद में सागारिका घोष ने 'इंदिरा गांधी की जीवनी इंदिरा - इंडियाज मोस्ट पॉवरफुल प्राइम मिनिस्टर' में लिखा, 'क्या नागरवाला की प्रधानमंत्री की आवाज की नकल करने की हिम्मत पड़ती अगर उनको ताकतवर लोगों का समर्थन नहीं होता? मल्होत्रा ने पीएम हाउस से महज एक फोन कॉल के चलते बैंक से इतनी बड़ी रकम क्यों निकाली?'
जांच के लिए जगनमोहन रेड्डी आयोग का गठन
1977 में जब जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई तो उसने नागरवाला की मौत की परिस्थितियों की जांच के आदेश दिए। इसके लिए जगनमोहन रेड्डी आयोग बनाया गया, लेकिन इस जांच में कुछ भी नया निकल कर सामने नहीं आया और नागरवाला की मौत में कुछ भी असमान्य नहीं पाया गया। लेकिन सवाल ये उठा कि अगर इस तरह का भुगतान करना भी था तो बैंक के मैनेजर से संपर्क स्थापित न कर चीफ कैशियर से क्यों संपर्क किया गया? क्या स्टेट बैंक को बिना चेक और वाउचर इतनी बड़ी रकम देने का अधिकार मिला हुआ था?
सीआईए का ऑपरेशन?
बाद में अखबारों में इस तरह की अपुष्ट खबरें छपीं कि ये पैसा रॉ के कहने पर बांग्लादेश ऑपरेशन के लिए निकलवाया गया था। रॉ पर एक किताब 'मिशन आरएंड डब्लू' लिखने वाले आर के यादव लिखते हैं कि 'उन्होंने इस संबंध में रॉ के पूर्व प्रमुख रामनाथ काव और उनके नंबर दो के संकरन नायर से पूछा था और दोनों ने इस बात का जोरदार खंडन किया था कि रॉ का इस केस से कोई लेनादेना था।' उन अधिकारियों ने इस बात का भी खंडन किया था कि रॉ का स्टेट बैंक में कोई गुप्त खाता था।
इंदिरा गांधी की मौत के दो साल बाद हिंदुस्तान टाइम्स के 11 और 12 नवंबर के अंक में ये आरोप लगाया गया था कि नागरवाला रॉ नहीं बल्कि सीआईए के लिए काम करता था और इस पूरे प्रकरण का मुख्य उद्देश्य इंदिरा गांधी को बदनाम करना था, खासतौर से उस समय जब उनकी बांग्लादेश नीति निक्सन प्रशासन को बहुत नागवार लग रही थी। लेकिन इस आरोप के समर्थन में कोई साक्ष्य नहीं पेश किए गए थे और इस सवाल का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया था कि एक बैंक के कैशियर ने बिना किसी दस्तावेज के इतनी बड़ी रकम किसी अनजान शख्स को कैसे हवाले कर दी थी।
हालांकि ठगी के बाद पांच हजार रुपये छोड़ कर पूरे 59 लाख 95 हजार रुपये बरामद हो गए थे और वो पांच हजार रुपये भी मल्होत्रा ने अपनी जेब से भरे थे। बैंक को इससे कोई माली नुकसान नहीं पहुंचा था लेकिन इससे उसकी खराब हुई छवि के कारण स्टेट बैंक ने मल्होत्रा को डिपार्टमेंटल इनक्वाएरी को बाद नौकरी से निकाल दिया था। दिलचस्प बात ये है करीब 10 साल बाद जब भारत में मारुति उद्योग की स्थापना हुई थी तो तत्कालीन सरकार ने वेद प्रकाश मल्होत्रा को इस कंपनी का चीफ अकाउंट्स ऑफिसर बना दिया था।