बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Thu, 03 Dec 2020 01:30 PM IST
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सितंबर में सरकार तीन नए कृषि विधेयक लाई थी, जिन पर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद वे कानून बन चुके हैं। लेकिन किसानों को ये कानून रास नहीं आ रहे हैं क्योंकि उनका कहना है कि इनसे किसानों को नुकसान और निजी खरीदारों और कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा। इन्हीं में से एक है कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020, जिसका उद्देश्य अनुबंध खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की इजाजत देना है। आइए जानते हैं कि क्या है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और क्यों इसका विरोध कर रहे हैं किसान?
क्या है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग?
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत किसान अपनी जमीन पर खेती तो करता है, लेकिन अपने लिए नहीं बल्कि किसी और के लिए। इसमें किसान को पैसा नहीं खर्च करना पड़ता और कोई कंपनी या फिर कोई आदमी किसान के साथ अनुबंध करता है कि किसान द्वारा उगाई गई फसल विशेष को कॉन्ट्रैक्टर एक तय दाम में खरीदेगा। इसमें खाद और बीज से लेकर सिंचाई और मजदूरी सब खर्च कॉन्ट्रैक्टर के ही होते हैं।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के फायदे क्या हैं?
- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से न केवल किसानों को फायदा होता है बल्कि, खेती की दशा और दिशा भी सुधरती है-
- किसानों को बेहतर भाव मिलेंगे
- बाजार भाव में उतार-चढ़ाव के जोखिम से किसान मुक्त
- किसानों को बड़ा बाजार मिलता है
- किसान को सीखने का अवसर
- खेती के तरीके में सुधार
- किसानों को बीज, फर्टिलाइजर के फैसले में मदद
- फसल की क्वॉलिटी और मात्रा में सुधार
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की चुनौतियां क्या हैं?
- बड़े खरीदारों के एकाधिकार को बढ़ावा
- कम कीमत देकर किसानों के शोषण का डर
- सामान्य किसानों के लिए समझना मुश्किल
- छोटे किसानों को इसका कम होगा फायदा
क्या है सरकार का नया कानून?
- आइए जानते हैं कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 की मुख्य बिंदु-
- कृषकों को व्यापारियों, कंपनियों, प्रसंस्करण इकाइयों, निर्यातकों से सीधे जोड़ना।
- कृषि करार के माध्यम से बुवाई से पूर्व ही किसान को उसकी उपज के दाम निर्धारित करना। बुवाई से पूर्व किसान को मूल्य का आश्वासन। दाम बढ़ने पर न्यूनतम मूल्य के साथ अतिरिक्त लाभ।
- इस विधेयक की मदद से बाजार की अनिश्चितता का जोखिम किसानों से हटकर प्रायोजकों पर चला जाएगा। मूल्य पूर्व में ही तय हो जाने से बाजार में कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव का प्रतिकूल प्रभाव किसान पर नहीं पड़ेगा।
- इससे किसानों की पहुंच अत्याधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी, कृषि उपकरण एवं उन्नत खाद बीज तक होगी।
- इससे विपणन की लागत कम होगी और किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित होगी।
- किसी भी विवाद की स्थिति में उसका निपटारा 30 दिवस में स्थानीय स्तर पर करने की व्यवस्था की गई है।
- कृषि क्षेत्र में शोध एवं नई तकनीकी को बढ़ावा देना।
शंकाएं
- अनुबंधित कृषि समझौते में किसानों का पक्ष कमजोर होगा और वे कीमतों का निर्धारण नहीं कर पाएंगे।
- छोटे किसान संविदा खेती (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) कैसे कर पाएंगे? क्योंकि प्रायोजक उनसे परहेज कर सकते हैं।
- नई व्यवस्था किसानों के लिए परेशानी होगी।
- विवाद की स्थिति में बड़ी कंपनियों को लाभ होगा।
स्पष्टीकरण
- किसान को अनुबंध में पूर्ण स्वतंत्रता रहेगी कि वह अपनी इच्छा के अनुरूप दाम तय कर उपज बेच सकेगा। उन्हें अधिक से अधिक तीन दिन के भीतर भुगतान प्राप्त होगा।
- देश में 10 हजार कृषक उत्पादक समूह निर्मित किए जा रहे हैं। यह समूह (एफपीओ) छोटे किसानों को जोड़कर उनकी फसल को बाजार में उचित लाभ दिलाने की दिशा में कार्य करेंगे।
- अनुबंध के बाद किसान को व्यापारियों के चक्कर काटने की आवश्यकता नहीं होगी। खरीदार उपभोक्ता उसके खेत से ही उपज लेकर जा सकेगा।
- विवाद की स्थिति में कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने की आवश्यकता नहीं होगी। स्थानीय स्तर पर ही विवाद के निपटाने की व्यवस्था रहेगी।
सितंबर में सरकार तीन नए कृषि विधेयक लाई थी, जिन पर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद वे कानून बन चुके हैं। लेकिन किसानों को ये कानून रास नहीं आ रहे हैं क्योंकि उनका कहना है कि इनसे किसानों को नुकसान और निजी खरीदारों और कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा। इन्हीं में से एक है कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून, 2020, जिसका उद्देश्य अनुबंध खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की इजाजत देना है। आइए जानते हैं कि क्या है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग और क्यों इसका विरोध कर रहे हैं किसान?
क्या है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग?
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत किसान अपनी जमीन पर खेती तो करता है, लेकिन अपने लिए नहीं बल्कि किसी और के लिए। इसमें किसान को पैसा नहीं खर्च करना पड़ता और कोई कंपनी या फिर कोई आदमी किसान के साथ अनुबंध करता है कि किसान द्वारा उगाई गई फसल विशेष को कॉन्ट्रैक्टर एक तय दाम में खरीदेगा। इसमें खाद और बीज से लेकर सिंचाई और मजदूरी सब खर्च कॉन्ट्रैक्टर के ही होते हैं।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के फायदे क्या हैं?
- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से न केवल किसानों को फायदा होता है बल्कि, खेती की दशा और दिशा भी सुधरती है-
- किसानों को बेहतर भाव मिलेंगे
- बाजार भाव में उतार-चढ़ाव के जोखिम से किसान मुक्त
- किसानों को बड़ा बाजार मिलता है
- किसान को सीखने का अवसर
- खेती के तरीके में सुधार
- किसानों को बीज, फर्टिलाइजर के फैसले में मदद
- फसल की क्वॉलिटी और मात्रा में सुधार
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की चुनौतियां क्या हैं?
- बड़े खरीदारों के एकाधिकार को बढ़ावा
- कम कीमत देकर किसानों के शोषण का डर
- सामान्य किसानों के लिए समझना मुश्किल
- छोटे किसानों को इसका कम होगा फायदा
क्या है सरकार का नया कानून?
- आइए जानते हैं कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक, 2020 की मुख्य बिंदु-
- कृषकों को व्यापारियों, कंपनियों, प्रसंस्करण इकाइयों, निर्यातकों से सीधे जोड़ना।
- कृषि करार के माध्यम से बुवाई से पूर्व ही किसान को उसकी उपज के दाम निर्धारित करना। बुवाई से पूर्व किसान को मूल्य का आश्वासन। दाम बढ़ने पर न्यूनतम मूल्य के साथ अतिरिक्त लाभ।
- इस विधेयक की मदद से बाजार की अनिश्चितता का जोखिम किसानों से हटकर प्रायोजकों पर चला जाएगा। मूल्य पूर्व में ही तय हो जाने से बाजार में कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव का प्रतिकूल प्रभाव किसान पर नहीं पड़ेगा।
- इससे किसानों की पहुंच अत्याधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी, कृषि उपकरण एवं उन्नत खाद बीज तक होगी।
- इससे विपणन की लागत कम होगी और किसानों की आय में वृद्धि सुनिश्चित होगी।
- किसी भी विवाद की स्थिति में उसका निपटारा 30 दिवस में स्थानीय स्तर पर करने की व्यवस्था की गई है।
- कृषि क्षेत्र में शोध एवं नई तकनीकी को बढ़ावा देना।
शंकाएं
- अनुबंधित कृषि समझौते में किसानों का पक्ष कमजोर होगा और वे कीमतों का निर्धारण नहीं कर पाएंगे।
- छोटे किसान संविदा खेती (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) कैसे कर पाएंगे? क्योंकि प्रायोजक उनसे परहेज कर सकते हैं।
- नई व्यवस्था किसानों के लिए परेशानी होगी।
- विवाद की स्थिति में बड़ी कंपनियों को लाभ होगा।
स्पष्टीकरण
- किसान को अनुबंध में पूर्ण स्वतंत्रता रहेगी कि वह अपनी इच्छा के अनुरूप दाम तय कर उपज बेच सकेगा। उन्हें अधिक से अधिक तीन दिन के भीतर भुगतान प्राप्त होगा।
- देश में 10 हजार कृषक उत्पादक समूह निर्मित किए जा रहे हैं। यह समूह (एफपीओ) छोटे किसानों को जोड़कर उनकी फसल को बाजार में उचित लाभ दिलाने की दिशा में कार्य करेंगे।
- अनुबंध के बाद किसान को व्यापारियों के चक्कर काटने की आवश्यकता नहीं होगी। खरीदार उपभोक्ता उसके खेत से ही उपज लेकर जा सकेगा।
- विवाद की स्थिति में कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने की आवश्यकता नहीं होगी। स्थानीय स्तर पर ही विवाद के निपटाने की व्यवस्था रहेगी।