पीजीआई चंडीगढ़ में कैंसर की बीमारी के विशेषज्ञों की भरमार है। यहां हर तरह के कैंसर के विशेषज्ञ हैं और इलाज में भी इसका कोई सानी नहीं है। इलाज के परिणाम अंतरराष्ट्रीय स्तर के हैं। इसके बावजूद कैंसर के मरीज को यहां पर इलाज के लिए भटकना पड़ता है। डेढ़ से दो महीने की दौड़ भाग के बाद ही उसका इलाज शुरू होने की नौबत आती है। इसका एक कारण भीड़ तो है, लेकिन उससे बड़ी वजह यह है कि यहां पर मेडिकल आंकोलॉजी डिपार्टमेंट नहीं है। पीजीआई को बने करीब 56 साल हो गए हैं, मगर आज तक इस डिपार्टमेंट की स्थापना नहीं हो पाई है।
इसके नहीं बनने से मरीज काफी परेशान होते हैं। यदि उनका कोई जान-पहचान का नहीं है तो मानकर चलिए कि वे भटकते रह जाएंगे। इस बारे में पीजीआई अब तक कोई समाधान नहीं निकाल पाया है। विशेषज्ञों का कहना है कि मेडिकल आंकोलाजी डिपार्टमेंट बनने से कैंसर के मरीजों को एक छत के नीचे इलाज मिल सकेगा। इसमें मेडिकल आंकोलाजी, रेडिएशन आंकोलाजी और सर्जिकल आंकोलाजी के विशेषज्ञ एक साथ बैठेंगे। मरीज को जल्दी और आसानी से रेफर किया जा सकेगा। अभी सभी के अलग-अलग डिपार्टमेंट हैं और ओपीडी के दिन भी अलग।
उससे बड़ी बात यह है कि मरीज को पता ही नहीं चल पाता कि उसे जाना कहां है। जब अलग डिपार्टमेंट बनेगा तो मरीज सीधे कैंसर की ओपीडी जाएगा। डिपार्टमेंट बनने के बाद इलाज के साथ और भी कई फायदे होंगे। टीचिंग और रिसर्च बेहतर होंगे। भविष्य में डीएम कोर्स शुरू होगा, जिससे भविष्य के कैंसर स्पेशलिस्ट तैयार होंगे। कैंसर विशेषज्ञों की भारी कमी है। मेडिकल आंकोलाजी का डीएम कोर्स कैंसर विशेषज्ञों की कमी को दूर करने में अहम भूमिका निभाएगा।
देश के टॉप संस्थानों में पीजीआई शामिल है। देश में पीजीआई को दूसरे नंबर का संस्थान माना जाता है, लेकिन मेडिकल आंकोलाजी डिपार्टमेंट बनाने में वह पिछड़ गया है। यहां तक कि उसके बाद बने संस्थानों ने मेडिकल आंकोलाजी डिपार्टमेंट की स्थापना कर डाली है।
नई दिल्ली एम्स, टाटा मुंबई, जेआईपीएमईआर पुड्डूचेरी, दिल्ली सफदरगंज, एम्स ऋषिकेश, एसएमएस जयपुर सहित अन्य कई ऐसे संस्थान हैं, जहां आंकोलाजी डिपार्टमेंट बनाया जा चुका है। इस क्षेत्र में वे पीजीआई से काफी आगे निकल गए हैं। सूत्रों का कहना है कि आज तक किसी ने इस मुद्दे को नहीं उठाया है। यदि कोई गंभीरता से उठाता तो अब तक डिपार्टमेंट बन चुका होता।
मरीजों को प्रो. जगतराम से हैं उम्मीदें, उठाया है मुद्दा
बताया जा रहा है कि उच्च स्तर पर आज तक किसी ने इस मुद्दे को नहीं उठाया, लेकिन अब प्रोफेसर जगतराम ने इसे अलग डिपार्टमेंट बनाने का मुद्दा उठाया है। कुछ दिन पहले उन्होंने इस संबंध में संस्थान के सभी कैंसर विशेषज्ञों, डीडीए और डीन से बातचीत की और मेडिकल आंकोलाजी डिपार्टमेंट बनाने की बात की।
उसके बाद उन्होंने अलग से डिपार्टमेंट बनाने की सहमति दे दी है। अब वे इस प्रस्ताव को स्टैंडिंग फाइनेंस कमेटी, स्टैंडिंग अकेडमी कमेटी, फिर गवर्निंग बाडी के पास जाएगा। वहां से मुहर लगने के बाद यह डिपार्टमेंट बनकर तैयार होगा।
पीजीआई के रेडियोथैरेपी डिपार्टमेंट की ओर से आयोजित प्रेस वार्ता में डॉ. सुष्मिता घोषाल ने बताया कि संस्थान में साल 2011 से 2018 तक कैंसर मरीजों की संख्या में करीब 46 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। साल 2011 में 5465 मरीज पीजीआई के रीजनल कैंसर सेंटर में दर्ज हुए थे, जबकि साल 2018 में 8024 मरीज। ऐसे में समझा जा सकता है मरीज बढ़ रहे हैं, लेकिन कैंसर को मैनेज करने का मैनेजमेंट ठीक नहीं है।
हमने मेडिकल आंकोलॉजी डिपार्टमेंट बनाने का निर्णय ले लिया है। इस बारे में कुछ दिन पहले एक मीटिंग भी की थी। इसकी जरूरत महसूस की गई है और मैं चाहता भी हूं कि यह डिपार्टमेंट जल्द से जल्द बनकर तैयार हो। इसके लिए मैं पूरी कोशिश करुंगा। - प्रो. जगतराम, डायरेक्टर पीजीआई
पीजीआई चंडीगढ़ में कैंसर की बीमारी के विशेषज्ञों की भरमार है। यहां हर तरह के कैंसर के विशेषज्ञ हैं और इलाज में भी इसका कोई सानी नहीं है। इलाज के परिणाम अंतरराष्ट्रीय स्तर के हैं। इसके बावजूद कैंसर के मरीज को यहां पर इलाज के लिए भटकना पड़ता है। डेढ़ से दो महीने की दौड़ भाग के बाद ही उसका इलाज शुरू होने की नौबत आती है। इसका एक कारण भीड़ तो है, लेकिन उससे बड़ी वजह यह है कि यहां पर मेडिकल आंकोलॉजी डिपार्टमेंट नहीं है। पीजीआई को बने करीब 56 साल हो गए हैं, मगर आज तक इस डिपार्टमेंट की स्थापना नहीं हो पाई है।
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इसके नहीं बनने से मरीज काफी परेशान होते हैं। यदि उनका कोई जान-पहचान का नहीं है तो मानकर चलिए कि वे भटकते रह जाएंगे। इस बारे में पीजीआई अब तक कोई समाधान नहीं निकाल पाया है। विशेषज्ञों का कहना है कि मेडिकल आंकोलाजी डिपार्टमेंट बनने से कैंसर के मरीजों को एक छत के नीचे इलाज मिल सकेगा। इसमें मेडिकल आंकोलाजी, रेडिएशन आंकोलाजी और सर्जिकल आंकोलाजी के विशेषज्ञ एक साथ बैठेंगे। मरीज को जल्दी और आसानी से रेफर किया जा सकेगा। अभी सभी के अलग-अलग डिपार्टमेंट हैं और ओपीडी के दिन भी अलग।
उससे बड़ी बात यह है कि मरीज को पता ही नहीं चल पाता कि उसे जाना कहां है। जब अलग डिपार्टमेंट बनेगा तो मरीज सीधे कैंसर की ओपीडी जाएगा। डिपार्टमेंट बनने के बाद इलाज के साथ और भी कई फायदे होंगे। टीचिंग और रिसर्च बेहतर होंगे। भविष्य में डीएम कोर्स शुरू होगा, जिससे भविष्य के कैंसर स्पेशलिस्ट तैयार होंगे। कैंसर विशेषज्ञों की भारी कमी है। मेडिकल आंकोलाजी का डीएम कोर्स कैंसर विशेषज्ञों की कमी को दूर करने में अहम भूमिका निभाएगा।
एम्स, टाटा, सफदरगंज में कई साल से तो पीजीआई क्यों रहा पीछे
देश के टॉप संस्थानों में पीजीआई शामिल है। देश में पीजीआई को दूसरे नंबर का संस्थान माना जाता है, लेकिन मेडिकल आंकोलाजी डिपार्टमेंट बनाने में वह पिछड़ गया है। यहां तक कि उसके बाद बने संस्थानों ने मेडिकल आंकोलाजी डिपार्टमेंट की स्थापना कर डाली है।
नई दिल्ली एम्स, टाटा मुंबई, जेआईपीएमईआर पुड्डूचेरी, दिल्ली सफदरगंज, एम्स ऋषिकेश, एसएमएस जयपुर सहित अन्य कई ऐसे संस्थान हैं, जहां आंकोलाजी डिपार्टमेंट बनाया जा चुका है। इस क्षेत्र में वे पीजीआई से काफी आगे निकल गए हैं। सूत्रों का कहना है कि आज तक किसी ने इस मुद्दे को नहीं उठाया है। यदि कोई गंभीरता से उठाता तो अब तक डिपार्टमेंट बन चुका होता।
मरीजों को प्रो. जगतराम से हैं उम्मीदें, उठाया है मुद्दा
बताया जा रहा है कि उच्च स्तर पर आज तक किसी ने इस मुद्दे को नहीं उठाया, लेकिन अब प्रोफेसर जगतराम ने इसे अलग डिपार्टमेंट बनाने का मुद्दा उठाया है। कुछ दिन पहले उन्होंने इस संबंध में संस्थान के सभी कैंसर विशेषज्ञों, डीडीए और डीन से बातचीत की और मेडिकल आंकोलाजी डिपार्टमेंट बनाने की बात की।
उसके बाद उन्होंने अलग से डिपार्टमेंट बनाने की सहमति दे दी है। अब वे इस प्रस्ताव को स्टैंडिंग फाइनेंस कमेटी, स्टैंडिंग अकेडमी कमेटी, फिर गवर्निंग बाडी के पास जाएगा। वहां से मुहर लगने के बाद यह डिपार्टमेंट बनकर तैयार होगा।
इसलिए जरूरी है बनना
पीजीआई के रेडियोथैरेपी डिपार्टमेंट की ओर से आयोजित प्रेस वार्ता में डॉ. सुष्मिता घोषाल ने बताया कि संस्थान में साल 2011 से 2018 तक कैंसर मरीजों की संख्या में करीब 46 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। साल 2011 में 5465 मरीज पीजीआई के रीजनल कैंसर सेंटर में दर्ज हुए थे, जबकि साल 2018 में 8024 मरीज। ऐसे में समझा जा सकता है मरीज बढ़ रहे हैं, लेकिन कैंसर को मैनेज करने का मैनेजमेंट ठीक नहीं है।
हमने मेडिकल आंकोलॉजी डिपार्टमेंट बनाने का निर्णय ले लिया है। इस बारे में कुछ दिन पहले एक मीटिंग भी की थी। इसकी जरूरत महसूस की गई है और मैं चाहता भी हूं कि यह डिपार्टमेंट जल्द से जल्द बनकर तैयार हो। इसके लिए मैं पूरी कोशिश करुंगा।
- प्रो. जगतराम, डायरेक्टर पीजीआई
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