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कैंसर का नाम सुनते ही लोगों की जान सूख जाती है, मगर अब ये बीमारी पुराने जमाने की बात हो चली है। कैंसर की कुछ बीमारियां ऐसी हैं, जो अब दवा खाने से ठीक हो जाती हैं। इनमें से एक ब्लड कैंसर क्रोनिक मायलोइड ल्यूकेमिया (सीएमएल) है। साल 2001 से पहले तक इस बीमारी से पीड़ित मरीज का जीवन ज्यादा से ज्यादा दो से तीन साल तक रहता था।
उसके बाद बाजार में एमाटिनिब्मिस्टलेट नामक एक गोली आई, जिसके खाने से यह मर्ज ठीक होने लगा। इसे मैजिक बुलेट भी कहते हैं। यह दवा सीएमएल के मरीजों के लिए संजीवनी साबित हुई और इसके इलाज में एक तरह से क्रांति आ गई। इसके लगातार सेवन से मरीज जीवित रहने लगा।
पीजीआई के इंटरनल मेडिसिन डिपार्टमेंट के प्रोफेसर व सीएमएल एक्सपर्ट डा. पंकज मल्होत्रा ने बताया कि जब यह दवा बाजार में आई तो काफी महंगी थी। इस दवा का एक महीने का खर्च करीब सवा लाख रुपये आता था। धीरे-धीरे यह दवा सस्ती होती चली गई। इस दवा का जेनरिक वर्जन भारत में आया। अब इस दवा का महीने भर का खर्च मात्र एक से डेढ़ हजार रुपये है।
यूएसए के मैक्स फाउंडेशन की वजह से यह दवा गरीब मरीजों को मुफ्त में दी जाती है। मैक्स फाउंडेशन के बेटे की मौत भी सीएमएल की वजह से हुई थी। उसके बाद उनकी कोशिश रही कि उनके बेटे के बाद किसी भी मरीज की मौत सीएमएल से न हो। उनके प्रयास से कई गरीब मरीजों को नया जीवन मिला। इसमें पीजीआई की भी अहम भूमिका रही।
प्रो. पंकज ने बताया कि जो मरीज रेगुलर दवाई लेते हैं और समय-समय पर आकर चेक करवाते हैं, उनमें से 50 फीसदी मरीजों की दवा बंद कर दी गई हैं। दवा बंद करने के बाद भी उनके टेस्ट सही पाए गए। कुछ ऐसे भी मरीज है, जो बीच में ही दवा छोड़ देते हैं। इस वजह से उनका मर्ज कंट्रोल नहीं होता।
उनमें दोबारा से मर्ज लौट आता है। यदि वे रेगुलर दवाई खाते हैं तो उनकी भी दवाई बंद कर दी जाती। पहले जीवन भर दवा खानी होती थी। मगर अब ऐसा नहीं है। पीजीआई में करीब चार हजार मरीज रजिस्टर्ड हैं। इन सभी को मैजिक बुलेट दी जा रही है। ये पेशेंट हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, जम्मू कश्मीर व उत्तर प्रदेश के हैं।
पहले बोन मैरो ट्रांसप्लांट ही इसका इलाज था
इंटरनल मेडिसिन के क्लीनिकल हिमेटोलॉजी यूनिट के एडिशनल प्रोफेसर डा. गौरव प्रकाश के मुताबिक, सीएमएल का इलाज पहले काफी महंगा था। 20 साल पहले मरीजों को बोन मैरो ट्रांसप्लांट होता था, जो काफी महंगा और स्ट्रांग दवा के साथ होता था। इससे मरीज की दिक्कतें भी बढ़ती थीं।
दस्त लगना, बाल झड़ना, उल्टी जैसे लक्षण भी आते थे, लेकिन मेडिकल साइंस इतनी तरक्की कर ली है कि कैंसर का इलाज अब सिर्फ गोली खाने से हो जाता है। बशर्ते मरीज रेगुलर दवाई खाएं। हालांकि, अब तक इसके कारणों का पता नहीं चल सका है, लेकिन शरीर के अंदर क्रोमोजोन 9 और क्रोमोजोन 22 के क्रास लिकिंग की वजह से यह बीमारी होती है, इसलिए साल के 9वें महीने की 22 तारीख को सीएमएल डे मनाया जाता है।
पीजीआई के इंटरनल मेडिसिन के क्लीनिकल हिमेटोलॉजी में रविवार को पीजीआई के भार्गव आडिटोरियम में सीएमएल डे मनाया जाएगा। इस दौरान एक हजार से ज्यादा मरीज व उनके परिजन पहुंचेंगे। उन मरीजों के अनुभव साझा किए जाएंगे, जो दवा खाने से पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं। कार्यक्रम के दौरान कई सारे विशेषज्ञ भी मौजूद रहेंगे, जो अपने अनुभव भी सांझा करेंगे।
सीएमएल के मरीज यदि दवा रेगुलर खाएं तो यह कैंसर पूरी तरह से ठीक हो सकता है। हमने 50 फीसदी मरीजों की दवाएं बंद कर दी हैं, लेकिन यदि वे लापरवाही करते हैं तो मर्ज और अग्रेसिव हो सकता है। इसलिए दवा जरूर खाएं और रेगुलर चेकअप भी करवाएं।
- डॉ. पंकज मल्होत्रा, प्रोफेसर क्लीनिकल हिमेटोलॉजी यूनिट इंटरनल मेडिसिन पीजीआई
आज से 20 साल पहले सीएमएल का इलाज काफी महंगा होता था। मेडिकल साइंस ने तरक्की की और अब इसका इलाज खाने वाली दवा तक पहुंच गया है। मरीज को सिर्फ दवा खानी होती है और कैंसर क्योर हो जाता है।
- डॉ. गौरव प्रकाश, क्लीनिकल हिमेटोलॉजी यूनिट इंटरनल मेडिसिन पीजीआई
कैंसर का नाम सुनते ही लोगों की जान सूख जाती है, मगर अब ये बीमारी पुराने जमाने की बात हो चली है। कैंसर की कुछ बीमारियां ऐसी हैं, जो अब दवा खाने से ठीक हो जाती हैं। इनमें से एक ब्लड कैंसर क्रोनिक मायलोइड ल्यूकेमिया (सीएमएल) है। साल 2001 से पहले तक इस बीमारी से पीड़ित मरीज का जीवन ज्यादा से ज्यादा दो से तीन साल तक रहता था।
उसके बाद बाजार में एमाटिनिब्मिस्टलेट नामक एक गोली आई, जिसके खाने से यह मर्ज ठीक होने लगा। इसे मैजिक बुलेट भी कहते हैं। यह दवा सीएमएल के मरीजों के लिए संजीवनी साबित हुई और इसके इलाज में एक तरह से क्रांति आ गई। इसके लगातार सेवन से मरीज जीवित रहने लगा।
पीजीआई के इंटरनल मेडिसिन डिपार्टमेंट के प्रोफेसर व सीएमएल एक्सपर्ट डा. पंकज मल्होत्रा ने बताया कि जब यह दवा बाजार में आई तो काफी महंगी थी। इस दवा का एक महीने का खर्च करीब सवा लाख रुपये आता था। धीरे-धीरे यह दवा सस्ती होती चली गई। इस दवा का जेनरिक वर्जन भारत में आया। अब इस दवा का महीने भर का खर्च मात्र एक से डेढ़ हजार रुपये है।
यूएसए के मैक्स फाउंडेशन की वजह से यह दवा गरीब मरीजों को मुफ्त में दी जाती है। मैक्स फाउंडेशन के बेटे की मौत भी सीएमएल की वजह से हुई थी। उसके बाद उनकी कोशिश रही कि उनके बेटे के बाद किसी भी मरीज की मौत सीएमएल से न हो। उनके प्रयास से कई गरीब मरीजों को नया जीवन मिला। इसमें पीजीआई की भी अहम भूमिका रही।
50 फीसदी मरीजों की दवा ही बंद हो गई
प्रो. पंकज ने बताया कि जो मरीज रेगुलर दवाई लेते हैं और समय-समय पर आकर चेक करवाते हैं, उनमें से 50 फीसदी मरीजों की दवा बंद कर दी गई हैं। दवा बंद करने के बाद भी उनके टेस्ट सही पाए गए। कुछ ऐसे भी मरीज है, जो बीच में ही दवा छोड़ देते हैं। इस वजह से उनका मर्ज कंट्रोल नहीं होता।
उनमें दोबारा से मर्ज लौट आता है। यदि वे रेगुलर दवाई खाते हैं तो उनकी भी दवाई बंद कर दी जाती। पहले जीवन भर दवा खानी होती थी। मगर अब ऐसा नहीं है। पीजीआई में करीब चार हजार मरीज रजिस्टर्ड हैं। इन सभी को मैजिक बुलेट दी जा रही है। ये पेशेंट हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, जम्मू कश्मीर व उत्तर प्रदेश के हैं।
पहले बोन मैरो ट्रांसप्लांट ही इसका इलाज था
इंटरनल मेडिसिन के क्लीनिकल हिमेटोलॉजी यूनिट के एडिशनल प्रोफेसर डा. गौरव प्रकाश के मुताबिक, सीएमएल का इलाज पहले काफी महंगा था। 20 साल पहले मरीजों को बोन मैरो ट्रांसप्लांट होता था, जो काफी महंगा और स्ट्रांग दवा के साथ होता था। इससे मरीज की दिक्कतें भी बढ़ती थीं।
दस्त लगना, बाल झड़ना, उल्टी जैसे लक्षण भी आते थे, लेकिन मेडिकल साइंस इतनी तरक्की कर ली है कि कैंसर का इलाज अब सिर्फ गोली खाने से हो जाता है। बशर्ते मरीज रेगुलर दवाई खाएं। हालांकि, अब तक इसके कारणों का पता नहीं चल सका है, लेकिन शरीर के अंदर क्रोमोजोन 9 और क्रोमोजोन 22 के क्रास लिकिंग की वजह से यह बीमारी होती है, इसलिए साल के 9वें महीने की 22 तारीख को सीएमएल डे मनाया जाता है।
पीजीआई में मनाया सीएमएल डे
पीजीआई के इंटरनल मेडिसिन के क्लीनिकल हिमेटोलॉजी में रविवार को पीजीआई के भार्गव आडिटोरियम में सीएमएल डे मनाया जाएगा। इस दौरान एक हजार से ज्यादा मरीज व उनके परिजन पहुंचेंगे। उन मरीजों के अनुभव साझा किए जाएंगे, जो दवा खाने से पूरी तरह से ठीक हो चुके हैं। कार्यक्रम के दौरान कई सारे विशेषज्ञ भी मौजूद रहेंगे, जो अपने अनुभव भी सांझा करेंगे।
सीएमएल के मरीज यदि दवा रेगुलर खाएं तो यह कैंसर पूरी तरह से ठीक हो सकता है। हमने 50 फीसदी मरीजों की दवाएं बंद कर दी हैं, लेकिन यदि वे लापरवाही करते हैं तो मर्ज और अग्रेसिव हो सकता है। इसलिए दवा जरूर खाएं और रेगुलर चेकअप भी करवाएं।
- डॉ. पंकज मल्होत्रा, प्रोफेसर क्लीनिकल हिमेटोलॉजी यूनिट इंटरनल मेडिसिन पीजीआई
आज से 20 साल पहले सीएमएल का इलाज काफी महंगा होता था। मेडिकल साइंस ने तरक्की की और अब इसका इलाज खाने वाली दवा तक पहुंच गया है। मरीज को सिर्फ दवा खानी होती है और कैंसर क्योर हो जाता है।
- डॉ. गौरव प्रकाश, क्लीनिकल हिमेटोलॉजी यूनिट इंटरनल मेडिसिन पीजीआई