इस समय पूरे देश की हवा शुद्ध है, खासकर चंडीगढ़ की। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की ओर से जारी बुलेटिन के मुताबिक, शुक्रवार को चंडीगढ़ की हवा का गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 26 दर्ज किया गया है। यह स्थिति पिछले 10 दिन से बनी हुई है। इसका असर स्वास्थ्य व कोरोना पर देखने को मिल सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि शुद्ध वायु का स्तर इसी तरह से जारी रहा तो इससे कोरोना से लड़ने में मदद मिलेगी। इस बारे में पीजीआई के डिपार्टमेंट आफ कम्युनिटी मेडिसिन एंड स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ एडिशनल प्रोफेसर रविंद्रा खैवाल का मानना है कि वायु प्रदूषण से फेफड़ों की कार्यक्षमता पर असर पड़ता है। हृदय संबंधी बीमारियां भी बढ़ती हैं। प्रदूषण कम होने से फेफड़े अच्छी तरह से काम करते हैं। इससे शरीर की इम्युनिटी बढ़ेगी और वायरस का मुकाबला करने में मदद मिलेगी।
पीजीआई के विशेषज्ञ की बात पर गौर करने के लिए कुछ तथ्य और भी हैं। हार्वर्ड के टीएच चान स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ के सेंटर फॉर क्लाइमेंट, हेल्थ व ग्लोबल एनवायरनमेंट के अंतरिम डायरेक्टर आरुन बर्नस्टीन ने अपने एक बयान में बताया था कि वायु प्रदूषण से ग्रसित इलाकों में रहने वाले व्यक्ति के किसी भी फ्लू के संक्रमित होने की संभावना उन इलाकों से ज्यादा रहती है, जहां हवा शुद्ध रहती है। संक्रमित होने पर उनके मरने की आशंका भी ज्यादा रहेगी।
वायु प्रदूषण महामारी के खतरों को बढ़ाने में एक कारक बनता है। वैज्ञानिकों ने यह भी माना है कि वायरस प्रदूषण के कणों के साथ बंध सकते हैं, जिससे वे अधिक समय तक हवा में रहते हैं और फेफड़े तक पहुंचने में उन्हें सुगमता रहेगी। साल 2018 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस के कैंब्रिज कोर के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक साल 1918 में फैली इंफ्लूएंजा महामारी को बढ़ाने में वायु प्रदूषण एक कारक बना था।
इसकी वजह से मृत्यु दर में करीब दस फीसदी वृद्धि हुई थी। रविंद्रा खैवाल कहते हैं कि इस मसले को थोड़ा उलटा करके देखते हैं। मान लीजिए कि यदि इस समय वायु प्रदूषण होता तो हृदय संबंधी व गंभीर फेफड़ों की ओपीडी में इजाफा होता हैं और इन लोगों के ज्यादा संक्रमित होने की आशंका बनी रहती।
पीजीआई के पल्मोनेरी डिपार्टमेंट के पूर्व एचओडी प्रो. एसके जिंदल का कहना है कि तापमान में बढ़ोतरी होने से वायरस के ट्रांसमिशन (फैलाव) पर असर पड़ेगा। खांसी व छींक के माध्यम से निकलने वाली छोटी बूंदें जल्दी सूखेंगी। पीजीआई के प्रो. रविंद्रा खैवाल ने बताया कि हाल ही में आई चाइना की एक स्टडी भी बताती है कि जिन इलाकों में तापमान की बढ़ोतरी हुई, वहां कोरोना से मौतें कम हुई हैं। डॉ. जिंदल के मुताबिक इसमें कोई शक नहीं कि वायु प्रदूषण से कोरोना का असर बढ़ सकता था, लेकिन शुद्ध हवा का असर तभी पड़ेगा, जब लंबे समय तक यह स्थिति बनी रही।
...बारिश फिर बढ़ाएगी परेशानी
वैज्ञानिक और लोग उम्मीद लगाकर बैठे हैं कि तापमान बढ़े तो कोरोना पर असर देखा जाए, लेकिन तापमान कम होने का नाम ही नहीं ले रहा। मौसम विभाग की ओर से बताया गया है कि एक वेस्टर्न डिस्टरबेंस छह अप्रैल के आसपास सक्रिय हो रहा है, जिससे छह व सात अप्रैल को बारिश होने की संभावना बन रही है। पहाड़ों में भी बारिश होने की संभावना है। इससे मैदानी इलाकों के तापमान में दो से तीन डिग्री की गिरावट आ सकती है। शुक्रवार को दिन व रात के तापमान सामान्य से दो से तीन डिग्री नीचे दर्ज किए जा रहे हैं।
इस समय पूरे देश की हवा शुद्ध है, खासकर चंडीगढ़ की। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की ओर से जारी बुलेटिन के मुताबिक, शुक्रवार को चंडीगढ़ की हवा का गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 26 दर्ज किया गया है। यह स्थिति पिछले 10 दिन से बनी हुई है। इसका असर स्वास्थ्य व कोरोना पर देखने को मिल सकता है।
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विशेषज्ञों का मानना है कि यदि शुद्ध वायु का स्तर इसी तरह से जारी रहा तो इससे कोरोना से लड़ने में मदद मिलेगी। इस बारे में पीजीआई के डिपार्टमेंट आफ कम्युनिटी मेडिसिन एंड स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ एडिशनल प्रोफेसर रविंद्रा खैवाल का मानना है कि वायु प्रदूषण से फेफड़ों की कार्यक्षमता पर असर पड़ता है। हृदय संबंधी बीमारियां भी बढ़ती हैं। प्रदूषण कम होने से फेफड़े अच्छी तरह से काम करते हैं। इससे शरीर की इम्युनिटी बढ़ेगी और वायरस का मुकाबला करने में मदद मिलेगी।
अध्ययन बताते हैं वायु प्रदूषण से बढ़ती है फ्लू जैसी महामारी
पीजीआई के विशेषज्ञ की बात पर गौर करने के लिए कुछ तथ्य और भी हैं। हार्वर्ड के टीएच चान स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ के सेंटर फॉर क्लाइमेंट, हेल्थ व ग्लोबल एनवायरनमेंट के अंतरिम डायरेक्टर आरुन बर्नस्टीन ने अपने एक बयान में बताया था कि वायु प्रदूषण से ग्रसित इलाकों में रहने वाले व्यक्ति के किसी भी फ्लू के संक्रमित होने की संभावना उन इलाकों से ज्यादा रहती है, जहां हवा शुद्ध रहती है। संक्रमित होने पर उनके मरने की आशंका भी ज्यादा रहेगी।
वायु प्रदूषण महामारी के खतरों को बढ़ाने में एक कारक बनता है। वैज्ञानिकों ने यह भी माना है कि वायरस प्रदूषण के कणों के साथ बंध सकते हैं, जिससे वे अधिक समय तक हवा में रहते हैं और फेफड़े तक पहुंचने में उन्हें सुगमता रहेगी। साल 2018 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस के कैंब्रिज कोर के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक साल 1918 में फैली इंफ्लूएंजा महामारी को बढ़ाने में वायु प्रदूषण एक कारक बना था।
इसकी वजह से मृत्यु दर में करीब दस फीसदी वृद्धि हुई थी। रविंद्रा खैवाल कहते हैं कि इस मसले को थोड़ा उलटा करके देखते हैं। मान लीजिए कि यदि इस समय वायु प्रदूषण होता तो हृदय संबंधी व गंभीर फेफड़ों की ओपीडी में इजाफा होता हैं और इन लोगों के ज्यादा संक्रमित होने की आशंका बनी रहती।
तापमान से वायरस के ट्रांसमिशन पर पड़ेगा असर
पीजीआई के पल्मोनेरी डिपार्टमेंट के पूर्व एचओडी प्रो. एसके जिंदल का कहना है कि तापमान में बढ़ोतरी होने से वायरस के ट्रांसमिशन (फैलाव) पर असर पड़ेगा। खांसी व छींक के माध्यम से निकलने वाली छोटी बूंदें जल्दी सूखेंगी। पीजीआई के प्रो. रविंद्रा खैवाल ने बताया कि हाल ही में आई चाइना की एक स्टडी भी बताती है कि जिन इलाकों में तापमान की बढ़ोतरी हुई, वहां कोरोना से मौतें कम हुई हैं। डॉ. जिंदल के मुताबिक इसमें कोई शक नहीं कि वायु प्रदूषण से कोरोना का असर बढ़ सकता था, लेकिन शुद्ध हवा का असर तभी पड़ेगा, जब लंबे समय तक यह स्थिति बनी रही।
...बारिश फिर बढ़ाएगी परेशानी
वैज्ञानिक और लोग उम्मीद लगाकर बैठे हैं कि तापमान बढ़े तो कोरोना पर असर देखा जाए, लेकिन तापमान कम होने का नाम ही नहीं ले रहा। मौसम विभाग की ओर से बताया गया है कि एक वेस्टर्न डिस्टरबेंस छह अप्रैल के आसपास सक्रिय हो रहा है, जिससे छह व सात अप्रैल को बारिश होने की संभावना बन रही है। पहाड़ों में भी बारिश होने की संभावना है। इससे मैदानी इलाकों के तापमान में दो से तीन डिग्री की गिरावट आ सकती है। शुक्रवार को दिन व रात के तापमान सामान्य से दो से तीन डिग्री नीचे दर्ज किए जा रहे हैं।
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