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अंग प्रत्यारोपण से जुड़े एक मामले में सुनवाई के दौरान पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि कोई पत्नी अपने पति को अंगदान करती है तो इसके लिए उसके (पत्नी के) अभिभावकों की मंजूरी अनिवार्य नहीं है। मानव अंग तस्करी का केवल शक होना प्रत्यारोपण से इनकार का आधार नहीं बन सकता है।
बरनाला निवासी कर्मजीत कौर ने बताया कि उसका विवाह घरवालों की मर्जी के खिलाफ 2019 में हुआ था। इसके बाद उसके पति की किडनी में समस्या हो गई। इसके चलते उसने अपनी एक किडनी पति को दान देने का निर्णय लिया जिसे अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने नामंजूर कर दिया। अब याचिकाकर्ता ने अपनी एक किडनी अपने पति को दिए जाने की छूट हाईकोर्ट से मांगी है।
मामले में पंजाब सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता के पति की किडनी 2018 में ट्रांसप्लांट करने की सिफारिश की गई थी। उसकी मां ने बेटे को किडनी की पेशकश की थी जो सूट नहीं हुई थी। याचिकाकर्ता के पति के उपचाराधीन रहते उसकी शादी हुई और ऐसे में यहां शक की स्थिति पैदा होती है कि कहीं यह शादी केवल अंग प्रत्यारोपण के लिए तो नहीं हुई। हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि केवल शक के आधार पर अंग प्रत्यारोपण के लिए इंकार नहीं किया जा सकता।
बरनाला के एसपी की रिपोर्ट भी पक्ष में
इस मामले में बरनाला के एसएसपी की रिपोर्ट भी मौजूद है। इस प्रकार की किसी भी संभावना से इनकार किया गया है। साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक बड़े घपले का कोई सबूत न हो तब तक पत्नी द्वारा पति को अंग दिए जाने के लिए पत्नी के अभिभावकों की मंजूरी अनिवार्य नहीं है।
हाईकोर्ट ने अब पत्नी द्वारा की गई पेशकश पर मेडिकल बोर्ड को जल्द से जल्द निर्णय लेने के आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि इस मामले में मेडिकल बोर्ड को कोई धांधली नजर आती है तो उस पर सख्ती से कार्रवाई की जाए।
सार
- कोर्ट ने कहा, मानव अंग तस्करी का केवल शक होना अंग प्रत्यारोपण के लिए इंकार का आधार नहीं
- हाईकोर्ट ने मेडिकल बोर्ड को नए सिरे से अंग प्रत्यारोपण पर निर्णय लेने के दिए आदेश
विस्तार
अंग प्रत्यारोपण से जुड़े एक मामले में सुनवाई के दौरान पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि कोई पत्नी अपने पति को अंगदान करती है तो इसके लिए उसके (पत्नी के) अभिभावकों की मंजूरी अनिवार्य नहीं है। मानव अंग तस्करी का केवल शक होना प्रत्यारोपण से इनकार का आधार नहीं बन सकता है।
बरनाला निवासी कर्मजीत कौर ने बताया कि उसका विवाह घरवालों की मर्जी के खिलाफ 2019 में हुआ था। इसके बाद उसके पति की किडनी में समस्या हो गई। इसके चलते उसने अपनी एक किडनी पति को दान देने का निर्णय लिया जिसे अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने नामंजूर कर दिया। अब याचिकाकर्ता ने अपनी एक किडनी अपने पति को दिए जाने की छूट हाईकोर्ट से मांगी है।
मामले में पंजाब सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता के पति की किडनी 2018 में ट्रांसप्लांट करने की सिफारिश की गई थी। उसकी मां ने बेटे को किडनी की पेशकश की थी जो सूट नहीं हुई थी। याचिकाकर्ता के पति के उपचाराधीन रहते उसकी शादी हुई और ऐसे में यहां शक की स्थिति पैदा होती है कि कहीं यह शादी केवल अंग प्रत्यारोपण के लिए तो नहीं हुई। हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि केवल शक के आधार पर अंग प्रत्यारोपण के लिए इंकार नहीं किया जा सकता।
बरनाला के एसपी की रिपोर्ट भी पक्ष में
इस मामले में बरनाला के एसएसपी की रिपोर्ट भी मौजूद है। इस प्रकार की किसी भी संभावना से इनकार किया गया है। साथ ही कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक बड़े घपले का कोई सबूत न हो तब तक पत्नी द्वारा पति को अंग दिए जाने के लिए पत्नी के अभिभावकों की मंजूरी अनिवार्य नहीं है।
हाईकोर्ट ने अब पत्नी द्वारा की गई पेशकश पर मेडिकल बोर्ड को जल्द से जल्द निर्णय लेने के आदेश दिए हैं। हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि इस मामले में मेडिकल बोर्ड को कोई धांधली नजर आती है तो उस पर सख्ती से कार्रवाई की जाए।