अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद पंजाब में भाजपा के लिए अब अपना वजूद कायम रखना और सत्ता की कुर्सी तक पहुंचना एक बड़ी चुनौती होगा। सूबे में स्थापित हो चुकी तीन बड़ी राजनीतिक पार्टियों से टक्कर लेनी होगी और अपने आठ प्रतिशत वोट से 30 फीसदी तक लाना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा।
लिहाजा, भाजपा ने अभी से इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं और पूर्व पीपीएस अधिकारी इकबाल सिंह लालपुरा को राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाकर उन्होंने यह संदेश दे दिया है कि आने वाले दिनों में भाजपा में सिखों को उच्च पदों पर आसीन किया जा सकता है और प्रदेश में सिख नेताओं को आगे लाया जा सकता है।
सूबे में 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा का काफी बुरा हाल हुआ था। पार्टी के खिलाफ जबरदस्त हवा प्रदेश में चल रही थी और भाजपा 23 सीटों में तीन सीट ही जीत पाई थी। वोट बैंक 5.4 फीसदी पर सिमट गया था। भाजपा के दिग्गज नेता मदन मोहन मित्तल हमेशा स्टेज पर बोलते आ रहे थे कि भाजपा इस बार 23 पर नहीं लड़ने वाली बल्कि हम अपनी मर्जी से अकाली दल को सूबे में सीट देंगे, हमारी मर्जी चलेगी।
1- भाजपा को पंजाब में किसानों का विश्वास बहाल करना होगा।
2- जीएसटी के बाद व्यापारी वर्ग खासा परेशान हैं और व्यापार काफी प्रभावित हुआ है।
3- नोटबंदी का असर अभी भी व्यापार पर जारी है और व्यापारी नोटबंदी से खुश नहीं हैं।
4- पंजाब में इंडस्ट्री का पलायन पहाड़ी राज्यों में हो चुका है, इंडस्ट्री को जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल में काफी पैकेज दिया गया, जिसका असर पंजाब में हुआ।
5- भाजपा के पास सिख चेहरों की कमी है और अल्पसंख्यकों में भाजपा को विश्वास बढ़ाना भी एक बड़ी चुनौती है।
ऐसे में गठबंधन टूटना भाजपा के लिए एक चुनौती है। पार्टी की तरफ से सिख चेहरों से बातचीत शुरू हो चुकी है। भाजपा व सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट एचएस फूलका के बीच भी संबंध काफी मधुर बन चुके हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक पंजाब के हिमाचल के साथ लगते बॉर्डर की बेल्ट पर भाजपा का जनाधार मजबूत है।
पठानकोट, सुजानपुर, गुरदासपुर, होशियारपुर, नंगल, रोपड़ के अलावा मोहाली, शहरी इलाके जालंधर, अमृतसर सिटी, लुधियाना सिटी, जीरकपुर बेल्ट पर भाजपा का संगठन काफी मजबूत है। काफी सीटें ऐसी हैं, जहां पर हिंदू व व्यापारी वर्ग का वोट ही विधानसभा सीट का भविष्य तय करता है।
ऐसे में भाजपा ने इन सीटों पर पूरी ताकत झोंकने की तैयारी शुरू कर दी है। वहीं, दूसरी तरफ भाजपा काफी सिख व दलित चेहरों को पार्टी में शामिल करवाने की तैयारी में है, ताकि ग्रामीण इलाकों में मजबूत जनाधार खड़ा किया जा सके।
पंजाब में कांग्रेस, अकाली दल स्थापित पार्टियां हैं और उनका वोट प्रतिशत काफी अधिक है। वहीं, आम आदमी पार्टी भी पंजाब में अपना आधार व संगठन जमीनी स्तर पर तैयार कर चुकी है। भाजपा पंजाब में तीनों में से किसी से गठबंधन नहीं कर सकती है। अकाली दल के साथ गठबंधन टूट चुका है जबकि कांग्रेस व भाजपा कभी एक नहीं हो सकते।
आप की विचारधारा व पार्टी का एजेंडा भाजपा के साथ मेल नहीं खाता। पंजाब में बसपा का जनाधार भी है, लेकिन उसका वोट प्रतिशत 5 प्रतिशत से काफी कम है। भाजपा सूबे में बसपा के साथ भी गठबंधन नहीं कर सकती है, क्योंकि इसका असर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों पर पड़ सकता है।
भाजपा की कोर टीम ने अलग रणनीति तैयार करनी शुरू की
पंजाब में 34 सीटें आरक्षित हैं, जिन्हें लेकर भाजपा की कोर टीम ने अलग रणनीति तैयार करनी शुरू कर दी है। इन सीटों पर रविदासिया व वाल्मीकि समाज के अलावा भगत बिरादरी का खासा वोट बैंक हैं। पार्टी के पास प्रदेश में केंद्रीय राज्यमंत्री सोमप्रकाश के अलावा पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री विजय सांपला रविदासिया समाज के नेता हैं।
सोमप्रकाश केंद्रीय राज्यमंत्री हैं और पार्टी उनको पंजाब में पूरा फोकस करने के लिए मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है, ताकि 34 आरक्षित सीटों पर भी भाजपा अपना जनाधार बढ़ सके।
सार
भाजपा ने तैयार कर ली सिख नेताओं को आगे लाने की रणनीति
इकबाल सिंह लालपुरा को राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाना पहला कदम
तीनों पाटियों में से किसी के साथ गठबंधन नहीं कर सकती भाजपा
विस्तार
अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद पंजाब में भाजपा के लिए अब अपना वजूद कायम रखना और सत्ता की कुर्सी तक पहुंचना एक बड़ी चुनौती होगा। सूबे में स्थापित हो चुकी तीन बड़ी राजनीतिक पार्टियों से टक्कर लेनी होगी और अपने आठ प्रतिशत वोट से 30 फीसदी तक लाना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा।
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लिहाजा, भाजपा ने अभी से इसकी तैयारियां शुरू कर दी हैं और पूर्व पीपीएस अधिकारी इकबाल सिंह लालपुरा को राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाकर उन्होंने यह संदेश दे दिया है कि आने वाले दिनों में भाजपा में सिखों को उच्च पदों पर आसीन किया जा सकता है और प्रदेश में सिख नेताओं को आगे लाया जा सकता है।
सूबे में 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा का काफी बुरा हाल हुआ था। पार्टी के खिलाफ जबरदस्त हवा प्रदेश में चल रही थी और भाजपा 23 सीटों में तीन सीट ही जीत पाई थी। वोट बैंक 5.4 फीसदी पर सिमट गया था। भाजपा के दिग्गज नेता मदन मोहन मित्तल हमेशा स्टेज पर बोलते आ रहे थे कि भाजपा इस बार 23 पर नहीं लड़ने वाली बल्कि हम अपनी मर्जी से अकाली दल को सूबे में सीट देंगे, हमारी मर्जी चलेगी।
भाजपा के लिए चुनौतियां
1- भाजपा को पंजाब में किसानों का विश्वास बहाल करना होगा।
2- जीएसटी के बाद व्यापारी वर्ग खासा परेशान हैं और व्यापार काफी प्रभावित हुआ है।
3- नोटबंदी का असर अभी भी व्यापार पर जारी है और व्यापारी नोटबंदी से खुश नहीं हैं।
4- पंजाब में इंडस्ट्री का पलायन पहाड़ी राज्यों में हो चुका है, इंडस्ट्री को जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल में काफी पैकेज दिया गया, जिसका असर पंजाब में हुआ।
5- भाजपा के पास सिख चेहरों की कमी है और अल्पसंख्यकों में भाजपा को विश्वास बढ़ाना भी एक बड़ी चुनौती है।
रणनीतिः फूलका से बनाए मधुर संबंधी
ऐसे में गठबंधन टूटना भाजपा के लिए एक चुनौती है। पार्टी की तरफ से सिख चेहरों से बातचीत शुरू हो चुकी है। भाजपा व सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट एचएस फूलका के बीच भी संबंध काफी मधुर बन चुके हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक पंजाब के हिमाचल के साथ लगते बॉर्डर की बेल्ट पर भाजपा का जनाधार मजबूत है।
पठानकोट, सुजानपुर, गुरदासपुर, होशियारपुर, नंगल, रोपड़ के अलावा मोहाली, शहरी इलाके जालंधर, अमृतसर सिटी, लुधियाना सिटी, जीरकपुर बेल्ट पर भाजपा का संगठन काफी मजबूत है। काफी सीटें ऐसी हैं, जहां पर हिंदू व व्यापारी वर्ग का वोट ही विधानसभा सीट का भविष्य तय करता है।
ऐसे में भाजपा ने इन सीटों पर पूरी ताकत झोंकने की तैयारी शुरू कर दी है। वहीं, दूसरी तरफ भाजपा काफी सिख व दलित चेहरों को पार्टी में शामिल करवाने की तैयारी में है, ताकि ग्रामीण इलाकों में मजबूत जनाधार खड़ा किया जा सके।
भाजपा तीनों में से किसी दल से गठबंधन नहीं कर सकती
पंजाब में कांग्रेस, अकाली दल स्थापित पार्टियां हैं और उनका वोट प्रतिशत काफी अधिक है। वहीं, आम आदमी पार्टी भी पंजाब में अपना आधार व संगठन जमीनी स्तर पर तैयार कर चुकी है। भाजपा पंजाब में तीनों में से किसी से गठबंधन नहीं कर सकती है। अकाली दल के साथ गठबंधन टूट चुका है जबकि कांग्रेस व भाजपा कभी एक नहीं हो सकते।
आप की विचारधारा व पार्टी का एजेंडा भाजपा के साथ मेल नहीं खाता। पंजाब में बसपा का जनाधार भी है, लेकिन उसका वोट प्रतिशत 5 प्रतिशत से काफी कम है। भाजपा सूबे में बसपा के साथ भी गठबंधन नहीं कर सकती है, क्योंकि इसका असर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों पर पड़ सकता है।
भाजपा की कोर टीम ने अलग रणनीति तैयार करनी शुरू की
पंजाब में 34 सीटें आरक्षित हैं, जिन्हें लेकर भाजपा की कोर टीम ने अलग रणनीति तैयार करनी शुरू कर दी है। इन सीटों पर रविदासिया व वाल्मीकि समाज के अलावा भगत बिरादरी का खासा वोट बैंक हैं। पार्टी के पास प्रदेश में केंद्रीय राज्यमंत्री सोमप्रकाश के अलावा पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री विजय सांपला रविदासिया समाज के नेता हैं।
सोमप्रकाश केंद्रीय राज्यमंत्री हैं और पार्टी उनको पंजाब में पूरा फोकस करने के लिए मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है, ताकि 34 आरक्षित सीटों पर भी भाजपा अपना जनाधार बढ़ सके।
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