लता जी से बात हो सकती है? " उधर से आवाज़ आई "हां, मी लता बोलते"। बस भैया, अपनी हवा निकल गई।
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मैं एक एफएम रेडियो स्टेशन में काम करता था। एफएम रेडियो को इंदौर में आए एक साल भी नहीं हुआ था। नया मीडियम था। सब युवा साथी थे। जोश से भरपूर। बस उन सबमें मैं सबसे बड़ा था तो प्रोग्रामिंग का ज़िम्मा मेरे सर पर आ गिरा था। लेकिन मैं रेडियो जॉकी नहीं था इसलिए महीनों तक सभी परिचितों को समझा नहीं पाया कि मैं रेडियो पर बोलता तो हूं नहीं, तो करता क्या हूं?
मैंने भी एक तरीका खोज निकाला था। कोई पूछता था कि रेडियो में क्या करते हो तो मेरा जवाब होता था कि रेडियो पर जो आप बढ़िया- बढ़िया गाने सुनते हो न, वो मैं ही लगाता हूं। पता नहीं किसी को क्या समझ आता था मगर वो जवाब काम कर जाता था या लोग अगला सवाल पूछने से कतराते थे कि ये तो यूं ही सीडी संभालने वाला होगा।
खैर, 2002 में सितंबर का महीना था। तारीख ठीक से याद नहीं। प्रोग्रामिंग की मीटिंग हुई और ये तय पाया गया की 28 सितम्बर को लता मंगेशकर जी का जन्मदिन है, वो इंदौर की हैं तो इंदौर के पहले एफएम स्टेशन पर लता मंगेशकर का जन्मदिन मनाया जाना चाहिए। लता मंगेशकर पर कौन बोल सकता है? किसी की अथॉरिटी तो होनी चाहिए इस अंतहीन विषय पर।
म्यूजिक लिस्ट यानी उन दिन कौन से गाने बजाए जाएंगे ये सोचने की ज़िम्मेदारी बिना सोचे-समझे मेरे स्टेशन हेड ने मुझे चिपका दी। गुरु यार पुराने गाने हैं, तुम्हें तो सब पता होते हैं, ऐसा चने के झाड़ पर चढ़ाना और लता के गाने चुनने का काम। बस अपने मियां तैयार। बड़े लंबे डिस्कशन के बाद ये तय हुआ कि किसी तरीके से लता मंगेशकर का नंबर जुगाड़ किया जाए और उन्हें फ़ोन के ज़रिए रिकॉर्ड किया जाए।
अब ये काम कौन करेगा? हमारे रेडियो जॉकी सब 20-22 की उम्र के थे। कहीं किसी ने कुछ अटपटा पूछ लिया, बोलते हुए अटक गया तो हमारी कंपनी के लिए लता जी कभी इंटरव्यू नहीं देंगी। स्टेशन हेड महोदय पधारे और कहा, विप्लव! मैं अंदर से खुश हो गया। फिर थोड़ा डर गया। लता मंगेशकर से फ़ोन पर बात। पहले तो ये कि फ़ोन लगाना, फिर वो बात करेंगी? और करेंगी तो क्या बोलूंगा, क्या पूछूंगा? उन्होंने मना कर दिया तो?
उधर से आवाज़ आई "हां, मी लता बोलते"
खैर, काफी जद्दोजहद के बाद, ऑफिस के एसटीडी वाले फ़ोन से फ़ोन लगाना तय किया गया, मगर नंबर कहां से लाया जाए? मैंने अपनी बहन रूना को फ़ोन किया। वो मुंबई में एंटरटेनमेंट जर्नलिस्ट थी एक टीवी चैनल पर और पूरा दिन फिल्म सेलिब्रिटीज के इंटरव्यू किया करती थी। उसने बिना कुछ कहे लता मंगेशकर का नंबर भेज दिया।
दरअसल, उन दिनों सिर्फ एसएमएस हुआ करते थे मोबाइल पर। जैसे ही नंबर मिला, दिल बल्लियों नाच उठा और पूरे ऑफिस में हंगामा कर दिया गया। लता मंगेशकर का नंबर, घर का। डायरेक्ट लाइन है। अगले दिन सवेरे ठीक 10 बजे, पूरा ऑफिस जमा, एसटीडी वाले फ़ोन के इर्द-गिर्द। सारे रेडियो जॉकी, शो प्रोडूसर, सेल्स की टीम, और हमारे स्टेशन हेड, जिन्होंने बड़ी ही अदायगी से फ़ोन का एसटीडी लॉक ओपन किया और फ़ोन मेरी तरफ सरका दिया। मैंने धड़कते दिल से नंबर घुमाया।
3-4 रिंग बजी मगर किसी ने फ़ोन उठाया नहीं। मेरा दिल हथौड़े की तरह बज रहा था। एक पल को ये भी लगा कि फ़ोन न उठे तो शायद बच जाएं। लता मंगेशकर से फ़ोन पर बात करने की हिम्मत किस में है। फिर खड़खड़ कर रिसीवर उठाया गया। मैंने बहुत ही भारी आवाज़ में कहा "हैलो, मैं विप्लव बोल रहा हूं रेडियो मिर्ची इंदौर से। लता जी से बात हो सकती है? "
उधर से आवाज़ आई "हां, मी लता बोलते"। बस भैया, अपनी हवा निकल गई।
मैं चुप। फिर सब मेरी तरफ देख रहे थे। मेरे दिमाग ने 1 लाख कैल्कुलेशन प्रति नैनो सेकंड के हिसाब से रफ़्तार पकड़ी और सोचा कि आज अगर गुरु तुम ये फ़ोन इंटरव्यू करने में फेल हो गए तो ये तुम्हारी टीम के लोग तुम्हारी इज़्ज़त नहीं करेंगे। बात सेल्फ रेस्पेक्ट की थी। मैंने आवाज़ में थोड़ी मधुरता होने का असफल प्रयास किया और बोला
"आई, तुमचा वाढ़ दिवस येतोय, त्या बद्दल इंटरव्यू करायचा होता।" (हिंदी तर्जुमा- आई (मां), आपका जन्मदिन आ रहा है, उसी सिलसिले में आपका इंटरव्यू करना था)।
थोड़ा डेड पॉज आया, लता जी शायद सोच रही थी।
"कुठून बोलताय आपण" (कहां से बोल रहे हैं आप)।
इधर दिमाग का शार्ट सर्किट। "आप"? लता मंगेशकर ने मुझे "आप" कह के सम्बोधित किया? अपन फुल चौड़े, एक सेकेंड में। टीम के सभी लोगों को ऐसी सुपरियरिटी वाली फीलिंग से देखा और फ़र्ज़ी कॉन्फिडेंस के साथ कहा- आई, मैं इंदौर से बोल रहा हूं। फ़ोन पर आपका इंटरव्यू कर सकते हैं? रेडियो मिर्ची एक एफएम रेडियो स्टेशन है।
लता जी ने कहा- अरे आपण इंदौर हूं बोलताय। हो करुया न। कधी करायचा आहे। (अरे आप इंदौर से बोल रहे हैं। हां करते हैं न। कब करना है)
अपनी सांस फूल गई!
गुरु, इतना सुनने के बाद, तो अपनी सांस फूल गई थी। दिल की धाड़-धाड़ बहार तक सुनाई दे रही थी। गला सूख गया। पैर कांपने लगे। और बोल निकलने से मना करने लगे। टीम को देखा और हाथ से इशारा किया की वो राज़ी हैं (थम्ब्स अप) और पूछ रही हैं कब।
फिर एक सहकर्मी ने तुरंत कागज़ पर लिखा कि अभी कर लेते हैं।
"आई, अत्ता 5 मिनटात करुया का? जमेल का तुम्हाला। (आई, अभी 5 मिनट में कर लें क्या? आपको जमेगा क्या?)
लताजी अब हंस पड़ी,
5 मिनिटात? हो चालेल। हिंदी मधे की मराठी मधे? ( 5 मिनट में? हां चलेगा। हिंदी में या मराठी में)
मैंने जवाब दिया -आई हिंदी में करेंगे, ज़्यादातर लोग हिंदी समझते हैं।
लता जी ने कहा
ठीक है। इसी नंबर पर लगाइए आप। मैं यहीं बैठी हूं।
मैं सन्नाटे में था। फ़ोन कट हो गया था उधर से। मैं कांप रहा था। जैसे ही फ़ोन रखा। सब के सब चिल्लाए "ये"। मैं वहीं कुर्सी पर धराशायी हो गया। लता मंगेशकर से फ़ोन पर बात की मैंने!डायरेक्टली!! बिना किसी की मदद के!!!
मैं घबराया तो था मगर, बात पूरी कर ली। लाइफ में एक और ऐसा काम किया जो करने का सौभाग्य बहुत कम लोगों को होता है। पूरी टीम स्टूडियो भागी। वहां जाकर सब पहले ही जम गए। कोई कुर्सी पर, कोई टेबल पर। कोई नीचे, कोई खिड़की पर टिका हुआ।
बगल वाले स्टूडियो में बाकी टीम घुसी। स्टेशन के इंजीनियर ने इधर की आवाज़ उस स्टूडियो में सुनाई दे ऐसा इंतज़ाम किया हुआ था। 1 मिनट से भी कम समय में दोनों स्टूडियो खचाखच। मैं और स्टेशन हेड, धीरे-धीरे स्टूडियो में घुसे। हाथ में प्रिंट आउट थे। उन सवालों के जो मैं पूछना चाहता था।
इस बात को करीब 17 साल हो गए। लता मंगेशकर से आगे मैंने ढेर सवाल पूछे। इतनी हिम्मत नहीं हुई कि उनसे गुनगुनाने के लिए कह सकूं। सरस्वती से कोई ज्ञान मांगे तो कैसे।
खैर करीब 18 मिनट तक फ़ोन पर इंटरव्यू किया। अब लाइफ से क्या मांगता टाइप की फीलिंग लेकर घूमता रहा। हमारे कॉर्पोरेट ऑफिस में भी इस बात की बड़ी चर्चा रही।
लता जी का इंटरव्यू लिया तो घर में भी थोड़ी इज़्ज़त बढ़ी
खैर, इस इंटरव्यू के लिए सवाल लिख रहा था तो हमेशा की तरह अपने इनसाइक्लोपीडिया को पूछना पड़ा। पिताजी। उन्होंने एक ही हिदायत दी, लता मंगेशकर जितनी सुरीली हैं, उनसे कुछ कबूलवाना उतना ही मुश्किल है।
भूलकर भी उनके और आशा के तथाकथित झगड़े के बारे में मत पूछना। उनके और एसडी बर्मन के झगड़े के बारे में मत पूछना। सज्जाद/ अनिल बिस्वास/ ओपी नय्यर ये म्यूजिक डायरेक्टर्स के बारे में वो शायद बात नहीं करेंगी, तुम प्रयास भी मत करना। ऐसी ही हिदायतों की एक पूरी फेहरिस्त बनाई गई थी।
और आखिर में उन्होंने कहा, ये सब तो कुछ नहीं है बस अगर चाहते हो कि तुम्हारे मुंह पर फ़ोन बंद न किया जाए तो लता जी से राज सिंह डूंगरपुर पर कोई सवाल मत पूछना। मैं सोच में पड़ गया। राज सिंह जी तो क्रिकेट वाले हैं। उनका लता मंगेशकर से क्या लेना-देना। फिर मैंने सोचा होगा कुछ। लता जी के सब चाहने वाले हैं तो एकाध तो ऐसा भी होगा जो उन्हें पसंद नहीं करता होगा।
जब इंटरव्यू का बुखार थोड़ा कम हुआ, तो मैंने राज सिंह डूंगरपुर के बारे में पढ़ने की कोशिश की। उन दिनों इंटरनेट होता था, गूगल होता था लेकिन हम तो इंदौर शहर वाले, सर्च करने का शऊर भी तो होना चाहिए। उन दिनों कुछ खास होता नहीं था। इंटरनेट भी छोटा बच्चा था।
मैंने फिर पिताजी से ही पूछ लिया। राज सिंह डूंगरपुर और लता मंगेशकर के बीच में किस बात को लेकर झगड़ा हुआ था। पिताजी को एक पल के लिए शायद शक हुआ होगा कि ये मेरी ही संतान है। ऐसा मूर्खता पूर्ण सवाल?
खैर, लता जी का इंटरव्यू कर लिया था तो अपनी घर में भी थोड़ी इज़्ज़त बढ़ गई थी। फिर पिताजी ने कहानी सुनाई।
लता जी, राज जी के साथ क्रिकेट मैच देखने ज़रूर जाती
राजसिंह डूंगरपुर, राजस्थान के डूंगरपुर राज्य के महाराज लक्ष्मण सिंह जी तीसरे बेटे थे। उनके भाई जय सिंह और महिपाल सिंह जी और तीन बहनें थी जिनमें से एक अब बीकानेर की महारानी हैं।
राज सिंह इंदौर के डेली कॉलेज में पढ़े थे लेकिन वो लता जी से यहां नहीं मिले थे। लता जी मुंबई आ चुकी थीं, और उनकी ज़िन्दगी की जद्दोजहद आरम्भ हो चुकी थी। पूरा दिन अलग-अलग स्टूडियोज में रिकॉर्डिंग करती रहती थी।
राज ने जल्द ही क्रिकेट के क्षेत्र में अपना नाम कमा लिया था और राजस्थान से रणजी खेलने लगे थे। फिर राज सिंह कानून की शिक्षा लेने के लिए मुंबई आए। आजकल के मशहूर पत्रकार राजदीप सरदेसाई के चाचा सोपान सरदेसाई से उनकी मित्रता थी। उन्होंने सोपान से कहा कि बगैर क्रिकेट खेले तो मैं मर जाऊंगा। तब सोपान ने कहा कि हृदयनाथ मंगेशकर और उनके दोस्त, वालकेश्वर हाउस में टेनिस बॉल क्रिकेट खेलते हैं, तुम वहां चले जाओ। तब वालकेश्वर रोड पर मंगेशकर परिवार 2 बैडरूम के घर में रहते थे।
इस तरह राज वहां गए, हृदयनाथ से अच्छी मित्रता भी हो गई। इसी वजह से एक दिन उन्हें घर पर चाय के लिए बुलाया गया। ये थी राज और लता की पहली मुलाक़ात। राज अपनी बहन के घर रहते थे, नेपियन सी रोड पर। लता जी ने अपनी कार से राज को वहां छुड़वा भी दिया।
धीरे-धीरे राज का घर आना जाना बढ़ता गया। लता जी और उनमें मित्रता हुई और राज को फिर उनकी रिकॉर्डिंग्स पर जाने का अवसर भी मिलता रहा। इसी तरह दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे। राज सिंह जी लता जी के साथ उनके शोज पर, फॉरेन टूर्स पर भी जाते।
लता जी, राज जी के साथ क्रिकेट मैच देखने ज़रूर जाती। लता जी को क्रिकेट का शौक़ भी इसलिए लगा। राज जी के पास लता जी के गाए हुए गानों की कैसेट्स और वॉकमेन होता था। जब भी समय मिलता था वो लता जी के गाने सुनते थे। हालांकि न्यू यॉर्क में एक रेस्टोरेंट में खाना खाते समय मशहूर गायक मुकेश ने लाड से राज सिंह को "औरंगज़ेब" कहा था क्योंकि राज जी को संगीत का ज्ञान कम था।
लता जी ने अपनी दवाइयां ली और राज से कहा "सच में बहुत अच्छा लग रहा है"
लता जी और राज जी के इस रिश्ते को मक़बूल होने में एक पेंच था। राज जी ने अपने पिता जो वचन दिया था कि वे शादी करेंगे तो किसी राजघराने की लड़की से ही करेंगे, किसी आम परिवार की लड़की से नहीं करेंगे।
राज ताज़िन्दगी कुंवारे रहे। लता जी ने भी आज तक शादी नहीं की। क्रिकेट की सफ़ेद यूनिफॉर्म में राज जी और गोल्डन बॉर्डर वाली सफ़ेद साड़ी में लता जी। ये कैसा अनूठा रिश्ता रहा है।
एक बार का किस्सा है। लंदन में राज जी और लता जी कहीं से घूम कर वापस लौटे थे। रात के 11.30 बजे होंगे। लता जी के रूम का फ़ोन लगातार बज रहा था। लता जी ने दौड़ते हुए फ़ोन उठाया और बात सुनकर कहा "वाओ"। राज जी हैरान कि ऐसा क्या रह गया लता जी की ज़िन्दगी में कि अब भी कोई बात उन्हें "वाओ" लग सकती है। जिज्ञासा का समाधान हुआ। लता जी की भांजी रचना ने फ़ोन किया था कि भारत सरकार ने लता जी को भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। उसके बाद तो पूरी रात फ़ोन बजता रहा। सवेरे राज जी को खुद चाय बनानी पड़ी। लता जी ने चाय के साथ अपनी दवाइयां ली और राज से कहा "सच में बहुत अच्छा लग रहा है"।
लता जी के साथ पूरी क्रिकेट टीम ने इस गाने को स्टेज पर गाया था
1983 में लॉर्ड्स में राज जी और लता जी ने भारत को वर्ल्ड कप क्रिकेट का विजेता बनते हुए देखा था। फाइनल के एक रात पहले पूरी टीम को डिनर के लिए न्योता दिया गया था। पूरी इंडियन टीम को जीतने पर सिर्फ 20000 पौंड मिले थे जिस से राज जी थोड़े उदास थे।
क्रिकेट बोर्ड उन दिनों अलग तरीके से चलता था। विश्व विजेता टीम के खिलाड़ियों को उपहार देने के लिए पैसे नहीं थे। ऐसे में राज जी ने, बोर्ड प्रेजिडेंट एनकेपी साल्वे के माध्यम से, दरख्वास्त की तो लता जी ने इन विश्व विजेता टीम के लिए एक कॉन्सर्ट करने के लिए हामी भर दी।
दिल्ली के इंद्रप्रस्थ स्टेडियम में हुए 4 घंटे तक चले इस कॉन्सर्ट से हृदयनाथ मंगेशकर ने एक खास गीत रचा था "भारत विश्व विजेता"। लता जी के साथ पूरी क्रिकेट टीम ने इस गाने को स्टेज पर गाया था।
इस कॉन्सर्ट से 20 लाख रुपये की कमाई हुई थी जो 14 सदस्यों की टीम को सम्मान स्वरूप प्रस्तुत की गई थी। ये था लता जी का क्रिकेट प्रेम। कई वर्षों बाद 2003 में बोर्ड के प्रेजिडेंट जगमोहन डालमिया ने एक प्रदर्शन मैच के ज़रिये मंगेशकर परिवार के पुणे स्थित हॉस्पिटल के लिए पैसा इकठ्ठा कर के इस कॉन्सर्ट का एहसान चुकाया।
आज लता जी का जन्मदिन है। सुर साम्राज्ञी, सरस्वती और जाने कितनी उपाधियों से नवाज़ी गई लता जी पर आज तक कई किताबें, आर्टिकल्स और डॉक्यूमेंटरीज बन चुकी हैं। मुझे बाद में लता जी से मिलने का सौभाग्य भी हुआ। फ़िल्म फेयर अवॉर्ड्स की 50 वीं वर्षगांठ के अवसर पर लता जी, यश चोपड़ा जी और अमिताभ बच्चन ने की फिल्म फेयर अवॉर्ड्स की नई ट्रॉफी का उद्घाटन किया था।
मेरी ज़िम्मेदारी थी कि ये तीनों शख्स सही समय पर कार्यक्रम में पहुंच जाएं और इसी के चलते मैं पेडर रोड स्थित "प्रभु कुञ्ज" निवास भी जा सका और लता जी से मुलाक़ात कर आशीर्वाद भी ले सका।
आज भी लता जी संगीत में सक्रिय हैं। रियाज़ करती हैं। और मज़े की बात - "ट्वीट" भी करती हैं। वो संभवतः दुनिया की इकलौती ऐसी आर्टिस्ट हैं जिनके ट्वीट पढ़ने पर महसूस किया जा सकता है कि वो ट्वीट खुद-बा-खुद बोल रहे हैं। उनके ट्वीट उन्हीं की आवाज़ में पढ़े जा सकते हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें
[email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।
मैं एक एफएम रेडियो स्टेशन में काम करता था। एफएम रेडियो को इंदौर में आए एक साल भी नहीं हुआ था। नया मीडियम था। सब युवा साथी थे। जोश से भरपूर। बस उन सबमें मैं सबसे बड़ा था तो प्रोग्रामिंग का ज़िम्मा मेरे सर पर आ गिरा था। लेकिन मैं रेडियो जॉकी नहीं था इसलिए महीनों तक सभी परिचितों को समझा नहीं पाया कि मैं रेडियो पर बोलता तो हूं नहीं, तो करता क्या हूं?
मैंने भी एक तरीका खोज निकाला था। कोई पूछता था कि रेडियो में क्या करते हो तो मेरा जवाब होता था कि रेडियो पर जो आप बढ़िया- बढ़िया गाने सुनते हो न, वो मैं ही लगाता हूं। पता नहीं किसी को क्या समझ आता था मगर वो जवाब काम कर जाता था या लोग अगला सवाल पूछने से कतराते थे कि ये तो यूं ही सीडी संभालने वाला होगा।
खैर, 2002 में सितंबर का महीना था। तारीख ठीक से याद नहीं। प्रोग्रामिंग की मीटिंग हुई और ये तय पाया गया की 28 सितम्बर को लता मंगेशकर जी का जन्मदिन है, वो इंदौर की हैं तो इंदौर के पहले एफएम स्टेशन पर लता मंगेशकर का जन्मदिन मनाया जाना चाहिए। लता मंगेशकर पर कौन बोल सकता है? किसी की अथॉरिटी तो होनी चाहिए इस अंतहीन विषय पर।
म्यूजिक लिस्ट यानी उन दिन कौन से गाने बजाए जाएंगे ये सोचने की ज़िम्मेदारी बिना सोचे-समझे मेरे स्टेशन हेड ने मुझे चिपका दी। गुरु यार पुराने गाने हैं, तुम्हें तो सब पता होते हैं, ऐसा चने के झाड़ पर चढ़ाना और लता के गाने चुनने का काम। बस अपने मियां तैयार। बड़े लंबे डिस्कशन के बाद ये तय हुआ कि किसी तरीके से लता मंगेशकर का नंबर जुगाड़ किया जाए और उन्हें फ़ोन के ज़रिए रिकॉर्ड किया जाए।
अब ये काम कौन करेगा? हमारे रेडियो जॉकी सब 20-22 की उम्र के थे। कहीं किसी ने कुछ अटपटा पूछ लिया, बोलते हुए अटक गया तो हमारी कंपनी के लिए लता जी कभी इंटरव्यू नहीं देंगी। स्टेशन हेड महोदय पधारे और कहा, विप्लव! मैं अंदर से खुश हो गया। फिर थोड़ा डर गया। लता मंगेशकर से फ़ोन पर बात। पहले तो ये कि फ़ोन लगाना, फिर वो बात करेंगी? और करेंगी तो क्या बोलूंगा, क्या पूछूंगा? उन्होंने मना कर दिया तो?
उधर से आवाज़ आई "हां, मी लता बोलते"
खैर, काफी जद्दोजहद के बाद, ऑफिस के एसटीडी वाले फ़ोन से फ़ोन लगाना तय किया गया, मगर नंबर कहां से लाया जाए? मैंने अपनी बहन रूना को फ़ोन किया। वो मुंबई में एंटरटेनमेंट जर्नलिस्ट थी एक टीवी चैनल पर और पूरा दिन फिल्म सेलिब्रिटीज के इंटरव्यू किया करती थी। उसने बिना कुछ कहे लता मंगेशकर का नंबर भेज दिया।
दरअसल, उन दिनों सिर्फ एसएमएस हुआ करते थे मोबाइल पर। जैसे ही नंबर मिला, दिल बल्लियों नाच उठा और पूरे ऑफिस में हंगामा कर दिया गया। लता मंगेशकर का नंबर, घर का। डायरेक्ट लाइन है। अगले दिन सवेरे ठीक 10 बजे, पूरा ऑफिस जमा, एसटीडी वाले फ़ोन के इर्द-गिर्द। सारे रेडियो जॉकी, शो प्रोडूसर, सेल्स की टीम, और हमारे स्टेशन हेड, जिन्होंने बड़ी ही अदायगी से फ़ोन का एसटीडी लॉक ओपन किया और फ़ोन मेरी तरफ सरका दिया। मैंने धड़कते दिल से नंबर घुमाया।
3-4 रिंग बजी मगर किसी ने फ़ोन उठाया नहीं। मेरा दिल हथौड़े की तरह बज रहा था। एक पल को ये भी लगा कि फ़ोन न उठे तो शायद बच जाएं। लता मंगेशकर से फ़ोन पर बात करने की हिम्मत किस में है। फिर खड़खड़ कर रिसीवर उठाया गया। मैंने बहुत ही भारी आवाज़ में कहा "हैलो, मैं विप्लव बोल रहा हूं रेडियो मिर्ची इंदौर से। लता जी से बात हो सकती है? "
उधर से आवाज़ आई "हां, मी लता बोलते"।
बस भैया, अपनी हवा निकल गई।
मैं चुप। फिर सब मेरी तरफ देख रहे थे। मेरे दिमाग ने 1 लाख कैल्कुलेशन प्रति नैनो सेकंड के हिसाब से रफ़्तार पकड़ी और सोचा कि आज अगर गुरु तुम ये फ़ोन इंटरव्यू करने में फेल हो गए तो ये तुम्हारी टीम के लोग तुम्हारी इज़्ज़त नहीं करेंगे। बात सेल्फ रेस्पेक्ट की थी। मैंने आवाज़ में थोड़ी मधुरता होने का असफल प्रयास किया और बोला
"आई, तुमचा वाढ़ दिवस येतोय, त्या बद्दल इंटरव्यू करायचा होता।" (हिंदी तर्जुमा- आई (मां), आपका जन्मदिन आ रहा है, उसी सिलसिले में आपका इंटरव्यू करना था)।
थोड़ा डेड पॉज आया, लता जी शायद सोच रही थी।
"कुठून बोलताय आपण" (कहां से बोल रहे हैं आप)।
इधर दिमाग का शार्ट सर्किट। "आप"? लता मंगेशकर ने मुझे "आप" कह के सम्बोधित किया? अपन फुल चौड़े, एक सेकेंड में। टीम के सभी लोगों को ऐसी सुपरियरिटी वाली फीलिंग से देखा और फ़र्ज़ी कॉन्फिडेंस के साथ कहा- आई, मैं इंदौर से बोल रहा हूं। फ़ोन पर आपका इंटरव्यू कर सकते हैं? रेडियो मिर्ची एक एफएम रेडियो स्टेशन है।
लता जी ने कहा- अरे आपण इंदौर हूं बोलताय। हो करुया न। कधी करायचा आहे। (अरे आप इंदौर से बोल रहे हैं। हां करते हैं न। कब करना है)
अपनी सांस फूल गई!
गुरु, इतना सुनने के बाद, तो अपनी सांस फूल गई थी। दिल की धाड़-धाड़ बहार तक सुनाई दे रही थी। गला सूख गया। पैर कांपने लगे। और बोल निकलने से मना करने लगे। टीम को देखा और हाथ से इशारा किया की वो राज़ी हैं (थम्ब्स अप) और पूछ रही हैं कब।
फिर एक सहकर्मी ने तुरंत कागज़ पर लिखा कि अभी कर लेते हैं।
"आई, अत्ता 5 मिनटात करुया का? जमेल का तुम्हाला। (आई, अभी 5 मिनट में कर लें क्या? आपको जमेगा क्या?)
लताजी अब हंस पड़ी,
5 मिनिटात? हो चालेल। हिंदी मधे की मराठी मधे? ( 5 मिनट में? हां चलेगा। हिंदी में या मराठी में)
मैंने जवाब दिया -आई हिंदी में करेंगे, ज़्यादातर लोग हिंदी समझते हैं।
लता जी ने कहा
ठीक है। इसी नंबर पर लगाइए आप। मैं यहीं बैठी हूं।
मैं सन्नाटे में था। फ़ोन कट हो गया था उधर से। मैं कांप रहा था।
मैं सन्नाटे में था। फ़ोन कट हो गया था उधर से। मैं कांप रहा था। जैसे ही फ़ोन रखा। सब के सब चिल्लाए "ये"। मैं वहीं कुर्सी पर धराशायी हो गया। लता मंगेशकर से फ़ोन पर बात की मैंने!डायरेक्टली!! बिना किसी की मदद के!!!
मैं घबराया तो था मगर, बात पूरी कर ली। लाइफ में एक और ऐसा काम किया जो करने का सौभाग्य बहुत कम लोगों को होता है। पूरी टीम स्टूडियो भागी। वहां जाकर सब पहले ही जम गए। कोई कुर्सी पर, कोई टेबल पर। कोई नीचे, कोई खिड़की पर टिका हुआ।
बगल वाले स्टूडियो में बाकी टीम घुसी। स्टेशन के इंजीनियर ने इधर की आवाज़ उस स्टूडियो में सुनाई दे ऐसा इंतज़ाम किया हुआ था। 1 मिनट से भी कम समय में दोनों स्टूडियो खचाखच। मैं और स्टेशन हेड, धीरे-धीरे स्टूडियो में घुसे। हाथ में प्रिंट आउट थे। उन सवालों के जो मैं पूछना चाहता था।
इस बात को करीब 17 साल हो गए। लता मंगेशकर से आगे मैंने ढेर सवाल पूछे। इतनी हिम्मत नहीं हुई कि उनसे गुनगुनाने के लिए कह सकूं। सरस्वती से कोई ज्ञान मांगे तो कैसे।
खैर करीब 18 मिनट तक फ़ोन पर इंटरव्यू किया। अब लाइफ से क्या मांगता टाइप की फीलिंग लेकर घूमता रहा। हमारे कॉर्पोरेट ऑफिस में भी इस बात की बड़ी चर्चा रही।
लता जी का इंटरव्यू लिया तो घर में भी थोड़ी इज़्ज़त बढ़ी
खैर, इस इंटरव्यू के लिए सवाल लिख रहा था तो हमेशा की तरह अपने इनसाइक्लोपीडिया को पूछना पड़ा। पिताजी। उन्होंने एक ही हिदायत दी, लता मंगेशकर जितनी सुरीली हैं, उनसे कुछ कबूलवाना उतना ही मुश्किल है।
भूलकर भी उनके और आशा के तथाकथित झगड़े के बारे में मत पूछना। उनके और एसडी बर्मन के झगड़े के बारे में मत पूछना। सज्जाद/ अनिल बिस्वास/ ओपी नय्यर ये म्यूजिक डायरेक्टर्स के बारे में वो शायद बात नहीं करेंगी, तुम प्रयास भी मत करना। ऐसी ही हिदायतों की एक पूरी फेहरिस्त बनाई गई थी।
और आखिर में उन्होंने कहा, ये सब तो कुछ नहीं है बस अगर चाहते हो कि तुम्हारे मुंह पर फ़ोन बंद न किया जाए तो लता जी से राज सिंह डूंगरपुर पर कोई सवाल मत पूछना। मैं सोच में पड़ गया। राज सिंह जी तो क्रिकेट वाले हैं। उनका लता मंगेशकर से क्या लेना-देना। फिर मैंने सोचा होगा कुछ। लता जी के सब चाहने वाले हैं तो एकाध तो ऐसा भी होगा जो उन्हें पसंद नहीं करता होगा।
जब इंटरव्यू का बुखार थोड़ा कम हुआ, तो मैंने राज सिंह डूंगरपुर के बारे में पढ़ने की कोशिश की। उन दिनों इंटरनेट होता था, गूगल होता था लेकिन हम तो इंदौर शहर वाले, सर्च करने का शऊर भी तो होना चाहिए। उन दिनों कुछ खास होता नहीं था। इंटरनेट भी छोटा बच्चा था।
मैंने फिर पिताजी से ही पूछ लिया। राज सिंह डूंगरपुर और लता मंगेशकर के बीच में किस बात को लेकर झगड़ा हुआ था। पिताजी को एक पल के लिए शायद शक हुआ होगा कि ये मेरी ही संतान है। ऐसा मूर्खता पूर्ण सवाल?
खैर, लता जी का इंटरव्यू कर लिया था तो अपनी घर में भी थोड़ी इज़्ज़त बढ़ गई थी। फिर पिताजी ने कहानी सुनाई।
लता जी, राज जी के साथ क्रिकेट मैच देखने ज़रूर जाती
राजसिंह डूंगरपुर, राजस्थान के डूंगरपुर राज्य के महाराज लक्ष्मण सिंह जी तीसरे बेटे थे। उनके भाई जय सिंह और महिपाल सिंह जी और तीन बहनें थी जिनमें से एक अब बीकानेर की महारानी हैं।
राज सिंह इंदौर के डेली कॉलेज में पढ़े थे लेकिन वो लता जी से यहां नहीं मिले थे। लता जी मुंबई आ चुकी थीं, और उनकी ज़िन्दगी की जद्दोजहद आरम्भ हो चुकी थी। पूरा दिन अलग-अलग स्टूडियोज में रिकॉर्डिंग करती रहती थी।
राज ने जल्द ही क्रिकेट के क्षेत्र में अपना नाम कमा लिया था और राजस्थान से रणजी खेलने लगे थे। फिर राज सिंह कानून की शिक्षा लेने के लिए मुंबई आए। आजकल के मशहूर पत्रकार राजदीप सरदेसाई के चाचा सोपान सरदेसाई से उनकी मित्रता थी। उन्होंने सोपान से कहा कि बगैर क्रिकेट खेले तो मैं मर जाऊंगा। तब सोपान ने कहा कि हृदयनाथ मंगेशकर और उनके दोस्त, वालकेश्वर हाउस में टेनिस बॉल क्रिकेट खेलते हैं, तुम वहां चले जाओ। तब वालकेश्वर रोड पर मंगेशकर परिवार 2 बैडरूम के घर में रहते थे।
इस तरह राज वहां गए, हृदयनाथ से अच्छी मित्रता भी हो गई। इसी वजह से एक दिन उन्हें घर पर चाय के लिए बुलाया गया। ये थी राज और लता की पहली मुलाक़ात। राज अपनी बहन के घर रहते थे, नेपियन सी रोड पर। लता जी ने अपनी कार से राज को वहां छुड़वा भी दिया।
धीरे-धीरे राज का घर आना जाना बढ़ता गया। लता जी और उनमें मित्रता हुई और राज को फिर उनकी रिकॉर्डिंग्स पर जाने का अवसर भी मिलता रहा। इसी तरह दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे। राज सिंह जी लता जी के साथ उनके शोज पर, फॉरेन टूर्स पर भी जाते।
लता जी, राज जी के साथ क्रिकेट मैच देखने ज़रूर जाती। लता जी को क्रिकेट का शौक़ भी इसलिए लगा। राज जी के पास लता जी के गाए हुए गानों की कैसेट्स और वॉकमेन होता था। जब भी समय मिलता था वो लता जी के गाने सुनते थे। हालांकि न्यू यॉर्क में एक रेस्टोरेंट में खाना खाते समय मशहूर गायक मुकेश ने लाड से राज सिंह को "औरंगज़ेब" कहा था क्योंकि राज जी को संगीत का ज्ञान कम था।
लता जी और राज जी के इस रिश्ते को मक़बूल होने में एक पेंच था
लता जी ने अपनी दवाइयां ली और राज से कहा "सच में बहुत अच्छा लग रहा है"
लता जी और राज जी के इस रिश्ते को मक़बूल होने में एक पेंच था। राज जी ने अपने पिता जो वचन दिया था कि वे शादी करेंगे तो किसी राजघराने की लड़की से ही करेंगे, किसी आम परिवार की लड़की से नहीं करेंगे।
राज ताज़िन्दगी कुंवारे रहे। लता जी ने भी आज तक शादी नहीं की। क्रिकेट की सफ़ेद यूनिफॉर्म में राज जी और गोल्डन बॉर्डर वाली सफ़ेद साड़ी में लता जी। ये कैसा अनूठा रिश्ता रहा है।
एक बार का किस्सा है। लंदन में राज जी और लता जी कहीं से घूम कर वापस लौटे थे। रात के 11.30 बजे होंगे। लता जी के रूम का फ़ोन लगातार बज रहा था। लता जी ने दौड़ते हुए फ़ोन उठाया और बात सुनकर कहा "वाओ"। राज जी हैरान कि ऐसा क्या रह गया लता जी की ज़िन्दगी में कि अब भी कोई बात उन्हें "वाओ" लग सकती है। जिज्ञासा का समाधान हुआ। लता जी की भांजी रचना ने फ़ोन किया था कि भारत सरकार ने लता जी को भारत रत्न की उपाधि से सम्मानित करने का निर्णय लिया है। उसके बाद तो पूरी रात फ़ोन बजता रहा। सवेरे राज जी को खुद चाय बनानी पड़ी। लता जी ने चाय के साथ अपनी दवाइयां ली और राज से कहा "सच में बहुत अच्छा लग रहा है"।
लता जी के साथ पूरी क्रिकेट टीम ने इस गाने को स्टेज पर गाया था
1983 में लॉर्ड्स में राज जी और लता जी ने भारत को वर्ल्ड कप क्रिकेट का विजेता बनते हुए देखा था। फाइनल के एक रात पहले पूरी टीम को डिनर के लिए न्योता दिया गया था। पूरी इंडियन टीम को जीतने पर सिर्फ 20000 पौंड मिले थे जिस से राज जी थोड़े उदास थे।
क्रिकेट बोर्ड उन दिनों अलग तरीके से चलता था। विश्व विजेता टीम के खिलाड़ियों को उपहार देने के लिए पैसे नहीं थे। ऐसे में राज जी ने, बोर्ड प्रेजिडेंट एनकेपी साल्वे के माध्यम से, दरख्वास्त की तो लता जी ने इन विश्व विजेता टीम के लिए एक कॉन्सर्ट करने के लिए हामी भर दी।
दिल्ली के इंद्रप्रस्थ स्टेडियम में हुए 4 घंटे तक चले इस कॉन्सर्ट से हृदयनाथ मंगेशकर ने एक खास गीत रचा था "भारत विश्व विजेता"। लता जी के साथ पूरी क्रिकेट टीम ने इस गाने को स्टेज पर गाया था।
इस कॉन्सर्ट से 20 लाख रुपये की कमाई हुई थी जो 14 सदस्यों की टीम को सम्मान स्वरूप प्रस्तुत की गई थी। ये था लता जी का क्रिकेट प्रेम। कई वर्षों बाद 2003 में बोर्ड के प्रेजिडेंट जगमोहन डालमिया ने एक प्रदर्शन मैच के ज़रिये मंगेशकर परिवार के पुणे स्थित हॉस्पिटल के लिए पैसा इकठ्ठा कर के इस कॉन्सर्ट का एहसान चुकाया।
आज लता जी का जन्मदिन है। सुर साम्राज्ञी, सरस्वती और जाने कितनी उपाधियों से नवाज़ी गई लता जी पर आज तक कई किताबें, आर्टिकल्स और डॉक्यूमेंटरीज बन चुकी हैं। मुझे बाद में लता जी से मिलने का सौभाग्य भी हुआ। फ़िल्म फेयर अवॉर्ड्स की 50 वीं वर्षगांठ के अवसर पर लता जी, यश चोपड़ा जी और अमिताभ बच्चन ने की फिल्म फेयर अवॉर्ड्स की नई ट्रॉफी का उद्घाटन किया था।
मेरी ज़िम्मेदारी थी कि ये तीनों शख्स सही समय पर कार्यक्रम में पहुंच जाएं और इसी के चलते मैं पेडर रोड स्थित "प्रभु कुञ्ज" निवास भी जा सका और लता जी से मुलाक़ात कर आशीर्वाद भी ले सका।
आज भी लता जी संगीत में सक्रिय हैं। रियाज़ करती हैं। और मज़े की बात - "ट्वीट" भी करती हैं। वो संभवतः दुनिया की इकलौती ऐसी आर्टिस्ट हैं जिनके ट्वीट पढ़ने पर महसूस किया जा सकता है कि वो ट्वीट खुद-बा-खुद बोल रहे हैं। उनके ट्वीट उन्हीं की आवाज़ में पढ़े जा सकते हैं।
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