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कोरोना से जंग की मुहिम में उत्तराखंड के जीबी पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान कटारमल अल्मोड़ा के वैज्ञानिकों ने दो ऐसे यौगिक खोजे हैं जो कोविड-19 के जनक सार्स-कोवी-2 के दुश्मन बन सकते हैं।
इस शोध की उच्च स्तरीय गुणवत्ता के कारण ही इसे लंदन की प्रतिष्ठित पत्रिका साइंस रिपोर्ट में प्रकाशित किया गया है। इस शोध में शामिल वैज्ञानिक और शोधार्थियों की टीम चाहती है कि कोई भारतीय फार्मास्यूटिकल कंपनी इसके आधार पर कोविड की दवा बनाए।
यह भी पढ़ें: Corona in Uttarakhand: गुरुवार को 355 नए संक्रमित मिले, 11 मरीजों की मौत
पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल के शोधार्थियों ने 1528 एचआईवी-1 यौगिकों के समूह को कंप्यूटर विधि से परखने के बाद 356 ऐसे यौगिकों को चुना गया, जिसमें कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने की संभावना नजर आई है। फिर 84 ऐसे यौगिकों को चुना गया जो विषाणु रोधक होने के साथ अवशोषण, वितरण, पाचन, उत्सर्जन प्रक्रिया को प्रभावित न करते हों।
बाद में औषधीय गुण रखने वाले 40 ऐसे यौगिकों को मॉलिकुलर डॉकिंग विधि से कोरोना वायरस के 3-सीएलसी प्रो. (3-काइमोट्रिपसिन लाइक प्रोटिएज) एंजाइम के विरुद्ध सक्रिय पाए गए। वैज्ञानिकों के अनुसार कोरोना वायरस में पाए जाने वाले 3-सीएलसी प्रो. (3-काइमोट्रिपसिन लाइक प्रोटिएज) नामक एंजाइम कोरोना वायरस में वृद्धि के लिए उत्तरदायी है।
कोरोना वायरस की वृद्धि को रोकने के लिए 3-सीएलसी प्रो. ( 3-काइमोट्रिपसिन लाइक प्रोटिएज) नामक एंजाइम को निष्क्रिय करना जरूरी है। टीम ने अंत में मॉलिकुलर डॉयनेमिक्स और सिमुलेशन विधि से दो ऐसे यौगिकों का चयन किया गया जो कोरोना वायरस के खिलाफ प्रभावी ढंग से सक्रिय पाए गए।
शोध को प्रकाशित करने वाली टीम के सदस्यों में डॉ. महेशानंद, डॉ. प्रियंका मैती, तुषार जोशी, डॉ. वीना पांडे, डॉ. सुभाष चंद्रा, डॉ. एमए रामाकृष्णन और डॉ. जेसी कुनियाल शामिल हैं। जीबी पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान के निदेशक डॉ. आरएस रावल, वरिष्ठ वैज्ञानिक किरीट कुमार ने टीम के सभी सदस्यों को बधाई दी।
इस शोध से वैज्ञानिक और शोधार्थी काफी उत्साहित हैं। वह चाहते हैं कि कोई भारतीय फार्मास्यूटिकल कंपनी इसके आधार पर कोविड की दवा बनाए। उन्होंने बताया कि अब कोविड के खिलाफ प्रभावी यौगिकों को पहचानने के बाद वनस्पति जगत में भी इसकी उपलब्धता को ज्ञात करने का प्रयास किया जाएगा।
इन यौगिकों की उपलब्धता वाली वनस्पतियों से भी इस बीमारी का उपचार संभव है। हालांकि इस शोध से निकले दो यौगिकों को पुन: क्लीनिकल ट्रायल और पेटेंट फाइल करने की संभावना है।
सार
- जीबी पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान के शोध को लंदन की प्रतिष्ठित पत्रिका साइंस रिपोर्ट में मिला स्थान
विस्तार
कोरोना से जंग की मुहिम में उत्तराखंड के जीबी पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान कटारमल अल्मोड़ा के वैज्ञानिकों ने दो ऐसे यौगिक खोजे हैं जो कोविड-19 के जनक सार्स-कोवी-2 के दुश्मन बन सकते हैं।
इस शोध की उच्च स्तरीय गुणवत्ता के कारण ही इसे लंदन की प्रतिष्ठित पत्रिका साइंस रिपोर्ट में प्रकाशित किया गया है। इस शोध में शामिल वैज्ञानिक और शोधार्थियों की टीम चाहती है कि कोई भारतीय फार्मास्यूटिकल कंपनी इसके आधार पर कोविड की दवा बनाए।
यह भी पढ़ें: Corona in Uttarakhand: गुरुवार को 355 नए संक्रमित मिले, 11 मरीजों की मौत
पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल के शोधार्थियों ने 1528 एचआईवी-1 यौगिकों के समूह को कंप्यूटर विधि से परखने के बाद 356 ऐसे यौगिकों को चुना गया, जिसमें कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने की संभावना नजर आई है। फिर 84 ऐसे यौगिकों को चुना गया जो विषाणु रोधक होने के साथ अवशोषण, वितरण, पाचन, उत्सर्जन प्रक्रिया को प्रभावित न करते हों।
बाद में औषधीय गुण रखने वाले 40 ऐसे यौगिकों को मॉलिकुलर डॉकिंग विधि से कोरोना वायरस के 3-सीएलसी प्रो. (3-काइमोट्रिपसिन लाइक प्रोटिएज) एंजाइम के विरुद्ध सक्रिय पाए गए। वैज्ञानिकों के अनुसार कोरोना वायरस में पाए जाने वाले 3-सीएलसी प्रो. (3-काइमोट्रिपसिन लाइक प्रोटिएज) नामक एंजाइम कोरोना वायरस में वृद्धि के लिए उत्तरदायी है।
वैज्ञानिक किरीट कुमार ने टीम के सभी सदस्यों को बधाई दी
कोरोना वायरस की वृद्धि को रोकने के लिए 3-सीएलसी प्रो. ( 3-काइमोट्रिपसिन लाइक प्रोटिएज) नामक एंजाइम को निष्क्रिय करना जरूरी है। टीम ने अंत में मॉलिकुलर डॉयनेमिक्स और सिमुलेशन विधि से दो ऐसे यौगिकों का चयन किया गया जो कोरोना वायरस के खिलाफ प्रभावी ढंग से सक्रिय पाए गए।
शोध को प्रकाशित करने वाली टीम के सदस्यों में डॉ. महेशानंद, डॉ. प्रियंका मैती, तुषार जोशी, डॉ. वीना पांडे, डॉ. सुभाष चंद्रा, डॉ. एमए रामाकृष्णन और डॉ. जेसी कुनियाल शामिल हैं। जीबी पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान के निदेशक डॉ. आरएस रावल, वरिष्ठ वैज्ञानिक किरीट कुमार ने टीम के सभी सदस्यों को बधाई दी।
अब वनस्पति जगत में भी इसकी उपलब्धता का पता लगाया जाएगा
इस शोध से वैज्ञानिक और शोधार्थी काफी उत्साहित हैं। वह चाहते हैं कि कोई भारतीय फार्मास्यूटिकल कंपनी इसके आधार पर कोविड की दवा बनाए। उन्होंने बताया कि अब कोविड के खिलाफ प्रभावी यौगिकों को पहचानने के बाद वनस्पति जगत में भी इसकी उपलब्धता को ज्ञात करने का प्रयास किया जाएगा।
इन यौगिकों की उपलब्धता वाली वनस्पतियों से भी इस बीमारी का उपचार संभव है। हालांकि इस शोध से निकले दो यौगिकों को पुन: क्लीनिकल ट्रायल और पेटेंट फाइल करने की संभावना है।