पढ़ें अमर उजाला ई-पेपर
कहीं भी, कभी भी।
*Yearly subscription for just ₹299 Limited Period Offer. HURRY UP!
कूड़े से बिजली बनाकर जो कंपनी सबसे सस्ती दरों में ऊर्जा निगम को उपलब्ध कराएगी, उसे ही वेस्ट टू एनर्जी प्लांट की जिम्मेदारी मिलेगी। हाल ही में जारी किए गए टेंडरों के लिए कंपनी का चयन नहीं हो पाने के बाद शहरी विकास विभाग अब संशोधित टेंडर जारी करने की तैयारी में जुटा है।
हाल ही में हुई टेक्निकल कमेटी की बैठक में नई शर्तों और संशोधन को अंतिम रूप दिया जा चुका है, लेकिन जिस तरह से कंपनियों ने पूर्व में तय शर्तों के तहत प्लांट लगाने में रुचि नहीं दिखाई, उससे उत्तराखंड में इस प्लांट की राह आसान नहीं दिख रही है।
रुड़की में नगर निगम की सालियर स्थित जमीन पर वेस्ट टू एनर्जी (कूड़े से बिजली) प्लांट को शासन से मंजूरी मिली है। इस प्लांट को लगाने की कवायद पिछले करीब चार साल से चल रही है, लेकिन करीब आठ माह पूर्व शासन ने सैद्धांतिक स्वीकृति देने के बाद इसके लिए ई-टेंडर जारी किए थे।
प्लांट को लगाने के लिए कई अहम शर्तें भी निर्धारित की गई हैं, जिसमें कंपनी को बेहतर से बेहतर तकनीकी का प्रयोग करना होगा ताकि कम खर्च में कूड़े का निस्तारण हो और बिजली भी बनाई जा सके।
दस अक्तूबर को ई-टेंडर खोला जाना था, लेकिन शर्तों के सापेक्ष एक भी कंपनी को यह टेंडर जारी नहीं हो सका। दरअसल, प्रतिस्पर्धा में आने वाली कंपनियों में से उसी को टेंडर मिलना है, जो कूड़ा निस्तारण से बनने वाली बिजली को सस्ती से सस्ती दरों पर ऊर्जा निगम को उपलब्ध कराएगा।
निवेश और खर्च को देखते हुए किसी भी कंपनी ने टेंडर में रुचि नहीं दिखाई। इससे शासन की परेशानी बढ़ गई है। लिहाजा प्लांट लगाने के लिए अब शासन ने शर्तों में संशोधन शुरू कर दिया गया है। बताया जा रहा है कि जल्द नए सिरे से टेंडर जारी होगा।
प्लांट लगाने के लिए कंपनियों की बेरुखी के चलते अब ऐसा लगने लगा है कि रुड़की में राज्य का अपनी तरह का प्लांट लगाने की राह आसान नहीं है। सहायक नगर आयुक्त चंद्रकांत भट्ट ने बताया कि ई-टेंडर के लिए उपयुक्त कंपनी नहीं मिलने के बाद शासन स्तर से दोबारा टेंडर जारी करने की योजना है।
बताया जा रहा है कि इस प्लांट को रोजाना कई हजार टन कूड़े की जरूरत होगी। इसके लिए रुड़की में लक्सर, झबरेड़ा, मंगलौर, पिरान कलियर, भगवानपुर समेत कई अन्य निकायों से कूड़ा प्लांट में लाया जाएगा, लेकिन प्लांट तक कूड़ा लाने में ट्रांसपोर्ट, जेसीबी और श्रमिकों का खर्च आदि मिलाकर भारीभरकम धनराशि खर्च होने का अनुमान है।
इसके चलते कंपनियों ने कदम पीछे खींच लिए हैं। जानकारों का भी कहना है कि 20-25 किमी दूर से कूड़ा लाना उचित नहीं है। क्योंकि, इसे लोड और अनलोड करने व गाड़ियों पर भी भारी भरकम खर्च होगा। इससे बिजली तो बनेगी, लेकिन व्यवहारिक दिक्कत और खर्च बढ़ेगा। ऐसे में माना जा रहा है कि नए टेंडर में कूड़ा एकत्र करने के दायरे को सीमित करने की योजना है।
पीपीपी मोड में लगना है प्लांट
वेस्ट टू एनर्जी प्रोजेक्ट पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड में लगाया जाना है। हाल ही में जारी ई-टेंडर में लागत 75 करोड़ रखी गई थी। इस धनराशि के अलावा कंपनी को मशीनें एवं अन्य संसाधनों को अलग से इंतजाम करना था। पीपीपी मोड के तहत लगने वाले प्लांट में कंपनी को अपनी जेब से पूरा पैसा लगाना होगा। प्लांट में लगने वाले खर्च की भरपाई कंपनी खुद बिजली बेचकर करेगी, लेकिन कंपनियों के सामने चुनौती यह है कि उन्हें बिजली की दरों को कम से कम रखना होगा।
सार
- संशोधन के साथ दोबारा टेंडर जारी करने की तैयारी में जुटा विभाग
- रुड़की के सालियर में लगाया जाना है कूड़े से बिजली बनाने का प्लांट
विस्तार
कूड़े से बिजली बनाकर जो कंपनी सबसे सस्ती दरों में ऊर्जा निगम को उपलब्ध कराएगी, उसे ही वेस्ट टू एनर्जी प्लांट की जिम्मेदारी मिलेगी। हाल ही में जारी किए गए टेंडरों के लिए कंपनी का चयन नहीं हो पाने के बाद शहरी विकास विभाग अब संशोधित टेंडर जारी करने की तैयारी में जुटा है।
हाल ही में हुई टेक्निकल कमेटी की बैठक में नई शर्तों और संशोधन को अंतिम रूप दिया जा चुका है, लेकिन जिस तरह से कंपनियों ने पूर्व में तय शर्तों के तहत प्लांट लगाने में रुचि नहीं दिखाई, उससे उत्तराखंड में इस प्लांट की राह आसान नहीं दिख रही है।
रुड़की में नगर निगम की सालियर स्थित जमीन पर वेस्ट टू एनर्जी (कूड़े से बिजली) प्लांट को शासन से मंजूरी मिली है। इस प्लांट को लगाने की कवायद पिछले करीब चार साल से चल रही है, लेकिन करीब आठ माह पूर्व शासन ने सैद्धांतिक स्वीकृति देने के बाद इसके लिए ई-टेंडर जारी किए थे।
कई अहम शर्तें भी निर्धारित
प्लांट को लगाने के लिए कई अहम शर्तें भी निर्धारित की गई हैं, जिसमें कंपनी को बेहतर से बेहतर तकनीकी का प्रयोग करना होगा ताकि कम खर्च में कूड़े का निस्तारण हो और बिजली भी बनाई जा सके।
दस अक्तूबर को ई-टेंडर खोला जाना था, लेकिन शर्तों के सापेक्ष एक भी कंपनी को यह टेंडर जारी नहीं हो सका। दरअसल, प्रतिस्पर्धा में आने वाली कंपनियों में से उसी को टेंडर मिलना है, जो कूड़ा निस्तारण से बनने वाली बिजली को सस्ती से सस्ती दरों पर ऊर्जा निगम को उपलब्ध कराएगा।
निवेश और खर्च को देखते हुए किसी भी कंपनी ने टेंडर में रुचि नहीं दिखाई। इससे शासन की परेशानी बढ़ गई है। लिहाजा प्लांट लगाने के लिए अब शासन ने शर्तों में संशोधन शुरू कर दिया गया है। बताया जा रहा है कि जल्द नए सिरे से टेंडर जारी होगा।
प्लांट लगाने के लिए कंपनियों की बेरुखी के चलते अब ऐसा लगने लगा है कि रुड़की में राज्य का अपनी तरह का प्लांट लगाने की राह आसान नहीं है। सहायक नगर आयुक्त चंद्रकांत भट्ट ने बताया कि ई-टेंडर के लिए उपयुक्त कंपनी नहीं मिलने के बाद शासन स्तर से दोबारा टेंडर जारी करने की योजना है।
कूड़ा उठान में ज्यादा खर्च आने के चलते पीछे हटीं कंपनियां
बताया जा रहा है कि इस प्लांट को रोजाना कई हजार टन कूड़े की जरूरत होगी। इसके लिए रुड़की में लक्सर, झबरेड़ा, मंगलौर, पिरान कलियर, भगवानपुर समेत कई अन्य निकायों से कूड़ा प्लांट में लाया जाएगा, लेकिन प्लांट तक कूड़ा लाने में ट्रांसपोर्ट, जेसीबी और श्रमिकों का खर्च आदि मिलाकर भारीभरकम धनराशि खर्च होने का अनुमान है।
इसके चलते कंपनियों ने कदम पीछे खींच लिए हैं। जानकारों का भी कहना है कि 20-25 किमी दूर से कूड़ा लाना उचित नहीं है। क्योंकि, इसे लोड और अनलोड करने व गाड़ियों पर भी भारी भरकम खर्च होगा। इससे बिजली तो बनेगी, लेकिन व्यवहारिक दिक्कत और खर्च बढ़ेगा। ऐसे में माना जा रहा है कि नए टेंडर में कूड़ा एकत्र करने के दायरे को सीमित करने की योजना है।
पीपीपी मोड में लगना है प्लांट
वेस्ट टू एनर्जी प्रोजेक्ट पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मोड में लगाया जाना है। हाल ही में जारी ई-टेंडर में लागत 75 करोड़ रखी गई थी। इस धनराशि के अलावा कंपनी को मशीनें एवं अन्य संसाधनों को अलग से इंतजाम करना था। पीपीपी मोड के तहत लगने वाले प्लांट में कंपनी को अपनी जेब से पूरा पैसा लगाना होगा। प्लांट में लगने वाले खर्च की भरपाई कंपनी खुद बिजली बेचकर करेगी, लेकिन कंपनियों के सामने चुनौती यह है कि उन्हें बिजली की दरों को कम से कम रखना होगा।