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अक्सर लिवर दान करने के बाद डॉक्टरों के पास उसके प्रत्यारोपण करने का वक्त बहुत कम रहता है। यही वजह है कि जब भी किसी अस्पताल में प्रत्यारोपण होता है तो दिल्ली पुलिस ग्रीन कॉरिडोर बनाती है। लेकिन अब प्रत्यारोपण से पहले लिवर को 24 घंटे तक न सिर्फ सुरक्षित रखा जा सकेगा, बल्कि मशीन के जरिए लिवर की उपयोगिता का पता भी चल सकेगा। देश में पहली बार इस नई तकनीक की शुरुआत हो चुकी है।
गुरुवार को राजधानी के एक होटल में आयोजित प्रेस कान्फ्रेंस में मेदांता अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर एएस सोइन ने तकनीकी को लेकर बताया कि प्रत्यारोपण से पहले लिवर को रक्त चढ़ाकर यह देखा जा सकता है कि वह मरीज के लिए फिट है या नहीं।
लिवर की क्षमता को बढ़ाने की इस तकनीक का नाम नोर्मोथर्मिक मशीन परफ्यूजन है। डॉ. सोइन ने बताया कि इस मशीन की खासियत है कि एक बार लिवर दान में लेने के बाद उसकी कमियों को दूर करने के लिए यह मशीन सहायक भूमिका निभाती है।
डॉक्टरों की मानें तो आमतौर पर छोटी छोटी जगहों से दिल्ली जैसे मेट्रो शहरों तक दान में मिले अंग को लेकर आना कई बार संभव नहीं हो सकता। जिसके चलते काफी दिक्कतें आती हैं। लेकिन इस तकनीक ने परेशानी को दूर कर दिया है। साथ ही अंगदान को बढ़ावा देने में यह मदद भी करेगी।
डॉ. सोइन ने बताया कि अतिरिक्त संरक्षण समय मिलने से प्रत्यारोपण टीम को किसी भी जटिलताओं से निपटने के लिए अधिक समय मिलता है, इससे उन रोगियों में भी लिवर प्रत्यारोपित किया जा सकता है जिनमें लिवर प्रत्यारोपण करना संभव नहीं होता है।
उन्होंने बताया कि तकनीक यूरोप, अमेरिका और कनाडा में 300 से अधिक प्रत्यारोपण करवा चुकीहै। भारत में इसका पहली बार इस्तेमाल पिछले महीने बेंगलुरु के एस्टर सीएमआई अस्पताल में 56 वर्षीय मरीज में किया गया था। रोगी की बहुत जल्द रिकवरी हुई और उसे कुछ ही हफ्तों में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
अक्सर लिवर दान करने के बाद डॉक्टरों के पास उसके प्रत्यारोपण करने का वक्त बहुत कम रहता है। यही वजह है कि जब भी किसी अस्पताल में प्रत्यारोपण होता है तो दिल्ली पुलिस ग्रीन कॉरिडोर बनाती है। लेकिन अब प्रत्यारोपण से पहले लिवर को 24 घंटे तक न सिर्फ सुरक्षित रखा जा सकेगा, बल्कि मशीन के जरिए लिवर की उपयोगिता का पता भी चल सकेगा। देश में पहली बार इस नई तकनीक की शुरुआत हो चुकी है।
गुरुवार को राजधानी के एक होटल में आयोजित प्रेस कान्फ्रेंस में मेदांता अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर एएस सोइन ने तकनीकी को लेकर बताया कि प्रत्यारोपण से पहले लिवर को रक्त चढ़ाकर यह देखा जा सकता है कि वह मरीज के लिए फिट है या नहीं।
लिवर की क्षमता को बढ़ाने की इस तकनीक का नाम नोर्मोथर्मिक मशीन परफ्यूजन है। डॉ. सोइन ने बताया कि इस मशीन की खासियत है कि एक बार लिवर दान में लेने के बाद उसकी कमियों को दूर करने के लिए यह मशीन सहायक भूमिका निभाती है।
पिछले महीने देश में पहली बार हुआ तकनीक का इस्तेमाल
liver transplant
डॉक्टरों की मानें तो आमतौर पर छोटी छोटी जगहों से दिल्ली जैसे मेट्रो शहरों तक दान में मिले अंग को लेकर आना कई बार संभव नहीं हो सकता। जिसके चलते काफी दिक्कतें आती हैं। लेकिन इस तकनीक ने परेशानी को दूर कर दिया है। साथ ही अंगदान को बढ़ावा देने में यह मदद भी करेगी।
डॉ. सोइन ने बताया कि अतिरिक्त संरक्षण समय मिलने से प्रत्यारोपण टीम को किसी भी जटिलताओं से निपटने के लिए अधिक समय मिलता है, इससे उन रोगियों में भी लिवर प्रत्यारोपित किया जा सकता है जिनमें लिवर प्रत्यारोपण करना संभव नहीं होता है।
उन्होंने बताया कि तकनीक यूरोप, अमेरिका और कनाडा में 300 से अधिक प्रत्यारोपण करवा चुकीहै। भारत में इसका पहली बार इस्तेमाल पिछले महीने बेंगलुरु के एस्टर सीएमआई अस्पताल में 56 वर्षीय मरीज में किया गया था। रोगी की बहुत जल्द रिकवरी हुई और उसे कुछ ही हफ्तों में अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।