पढ़ें अमर उजाला ई-पेपर
कहीं भी, कभी भी।
*Yearly subscription for just ₹299 Limited Period Offer. HURRY UP!
अपनी
मधुर गायकी से श्रोताओं को आज भी मंत्रमुग्ध कर रहीं स्वर साम्राज्ञी
लता मंगेशकर को एक समय धीमा जहर देकर जान से मारने की कोशिश की गई थी। लता के निकट संपर्क में रहीं प्रसिद्ध डोगरी कवयित्री और हिंदी की प्रसिद्ध साहित्यकार पद्मा सचदेव की हाल ही में प्रकाशित संस्मरण पुस्तक ‘ऐसा कहां से लाऊं’ में इस घटना का जिक्र किया गया है।
इस पुस्तक में लता ने बताया है कि यह घटना 1962 में हुई थी, जब वह 33 वर्ष की थीं। एक दिन जागने पर उन्हें पेट में बहुत अजीब-सा महसूस हुआ। इसके बाद उन्हें पतले पानी जैसी दो-तीन उल्टियां हुईं, जिनका रंग कुछ-कुछ हरा था। वह हिल भी नहीं पा रही थीं और दर्द से बेहाल थीं। तब डॉक्टर को बुलाया गया, जो अपने साथ एक्स-रे मशीन भी लाया।
दर्द बर्दाश्त से बाहर होने पर डॉक्टर ने उन्हें बेहोशी के इंजेक्शन लगाए। लता तीन दिन तक जीवन और मौत के बीच वह संघर्ष करती रहीं। दस दिन तक उनकी हालत खराब रहने के बाद फिर धीरे-धीरे सुधरी। डॉक्टर ने बताया कि उन्हें धीमा जहर दिया जा रहा था।
लता के अनुसार, वह काफी कमजोर हो गई थीं और तीन महीने तक बिस्तर पर रहीं। वह कुछ खा नहीं पाती थीं। सिर्फ ठंडा सूप उन्हें दिया जाता था, जिसमें बर्फ के टुकडे़ रहते थे। पेट साफ नहीं होता था और उसमें हमेशा जलन होती रहती थी। इस घटना के बाद उनके घर में खाना पकाने वाला रसोइया किसी को कुछ बताए और पगार लिए बिना भाग गया। बाद में लता को पता चला कि उस रसोइये ने फिल्म इंडस्ट्री में भी काम किया था। इस घटना के बाद घर में रसोई का काम लता की छोटी बहन उषा मंगेशकर ने संभाल लिया और वही खाना बनाने लगीं।
हिंदी सिनेमा पर कई पुस्तकें लिख चुकीं लंदन निवासी लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर के साथ साक्षात्कार में भी लता ने इस घटना का उल्लेख किया है। उनके साक्षात्कार पर आधारित यह पुस्तक 2009 में प्रकाशित हुई थी।
नहीं भूल सकती मजरूह का स्नेह
लता बताती हैं कि वह गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी के स्नेह को नहीं भूल सकतीं, जो बीमारी के दौरान पूरे तीन महीने तक हर रोज शाम छह बजे आकर उनके पास बैठते थे और जो कुछ वह खाती थीं, वही खाते थे। वह कविताएं और कहानियां सुनाया करते थे। उन्होंने बताया कि पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद उन्होंने सबसे पहले जो गीत रिकॉर्ड कराया वह था- कहीं दीप जले कहीं दिल। जिसका संगीत हेमंत कुमार ने दिया था।
पुस्तक में उषा मंगेशकर ने बताया है कि जब दीदी को जहर दिया तब गीतकार शैलेंद्र का निधन हो चुका था। एक बार वह मेरे ख्वाब में आए और कहने लगे, उषा मुझे माफ करो। ये मैंने नहीं किया। मैंने अपनी आंखों से ‘अमुक’ को दीदी को जहर देते देखा है। मौत के बाद उनका इस तरह ख्वाब में आना अजीब था।
आज लता का जन्मदिन
लगभग छह दशक में अपनी जादुई आवाज में पचास हजार से ज्यादा गीत गाकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में नाम दर्ज करा चुकीं लता मंगेशकर का शुक्रवार को 83वां जन्मदिन है। लता का जन्म 28 सिंतबर, 1929 को इंदौर (मध्यप्रदेश) के एक मध्यम वर्गीय मराठी परिवार में हुआ था।
अपनी
मधुर गायकी से श्रोताओं को आज भी मंत्रमुग्ध कर रहीं स्वर साम्राज्ञी
लता मंगेशकर को एक समय धीमा जहर देकर जान से मारने की कोशिश की गई थी। लता के निकट संपर्क में रहीं प्रसिद्ध डोगरी कवयित्री और हिंदी की प्रसिद्ध साहित्यकार पद्मा सचदेव की हाल ही में प्रकाशित संस्मरण पुस्तक ‘ऐसा कहां से लाऊं’ में इस घटना का जिक्र किया गया है।
इस पुस्तक में लता ने बताया है कि यह घटना 1962 में हुई थी, जब वह 33 वर्ष की थीं। एक दिन जागने पर उन्हें पेट में बहुत अजीब-सा महसूस हुआ। इसके बाद उन्हें पतले पानी जैसी दो-तीन उल्टियां हुईं, जिनका रंग कुछ-कुछ हरा था। वह हिल भी नहीं पा रही थीं और दर्द से बेहाल थीं। तब डॉक्टर को बुलाया गया, जो अपने साथ एक्स-रे मशीन भी लाया।
दर्द बर्दाश्त से बाहर होने पर डॉक्टर ने उन्हें बेहोशी के इंजेक्शन लगाए। लता तीन दिन तक जीवन और मौत के बीच वह संघर्ष करती रहीं। दस दिन तक उनकी हालत खराब रहने के बाद फिर धीरे-धीरे सुधरी। डॉक्टर ने बताया कि उन्हें धीमा जहर दिया जा रहा था।
लता की बहम लता के लिए बनाती थी खाना
लता के अनुसार, वह काफी कमजोर हो गई थीं और तीन महीने तक बिस्तर पर रहीं। वह कुछ खा नहीं पाती थीं। सिर्फ ठंडा सूप उन्हें दिया जाता था, जिसमें बर्फ के टुकडे़ रहते थे। पेट साफ नहीं होता था और उसमें हमेशा जलन होती रहती थी। इस घटना के बाद उनके घर में खाना पकाने वाला रसोइया किसी को कुछ बताए और पगार लिए बिना भाग गया। बाद में लता को पता चला कि उस रसोइये ने फिल्म इंडस्ट्री में भी काम किया था। इस घटना के बाद घर में रसोई का काम लता की छोटी बहन उषा मंगेशकर ने संभाल लिया और वही खाना बनाने लगीं।
हिंदी सिनेमा पर कई पुस्तकें लिख चुकीं लंदन निवासी लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर के साथ साक्षात्कार में भी लता ने इस घटना का उल्लेख किया है। उनके साक्षात्कार पर आधारित यह पुस्तक 2009 में प्रकाशित हुई थी।
नहीं भूल सकती मजरूह का स्नेह
लता बताती हैं कि वह गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी के स्नेह को नहीं भूल सकतीं, जो बीमारी के दौरान पूरे तीन महीने तक हर रोज शाम छह बजे आकर उनके पास बैठते थे और जो कुछ वह खाती थीं, वही खाते थे। वह कविताएं और कहानियां सुनाया करते थे। उन्होंने बताया कि पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद उन्होंने सबसे पहले जो गीत रिकॉर्ड कराया वह था- कहीं दीप जले कहीं दिल। जिसका संगीत हेमंत कुमार ने दिया था।
वह ‘जहरीला’ सपना
d
पुस्तक में उषा मंगेशकर ने बताया है कि जब दीदी को जहर दिया तब गीतकार शैलेंद्र का निधन हो चुका था। एक बार वह मेरे ख्वाब में आए और कहने लगे, उषा मुझे माफ करो। ये मैंने नहीं किया। मैंने अपनी आंखों से ‘अमुक’ को दीदी को जहर देते देखा है। मौत के बाद उनका इस तरह ख्वाब में आना अजीब था।
आज लता का जन्मदिन
लगभग छह दशक में अपनी जादुई आवाज में पचास हजार से ज्यादा गीत गाकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में नाम दर्ज करा चुकीं लता मंगेशकर का शुक्रवार को 83वां जन्मदिन है। लता का जन्म 28 सिंतबर, 1929 को इंदौर (मध्यप्रदेश) के एक मध्यम वर्गीय मराठी परिवार में हुआ था।