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Movie Review: जय मम्मी दी
कलाकार: पूनम ढिल्लों, सुप्रिया पाठक, सोनाली सहगल, सनी सिंह, दानिश हुसैन, आलोक नाथ आदि।
निर्देशक: नवजोत गुलाटी
निर्माता: भूषण कुमार, लव रंजन, अंकुर गर्ग आदि।
निर्माता निर्देशक लव रंजन का सिनेमा मुंबइया फिल्मों की एक ही अलग लीक बनाता रहा है। प्यार का पंचनामा एक और दो के अलावा सोनू के टीटू की स्वीटी जैसी फिल्मों की कामयाबी से उन्होंने तमाम फिल्म पंडितों को चौंकाया भी। लव रंजन ने इस बार थोड़ा और लीक से छिटकने की कोशिश की है फिल्म जय मम्मी दी में। लेकिन, फिल्म के नाम से लेकर फिल्म की कहानी और किरदारों को गढ़ने तक में वह इस बार चूके हैं। रंजन की पिछली फिल्म दे दे प्यार दे जैसी हिट फिल्म की कामयाबी दोहराना इस फिल्म के बूते की बात नहीं दिखती। हां, ये फिल्म इसके युवा कलाकारों के लिए कुछ तालियां जरूर बटोर लाती है।
दिल्ली की एक कॉलोनी में रहने वाली पिंकी भल्ला और लाली खन्ना की दुश्मनी भारत पाकिस्तान जैसी है। साथ रहा भी न जाए और दूर जाया भी न जाए। कहानी का दूसरा सिरा दोनों के बच्चे हैं, सांझ भल्ला और पुनीत खन्ना। साथ पढ़ते-पढ़ते दोनों प्यार में पड़ जाते हैं और दिक्कत अब ये है कि घर में बता भी नहीं कर सकते। दोनों अपनी अपनी मम्मियों का अतीत खोजने की कोशिश करते हैं, इसमें तमाम हिचकोले हैं और कुछ जबर्दस्ती की कॉमेडी के टांय टांय फिस होते गोले हैं। कहानी के पहले सिरे से निकलती समलैंगिक रिश्तों की सी कहानी असरदार हो सकती थी, अगर फिल्म की पटकथा चुस्त होती और किस्सा थोड़ा पहले से और कायदे से गढ़ा जाता।
जय मम्मी दी में मसाले सारे हैं। बस रेसिपी गड़बड़ है। ये ऐसी डिश है जिसके एक घंटा 43 मिनट तक कुकर में चढ़े रहने के बाद भी सीटी नहीं बजती। इसकी वजह है इसका प्रेशर ठीक से न बनना। दो सहेलियों की दुश्मनी पर गढ़ी गई कहानी के दोनों सिरे इतने ढीले हैं कि कहीं बीच में आकर फंदा ही नहीं बना पाते। और दोनों की दुश्मनी की जो वजह आखिर में आकर खुलती है, वह न तो दर्शकों को चौंका पाती है और न ही फिल्म में अब तक बेकार हो चुके समय की भरपाई ही करती है। निर्देशक नवजोत गुलाटी इसके पहले तापसी पन्नू की फिल्म रनिंग शादी लिख चुके हैं। लव रंजन ने उन्हें निर्देशन का मौका भी दे दिया, लेकिन वह पहली ही गेंद पर लड़खड़ाते नजर आ रहे हैं।
पूनम ढिल्लों और सुप्रिया पाठक दोनों अपने अपने किरदारों में फिट नहीं होतीं। दोनों का दर्शक वर्ग नमक में मिले आयोडीन जितना बचा है। फिल्म बधाई हो में बनी गजराव राव और नीना गुप्ता की जोड़ी जैसी कुछ स्टीरियोटाइप से अलग करने की कोशिश यहां होती तो शायद बात बन जाती। फिल्म ने सनी सिंह और सोनाली सहगल को अच्छा मौका दिया है फिल्म इंडस्ट्री के सामने अपनी काबिलियत दिखाने का।
सनी सिंह के लिए ये फिल्म साल की दूसरी ऐसी फिल्म है जिसके चयन में उनसे गलती हुई है। सोलो हीरो बनने के लिए जिस धैर्य की जरूरत है वह सनी सिंह दिखा नहीं पा रहे हैं। पहले उजड़ा चमन और अब जय मम्मी दी। अपनी सोलो हीरो वाली पारी के दो ओवर वह मेडेन निकाल चुके हैं। एवरेज सुधारने के लिए अगली फिल्म उन्हें ध्यान से खेलनी होगी। इसके लिए उन्हें अपने उच्चारण पर भी काफी काम करने की जरूरत है।
सोनाली सहगल हिंदी सिनेमा में लगातार कोशिश कर रही हैं कि किसी तरह वह पहली कतार की हीरोइनों में शुमार हो जाएं। काम भी वह पिछले साल सेटर्स और इस साल जय मम्मी दी में अच्छा ही करती दिख रही हैं। बस उनके साथ लोचा यही है कि वह सिचुएशन के हिसाब से चेहरे पर भाव ढंग से लाने में चूक जाती हैं। उनकी मौजूदगी ताजगी तो लाती है, पर कहीं न कहीं रवानी लाने में वह चूक जाती हैं।
सुप्रिया पाठक और पूनम ढिल्लों को इस तरह के किरदारों में देखकर कोफ्त होती है। दोनों बेहतरीन अदाकाराएं रही हैं और जय मम्मी जैसी फिल्में सिवाय पैसे के और कुछ उनके खाते में जोड़ती नहीं दिखती। आलोक नाथ फिल्म में क्यों है, निर्माता लव रंजन ही बता सकते हैं, दर्शकों को तो कुछ खास उनके होने न होने का फर्क समझ नहीं आता। अमर उजाला मूवी रिव्यू में फिल्म जय मम्मी दी को मिलते हैं दो स्टार।
Movie Review: जय मम्मी दी
कलाकार: पूनम ढिल्लों, सुप्रिया पाठक, सोनाली सहगल, सनी सिंह, दानिश हुसैन, आलोक नाथ आदि।
निर्देशक: नवजोत गुलाटी
निर्माता: भूषण कुमार, लव रंजन, अंकुर गर्ग आदि।
निर्माता निर्देशक लव रंजन का सिनेमा मुंबइया फिल्मों की एक ही अलग लीक बनाता रहा है। प्यार का पंचनामा एक और दो के अलावा सोनू के टीटू की स्वीटी जैसी फिल्मों की कामयाबी से उन्होंने तमाम फिल्म पंडितों को चौंकाया भी। लव रंजन ने इस बार थोड़ा और लीक से छिटकने की कोशिश की है फिल्म जय मम्मी दी में। लेकिन, फिल्म के नाम से लेकर फिल्म की कहानी और किरदारों को गढ़ने तक में वह इस बार चूके हैं। रंजन की पिछली फिल्म दे दे प्यार दे जैसी हिट फिल्म की कामयाबी दोहराना इस फिल्म के बूते की बात नहीं दिखती। हां, ये फिल्म इसके युवा कलाकारों के लिए कुछ तालियां जरूर बटोर लाती है।
दिल्ली की एक कॉलोनी में रहने वाली पिंकी भल्ला और लाली खन्ना की दुश्मनी भारत पाकिस्तान जैसी है। साथ रहा भी न जाए और दूर जाया भी न जाए। कहानी का दूसरा सिरा दोनों के बच्चे हैं, सांझ भल्ला और पुनीत खन्ना। साथ पढ़ते-पढ़ते दोनों प्यार में पड़ जाते हैं और दिक्कत अब ये है कि घर में बता भी नहीं कर सकते। दोनों अपनी अपनी मम्मियों का अतीत खोजने की कोशिश करते हैं, इसमें तमाम हिचकोले हैं और कुछ जबर्दस्ती की कॉमेडी के टांय टांय फिस होते गोले हैं। कहानी के पहले सिरे से निकलती समलैंगिक रिश्तों की सी कहानी असरदार हो सकती थी, अगर फिल्म की पटकथा चुस्त होती और किस्सा थोड़ा पहले से और कायदे से गढ़ा जाता।
जय मम्मी दी में मसाले सारे हैं। बस रेसिपी गड़बड़ है। ये ऐसी डिश है जिसके एक घंटा 43 मिनट तक कुकर में चढ़े रहने के बाद भी सीटी नहीं बजती। इसकी वजह है इसका प्रेशर ठीक से न बनना। दो सहेलियों की दुश्मनी पर गढ़ी गई कहानी के दोनों सिरे इतने ढीले हैं कि कहीं बीच में आकर फंदा ही नहीं बना पाते। और दोनों की दुश्मनी की जो वजह आखिर में आकर खुलती है, वह न तो दर्शकों को चौंका पाती है और न ही फिल्म में अब तक बेकार हो चुके समय की भरपाई ही करती है। निर्देशक नवजोत गुलाटी इसके पहले तापसी पन्नू की फिल्म रनिंग शादी लिख चुके हैं। लव रंजन ने उन्हें निर्देशन का मौका भी दे दिया, लेकिन वह पहली ही गेंद पर लड़खड़ाते नजर आ रहे हैं।
जय मम्मी दी
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
पूनम ढिल्लों और सुप्रिया पाठक दोनों अपने अपने किरदारों में फिट नहीं होतीं। दोनों का दर्शक वर्ग नमक में मिले आयोडीन जितना बचा है। फिल्म बधाई हो में बनी गजराव राव और नीना गुप्ता की जोड़ी जैसी कुछ स्टीरियोटाइप से अलग करने की कोशिश यहां होती तो शायद बात बन जाती। फिल्म ने सनी सिंह और सोनाली सहगल को अच्छा मौका दिया है फिल्म इंडस्ट्री के सामने अपनी काबिलियत दिखाने का।
सनी सिंह के लिए ये फिल्म साल की दूसरी ऐसी फिल्म है जिसके चयन में उनसे गलती हुई है। सोलो हीरो बनने के लिए जिस धैर्य की जरूरत है वह सनी सिंह दिखा नहीं पा रहे हैं। पहले उजड़ा चमन और अब जय मम्मी दी। अपनी सोलो हीरो वाली पारी के दो ओवर वह मेडेन निकाल चुके हैं। एवरेज सुधारने के लिए अगली फिल्म उन्हें ध्यान से खेलनी होगी। इसके लिए उन्हें अपने उच्चारण पर भी काफी काम करने की जरूरत है।
सोनाली सहगल हिंदी सिनेमा में लगातार कोशिश कर रही हैं कि किसी तरह वह पहली कतार की हीरोइनों में शुमार हो जाएं। काम भी वह पिछले साल सेटर्स और इस साल जय मम्मी दी में अच्छा ही करती दिख रही हैं। बस उनके साथ लोचा यही है कि वह सिचुएशन के हिसाब से चेहरे पर भाव ढंग से लाने में चूक जाती हैं। उनकी मौजूदगी ताजगी तो लाती है, पर कहीं न कहीं रवानी लाने में वह चूक जाती हैं।
सुप्रिया पाठक और पूनम ढिल्लों को इस तरह के किरदारों में देखकर कोफ्त होती है। दोनों बेहतरीन अदाकाराएं रही हैं और जय मम्मी जैसी फिल्में सिवाय पैसे के और कुछ उनके खाते में जोड़ती नहीं दिखती। आलोक नाथ फिल्म में क्यों है, निर्माता लव रंजन ही बता सकते हैं, दर्शकों को तो कुछ खास उनके होने न होने का फर्क समझ नहीं आता। अमर उजाला मूवी रिव्यू में फिल्म जय मम्मी दी को मिलते हैं दो स्टार।