कुल्लू जिला में नवरात्रों के शुरू होते ही बिरशू मेलो का दौर शुरू हो गया है। शमशी माता ज्वाला अपने मदिंर परिसर में महिलाओ के साथ लालड़ी नृत्य करते हुए।
- फोटो : अमर उजाला
देवभूमि कुल्लू में देव परंपराएं हिमाचल के अन्य जिलों की देव परंपराओं से बिल्कुल अलग है। अन्य जिलों में देवताओं के दर्शन मंदिरों के भीतर ही होते हैं लेकिन जिला कुल्लू एक ऐसा शक्ति पीठ है जहां पर देवी-देवता श्रद्धालुओं को दर्शन देने के लिए मंदिर से बाहर निकलते हैं और इंसानों के साथ नृत्य करते हैं। ऐसी आकर्षक देव रिवायत शमशी स्थित ज्वाला माता मंदिर देखने को मिल रही है। शुक्रवार सुबह ज्वाला माता मंदिर में पूजा अर्चना हुई।
इसके बाद माता के कुल पुरोहित द्वारा नव वर्ष की पत्री पढ़ी। चौथ पौहर बेला पर माता के मंदिर सैकड़ों महिलाएं पहुंची। महिलाएं कुल्लवी शान पट्टू पहनकर आईं। वहीं माता का देवरथ भी पट्टू (पांबड़) से सुसज्जित था। इसके बाद माता ढोल, नगाड़ों, नरसिंगों की मधुर धुनों के साथ मंदिर के बाहर पट्टू से सुसज्जित होकर पट्टू पहनकर आईं महिलाओं के बीच विराजमान हुईं तो परंपरा आकर्षक और अनोखी दिखी। करीब 300 से अधिक महिलाओं ने लगभग चार घंटे माता ज्वाला संग लालड़ी खेली। महिलाओं ने इस लालड़ी नृत्य में माता को प्रसन्न करने के लिए पारंपरिक देव गीत गाए।
लालड़ी नृत्य के दौरान कारकूनों ने महिलाओं को चुनरियां दी गई। तीन दिनों तक माता महिलाओं के साथ लालड़ी नृत्य में भाग लेंगी। माता के दर्शन के लिए पहले दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। मंदिर कमेटी प्रधान जोगू राम ठाकुर का कहना है कि मेले में माता ज्वाला संग महिलाएं एक साथ लालड़ी नृत्य करती हैं। माता के कारदार दया राम और माता के प्रमुख कारकून राजू ने बताया कि यह परंपरा पौराणिक काल से चल रही है। जिसे आज भी बखूबी से निभाया जा रहा है। सचिव ओम प्रकाश ने बताया कि शमशी बिरशु में देव कार्यक्रम के साथ-साथ इस मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
देवभूमि कुल्लू में देव परंपराएं हिमाचल के अन्य जिलों की देव परंपराओं से बिल्कुल अलग है। अन्य जिलों में देवताओं के दर्शन मंदिरों के भीतर ही होते हैं लेकिन जिला कुल्लू एक ऐसा शक्ति पीठ है जहां पर देवी-देवता श्रद्धालुओं को दर्शन देने के लिए मंदिर से बाहर निकलते हैं और इंसानों के साथ नृत्य करते हैं। ऐसी आकर्षक देव रिवायत शमशी स्थित ज्वाला माता मंदिर देखने को मिल रही है। शुक्रवार सुबह ज्वाला माता मंदिर में पूजा अर्चना हुई।
इसके बाद माता के कुल पुरोहित द्वारा नव वर्ष की पत्री पढ़ी। चौथ पौहर बेला पर माता के मंदिर सैकड़ों महिलाएं पहुंची। महिलाएं कुल्लवी शान पट्टू पहनकर आईं। वहीं माता का देवरथ भी पट्टू (पांबड़) से सुसज्जित था। इसके बाद माता ढोल, नगाड़ों, नरसिंगों की मधुर धुनों के साथ मंदिर के बाहर पट्टू से सुसज्जित होकर पट्टू पहनकर आईं महिलाओं के बीच विराजमान हुईं तो परंपरा आकर्षक और अनोखी दिखी। करीब 300 से अधिक महिलाओं ने लगभग चार घंटे माता ज्वाला संग लालड़ी खेली। महिलाओं ने इस लालड़ी नृत्य में माता को प्रसन्न करने के लिए पारंपरिक देव गीत गाए।
लालड़ी नृत्य के दौरान कारकूनों ने महिलाओं को चुनरियां दी गई। तीन दिनों तक माता महिलाओं के साथ लालड़ी नृत्य में भाग लेंगी। माता के दर्शन के लिए पहले दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। मंदिर कमेटी प्रधान जोगू राम ठाकुर का कहना है कि मेले में माता ज्वाला संग महिलाएं एक साथ लालड़ी नृत्य करती हैं। माता के कारदार दया राम और माता के प्रमुख कारकून राजू ने बताया कि यह परंपरा पौराणिक काल से चल रही है। जिसे आज भी बखूबी से निभाया जा रहा है। सचिव ओम प्रकाश ने बताया कि शमशी बिरशु में देव कार्यक्रम के साथ-साथ इस मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए जा रहे हैं।