किसान आंदोलन का ‘सुर’ बदल रहा है। एक और नए ‘राग’ की तैयारी शुरू हो गई है। सिंघु बॉर्डर पर 23-24 जनवरी को '‘किसान संसद’ की तैयारी है। सड़क पर आयोजित होने वाली इस ‘संसद’ में विपक्षी दलों के नेताओं के अलावा कई सामाजिक संगठनों से जुड़ी नामचीन हस्तियों के जमावड़े की तैयारी है।
बता दें कि संयुक्त किसान मोर्चा ने अब तक अपनी इस लड़ाई से विपक्षी राजनीतिक दलों व नेताओं से गुरेज कर रखा है, लेकिन यह महज संयोग है या प्रयोग कि उसी संयुक्त किसान मोर्चा की रविवार को हुई रणनीतिक बैठक से भाकियू नेता गुरनाम सिंह चढूनी गायब रहे। वह कांस्टीट्यूशन क्लब में ‘किसान संसद’ के नए राग के लिए साज तैयार कर रहे थे। चढ़ूनी ही इस किसान, मजदूर, बेरोजगार, कर्जदार समर्थक जनप्रतिनिधि संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष हैं।
किसान संसद बनाम आजाद हिंद किसान फौज
आंदोलन की पूर्व घोषित रणनीति के तहत 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद बोस की जयंती पर उनकी याद में संयुक्त किसान मोर्चा ने देश में आजाद हिंद किसान फौज बनाने का एलान कर रखा है। खासतौर से बंगाल में इसे ऐतिहासिक बनाने की तैयारी है। दिल्ली-एनसीआर बॉर्डर के सभी आंदोलन स्थलों पर इस दिवस को यादगार बनाने को संपर्क जारी है।
ऐसे में अचानक 23-24 जनवरी को ही सिंघु बॉर्डर पर जन प्रतिनिधि संघर्ष मोर्चा की ओर से ‘किसान संसद’ की तैयारी शुरू कर दी गई है। रविवार को कांस्टीट्यूशन क्लब के एनेक्सी हॉल में किसान संसद की तैयारी को लेकर पहली बैठक हुई। इसमें कांग्रेस, माकपा, इनेलो, एनसीपी, जनअधिकार पार्टी, आप, अकाली दल आदि के कई नेताओं-प्रतिनिधियों ने शिरकत की। उम्मीद की जा रही है कि सपा, तृणमूल समेत कई और दल इस किसान संसद में शामिल होंगे।
इस ‘नई डफली के नए राग’ की औपचारिक घोषणा 19 जनवरी को दिल्ली प्रेस क्लब में हो सकती है। यह महज संयोग है कि उसी दिन आंदोलनकारी किसान संगठनों से सरकार की दसवें दौर की वार्ता के अलावा सुप्रीम कोर्ट के पैनल की पहली बैठक भी प्रस्तावित है।
नया ‘राग’ सुनने को सरकार के ‘कान’ खड़े
जनप्रतिनिधि संघर्ष मोर्चा की दलील है कि इस किसान संसद की जरूरत इसलिए महसूस की गई ताकि कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन का जल्दी हल निकल सके। इस संसद में तमाम विपक्षी दलों को जुटाने का बीड़ा उठाया गया है। इस किसान संसद के आयोजक मंडल में जस्टिस गोपाल गौडा, जस्टिस कोसले पाटिल, एडमिरल रामदास, अरुणा राय, पी साईंनाथ, यशवंत सिन्हा, मेधा पाटकर, संत गोपालदास, मोहम्मद अदीब, जगमोहन सिंह, सोमपाल शास्त्री, प्रशांत भूषण आदि के नाम शामिल हैं। ऐसे में नया ‘राग’ सुनने के लिए सरकार के ‘कान’ खड़े हैं और ‘आंखें’ भी टिकी हैं।
समानांतर जमावड़ा या फ्रेंडली मैच के लिए बी टीम का ‘वार्म अप’
ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या यह संयुक्त किसान मोर्चा से इतर कोई नया समानांतर जमावड़ा है। जनप्रतनिधि संघर्ष मोर्चा के सूत्र यहां तक बताते हैं कि इसमें संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े संगठनों के साथ-साथ देश भर के किसानों को आमंत्रित किया जा रहा है। शामिल होना उन पर निर्भर है। रविवार को जब भाकियू के गुरनाम सिंह चढूनी ने संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक से दूरी बनाकर किसान संसद की नई खिचड़ी की हांडी चढ़ा दी तो सभी ने सवाल खड़े किए कि क्या यह संयुक्त किसान मोर्चा में बिखराव का संकेत है और सरकार अपने मकसद में कामयाब होती दिख रही है, लेकिन सच कुछ और है। खुद गुरनाम सिंह चढूनी का कहना है कि वे संयुक्त किसान मोर्चा से अलग नहीं हुए हैं। वह संघर्ष में साथ हैं।
डॉ. दर्शनपाल बोले-यह प्रशांत भूषण की पहल
उधर संयुक्त किसान मोर्चा की प्रेस कांफ्रेंस के दौरान जब चढूनी के अलग किसान संसद आयोजन को लेकर सवाल किए गए, तो क्रांतिकारी किसान यूनियन के डॉ. दर्शनपाल ने सफाई दी कि यह प्रशांत भूषण की पहल है। जब पूछा गया कि सियासी दलों ने संयुक्त किसान मोर्चा को परहेज है और चढूनी संयुक्त किसान मोर्चा का हिस्सा हैं तो उन पर क्या कोई कार्रवाई होगी, इस सवाल पर सर्वहिंद राष्ट्रीय किसान महासंघ के शिवकुमार कक्का का कहना है कि चढ़ूनी से इस बाबत पूछा जाएगा, उसके बाद ही संयुक्त किसान मोर्चा फैसला लेगा। राजनीतिक दलों से नाता नहीं होने का दावा जरूर किया जा रहा है, लेकिन संकेत तो यह भी है कि यदि किसान संसद के बहाने विपक्ष दलों-संयुक्त मोर्चा का यह कॉकटेल यदि देशव्यापी असरदार हुआ तो चढूनी की तरह एक-एक कर किसान संगठन इसमें भागीदारी बढ़ाते जाएंगे।
दरअसल, संयुक्त किसान मोर्चा ने अब तक विपक्षी राजनीतिक दलों से दूरी बना रखी है। ऐसे में यह 'किसान संसद' समानांतर आयोजन के बजाए 'फ्रेंडली मैच' के लिए बी टीम की तैयारी है। संयुक्त किसान मोर्चा और विपक्षी दलों की यह फ्रेंडली टीम मिलकर सरकार से मैच खेलने को ‘वार्म अप’ हो रही है।