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गौतम बुद्ध की इस धरा का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि यहां का भविष्य कुपोषण का दंश झेल रहा है, स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह के जिले सिद्धार्थनगर में सरकारी आंकड़े और विभागीय फाइलें अपनी गति से चल रही हैं। दावे अपनी तरफ हैं और असल तस्वीर अलग। बड़ा प्रश्न यह उठता है कि 74 हजार मासूमों की जिदंगी का खेवनहार बनेगा कौन? कुपोषण की इसी स्थिति की जब पड़ताल की गई तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।
भनवापुर ब्लॉक के हठवा गांव की रहने वाली सुधा तिवारी के दो बेटे हैं। बड़ा बेटा हिमांशु चार माह छह महीने का हो गया है, लेकिन उसकी लंबाई 101 सेंटीमीटर है। वजन की बात करें तो यह 13 किलोग्राम का है। जबकि ढाई साल पहले उसका वजन नौ किलोग्राम था। दो साल में उसके वजन में केवल तीन किलोग्राम का इजाफा हुआ है। वहीं, छोटा बेटा जीतू तीन साल है। पैदा होने के समय उसका वजन दो किलो 45 ग्राम था। लेकिन उसके छह महीने बाद वजन बढ़ने के बजाय घटने लगा। तीन साल में वह 12 किलोग्राम का हो चुका है। जबकि उसकी लंबाई 95 सेंटीमीटर है। कई निजी अस्पतालों में दिखाया तो पता चला कि बच्चे कुपोषित हैं।
सुधा बताती हैं कि सरकारी मदद के नाम पर एक रुपये की मदद अब तक नहीं मिली है। वजन और लंबाई कम होने की वजह से बच्चे बीमार भी जल्दी हो जाते हैं। उसका ब्लॉक के उसका राजा गांव की रहने वाली लक्ष्मी की बेटी निशा एक साल सात माह की हो गई है। जब वह पैदा हुई थी तो उसका वजन दो किलो 400 ग्राम था, लेकिन मौजूदा समय में वह महज छह किलोग्राम की है। जबकि लंबाई 70 सेंटीमीटर है। लक्ष्मी बताती हैं कि यह तीसरा बच्चा है। दोनों बच्चे पूरी तरह से ठीक हैं। लेकिन यह हमेशा बीमार रहती है। निजी अस्पतालों में दिखाया गया तो डॉक्टर ने बताया कि बच्ची अतिकुपोषित है। सरकारी मदद के नाम पर बताती हैं कि आंगनबाड़ी केंद्र से कुछ नहीं मिलता है। पंजीरी लोग पशुओं को खिलाते हैं, तो वह बेटी को खाने को दे नहीं सकती। लॉकडाउन में सरकारी अनाज मिला था।
नौगढ़ ब्लॉक के विनयका गांव की रहने वाली शकुंतला को दो बेटी के बाद एक बेटा हुआ। दो साल का विक्की अभी ठीक से चल नहीं पाता है। छह माह पहले पोषण पुर्नवास केंद्र में बेटे को छह दिन तक भर्ती किया। इसके बाद वह खुद बच्चे को लेकर चली आई। बताया कि केंद्र से अच्छा घर पर ही था। इसलिए लेकर चली आई। अब बच्चे को खाना और दूध दे रही हूं, तो स्थिति सुधर रही है। बोली कि गांव में आंगनबाड़ी केंद्र है, लेकिन कोई मदद करने वाला नहीं है।
जिला अस्पताल में 10 बेड का पोषण पुर्नवास केंद्र (एनआरसी) बनाया गया है, लेकिन कुपोषित बच्चे इस केंद्र पर पहुंच नहीं पा रहे हैं। इसकी बड़ी वजह सरकारी तंत्र की नाकामी। कई परिवारों को यह जानकारी तक नहीं है कि ऐसा कोई केंद्र भी है, जहां पर बच्चों का निशुल्क इलाज और उनकी देखरेख की जाती है। यही वजह है कि इतने बड़ी संख्या में कुपोषित और अतिकुपोषित बच्चे होने के बाद भी तीन सालों में केवल 237 बच्चे केंद्र में भर्ती हुए हैं।
कुपोषित पैदा हो नहीं रहे, बाद में हो रहे बीमार जिले में कुपोषित पैदा होने वाले बच्चों की संख्या लगभग न के बराबर है, लेकिन पैदा होने के छह माह बाद वह कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। तीन सालों में जिन 237 बच्चों का इलाज किया गया है। उनकी कहानी कुछ ऐसी ही हैं। केंद्र में आने वाले 100 प्रतिशत बच्चे पैदा होने के छह माह बाद कुपोषण का शिकार हुए हैं।
- 50 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी, इसमें 20 प्रतिशत में गंभीर खून की कमी
- 30 प्रतिशत बच्चों को छह माह तक दूध नहीं मिलता
- 40 प्रतिशत बच्चों को छह माह बाद संतुलित भोजन नहीं मिल पा रहा जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या- 57 हजार जिले में अतिकुपोषित बच्चों की संख्या- 17466
आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं। इसकी मॉनिटरिंग की जाएगी। जागरूकता के जरिए कुपोषण जैसी बीमारी को रोका जा सकता है। आंगनबाड़ी और आशा वर्कर के जरिए कुपोषित और अतिकुपोषित बच्चों को पोषण पुर्नवास केंद्र में भर्ती कर उनकी सेहत सुधारी जाएगी। सरकार ऐसे बच्चों के लिए तमाम योजनाएं भी चला रही है।
-जय प्रताप सिंह, स्वास्थ्य मंत्री
विस्तार
गौतम बुद्ध की इस धरा का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि यहां का भविष्य कुपोषण का दंश झेल रहा है, स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह के जिले सिद्धार्थनगर में सरकारी आंकड़े और विभागीय फाइलें अपनी गति से चल रही हैं। दावे अपनी तरफ हैं और असल तस्वीर अलग। बड़ा प्रश्न यह उठता है कि 74 हजार मासूमों की जिदंगी का खेवनहार बनेगा कौन? कुपोषण की इसी स्थिति की जब पड़ताल की गई तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।
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दो साल में केवल तीन किलोग्राम बढ़ा वजन, लंबाई महज चार सेंटीमीटर
भनवापुर ब्लॉक के हठवा गांव की रहने वाली सुधा तिवारी के दो बेटे हैं। बड़ा बेटा हिमांशु चार माह छह महीने का हो गया है, लेकिन उसकी लंबाई 101 सेंटीमीटर है। वजन की बात करें तो यह 13 किलोग्राम का है। जबकि ढाई साल पहले उसका वजन नौ किलोग्राम था। दो साल में उसके वजन में केवल तीन किलोग्राम का इजाफा हुआ है। वहीं, छोटा बेटा जीतू तीन साल है। पैदा होने के समय उसका वजन दो किलो 45 ग्राम था। लेकिन उसके छह महीने बाद वजन बढ़ने के बजाय घटने लगा। तीन साल में वह 12 किलोग्राम का हो चुका है। जबकि उसकी लंबाई 95 सेंटीमीटर है। कई निजी अस्पतालों में दिखाया तो पता चला कि बच्चे कुपोषित हैं।
सुधा बताती हैं कि सरकारी मदद के नाम पर एक रुपये की मदद अब तक नहीं मिली है। वजन और लंबाई कम होने की वजह से बच्चे बीमार भी जल्दी हो जाते हैं। उसका ब्लॉक के उसका राजा गांव की रहने वाली लक्ष्मी की बेटी निशा एक साल सात माह की हो गई है। जब वह पैदा हुई थी तो उसका वजन दो किलो 400 ग्राम था, लेकिन मौजूदा समय में वह महज छह किलोग्राम की है। जबकि लंबाई 70 सेंटीमीटर है। लक्ष्मी बताती हैं कि यह तीसरा बच्चा है। दोनों बच्चे पूरी तरह से ठीक हैं। लेकिन यह हमेशा बीमार रहती है। निजी अस्पतालों में दिखाया गया तो डॉक्टर ने बताया कि बच्ची अतिकुपोषित है। सरकारी मदद के नाम पर बताती हैं कि आंगनबाड़ी केंद्र से कुछ नहीं मिलता है। पंजीरी लोग पशुओं को खिलाते हैं, तो वह बेटी को खाने को दे नहीं सकती। लॉकडाउन में सरकारी अनाज मिला था।
दो साल का मासूम ठीक से चल नहीं पाता
नौगढ़ ब्लॉक के विनयका गांव की रहने वाली शकुंतला को दो बेटी के बाद एक बेटा हुआ। दो साल का विक्की अभी ठीक से चल नहीं पाता है। छह माह पहले पोषण पुर्नवास केंद्र में बेटे को छह दिन तक भर्ती किया। इसके बाद वह खुद बच्चे को लेकर चली आई। बताया कि केंद्र से अच्छा घर पर ही था। इसलिए लेकर चली आई। अब बच्चे को खाना और दूध दे रही हूं, तो स्थिति सुधर रही है। बोली कि गांव में आंगनबाड़ी केंद्र है, लेकिन कोई मदद करने वाला नहीं है।
बच्चे नहीं पहुंच पा रहे पोषण पुर्नवास केंद्र
जिला अस्पताल में 10 बेड का पोषण पुर्नवास केंद्र (एनआरसी) बनाया गया है, लेकिन कुपोषित बच्चे इस केंद्र पर पहुंच नहीं पा रहे हैं। इसकी बड़ी वजह सरकारी तंत्र की नाकामी। कई परिवारों को यह जानकारी तक नहीं है कि ऐसा कोई केंद्र भी है, जहां पर बच्चों का निशुल्क इलाज और उनकी देखरेख की जाती है। यही वजह है कि इतने बड़ी संख्या में कुपोषित और अतिकुपोषित बच्चे होने के बाद भी तीन सालों में केवल 237 बच्चे केंद्र में भर्ती हुए हैं।
पैदा होने के बाद हो रहे कुपोषित
कुपोषित पैदा हो नहीं रहे, बाद में हो रहे बीमार जिले में कुपोषित पैदा होने वाले बच्चों की संख्या लगभग न के बराबर है, लेकिन पैदा होने के छह माह बाद वह कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। तीन सालों में जिन 237 बच्चों का इलाज किया गया है। उनकी कहानी कुछ ऐसी ही हैं। केंद्र में आने वाले 100 प्रतिशत बच्चे पैदा होने के छह माह बाद कुपोषण का शिकार हुए हैं।
एक नजर आंकड़ों पर
- 50 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी, इसमें 20 प्रतिशत में गंभीर खून की कमी
- 30 प्रतिशत बच्चों को छह माह तक दूध नहीं मिलता
- 40 प्रतिशत बच्चों को छह माह बाद संतुलित भोजन नहीं मिल पा रहा जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या- 57 हजार जिले में अतिकुपोषित बच्चों की संख्या- 17466
आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं। इसकी मॉनिटरिंग की जाएगी। जागरूकता के जरिए कुपोषण जैसी बीमारी को रोका जा सकता है। आंगनबाड़ी और आशा वर्कर के जरिए कुपोषित और अतिकुपोषित बच्चों को पोषण पुर्नवास केंद्र में भर्ती कर उनकी सेहत सुधारी जाएगी। सरकार ऐसे बच्चों के लिए तमाम योजनाएं भी चला रही है।
-जय प्रताप सिंह, स्वास्थ्य मंत्री