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भारत-चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में जारी तनाव के बीच हाल ही में एक चीनी प्रोफेसर ने दावा किया था कि 29 अगस्त को सीमा पर भारतीय सैनिकों के खिलाफ माइक्रोवेव हथियारों का इस्तेमाल किया था। हालांकि, भारतीय सेना ने इस दावे को खारिज कर दिया था। सेना ने ऐसी खबरों को गलत बताया। आइए आपको बताते हैं कि आखिर ये माइक्रोवेव हथियार क्या होते हैं? ये कैसे काम करते हैं? क्या भारत भी ऐसे हथियार बनाने पर काम कर रहा है?
इस तकनीक के इस्तेमाल से तैयार हो रहे हथियार
माइक्रोवेव इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन का ही एक रूप है। इसका इस्तेमाल खाना पकाने और रडार सिस्टम में होता है। 2008 में ब्रिटेन की मैग्जीन न्यू साइंटिस्ट ने बताया था कि माइक्रोवेव शरीर के ऊतकों को गर्म कर सकता है। कानों के जरिये ये सिर के अंदर एक शॉक वेव पैदा करते हैं। इस तकनीक को हथियारों की तरह इस्तेमाल करने के लिए कई देश काम कर रहे हैं।
क्या होते हैं माइक्रोवेव हथियार ?
माइक्रोवेव हथियार को ‘डायरेक्ट एनर्जी वेपंस’ कहा जाता है।ऐसे हथियारों की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि ये कम घातक होते हैं, जिससे कोई गंभीर चोट लगने या मौत का खतरा नहीं होता। माइक्रोवेव हथियार शरीर के अंदर मौजूद पानी को गर्म कर देते हैं। इससे जलन होती है। ये जलन उतनी ही होती है, जितनी एक गर्म बल्ब को छूने पर होती है। माइक्रोवेव हथियार का असर तब तक होता है, जब तक टारगेट उसी जगह खड़ा होता है, लेकिन वहां से निकल जाने पर इसका असर खत्म या कम हो जाता है।
आपने माइक्रोवेव ओवन में खाना गर्म किया होगा। ये माइक्रोवेव हथियार भी उसी तर्ज पर काम करते हैं। जिस तरह माइक्रोवेव ओवन खाने में मौजूद पानी को टारगेट कर गर्म करता है, ताकि खाना गर्म हो सके। इसी तरह माइक्रोवेव हथियार भी इंसान के शरीर में मौजूद पानी को गर्म कर देता है, जिससे शरीर का टेंपरेचर बढ़ जाता है। हालांकि, इन हथियारों के रेडिएशन में माइक्रोवेव्स की जगह मिलीमीटर वेव्स में निकलती हैं। इन हथियारों से 1 किलोमीटर तक टारगेट किया जा सकता है। माइक्रोवेव हथियार का हमला होने पर शरीर का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। जबकि, हमारे लिए 36.1 डिग्री से 37.2 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान को सामान्य माना जाता है।
इस तरह किया जा सकता है टारगेट
चीन के सरकारी अखबार के मुताबिक, माइक्रोवेव हथियार दो तरह से काम करता है। पहला- जिसमें किसी एक ही व्यक्ति को टारगेट किया जाता है। दूसरा- जिसमें भीड़ को टारगेट किया जाता है।
माइक्रोवेव हथियार से हमले का असर
माइक्रोवेव हथियार से हमला करने पर शरीर में पानी की कमी हो जाती है, जिससे उल्टी आने लगती है। शरीर कमजोर हो जाता है और व्यक्ति में खड़े रहते की क्षमता नहीं रहती है। नाक से खून निकलने लगता है। सिरदर्द होता है। शरीर कांपने लगता है।
माइक्रोवेव हथियार सबसे पहले वर्ष 2007 में सामने आए थे। इसे अमेरिका ने बनाया था, जिसे वो ‘एक्टिव डिनायल सिस्टम’ कहता है। अमेरिका के मुताबिक, इस सिस्टम को बनाने का मकसद भीड़ को कंट्रोल करना, सिक्योरिटी करना है। इन हथियारों को बनाने का एक मकसद ये भी है कि इससे कोई गंभीर नुकसान नहीं होता। अमेरिका ने 2007 में इसे अफगानिस्तान में तैनात किया था। हालांकि, उस समय इसका इस्तेमाल नहीं हुआ था।
चीन इन हथियारों पर कर रहा तेजी से काम
अमेरिका के अलावा चीन ने इस पर तेजी से काम किया है। डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 में चीन ने एयर शो में ‘पॉली WB-1’ डिस्प्ले किया था। 2017 में पॉपुलर साइंस ने बताया कि चीन ऐसे माइक्रोवेव हथियारों पर काम कर रहा था, जो इलेक्ट्रॉनिक्स का इस्तेमाल कर मिसाइलों या दूसरी मशीनरी को बेकार कर सकते हैं।चीन के अलावा रूस, ब्रिटेन, ईरान और तुर्की भी ऐसे हथियारों पर काम कर रहे हैं।
भारत में रक्षा शोध एवं विकास संस्थान (डीआरडीओ) भी ऐसे हथियारों पर काम कर रहा है। हालांकि, ये अभी शुरुआती स्टेज में है। अगस्त 2019 में एक कार्यक्रम के दौरान डीआरडीओ के चेयरमैन डॉ. जी. सतीश रेड्डी ने कहा था, ''आज डायरेक्ट एनर्जी वेपन (डीईडब्ल्यू) बहुत जरूरी है। दुनिया इसकी तरफ बढ़ रही है। हम भी इसको लेकर कई प्रयोग कर रहे हैं। पिछले 3-4 सालों से हम 10 किलोवॉट से लेकर 20 किलोवॉट तक के हथियार डेवलप करने पर काम कर रहे हैं।'
बता दें कि वर्ष 2017 में डीआरडीओ ने कर्नाटक के चित्रदुर्गा में 1 किलोवॉट के हथियार का टेस्ट किया था। उस समय तब के रक्षा मंत्री अरुण जेटली भी मौजूद थे।
भारत-चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में जारी तनाव के बीच हाल ही में एक चीनी प्रोफेसर ने दावा किया था कि 29 अगस्त को सीमा पर भारतीय सैनिकों के खिलाफ माइक्रोवेव हथियारों का इस्तेमाल किया था। हालांकि, भारतीय सेना ने इस दावे को खारिज कर दिया था। सेना ने ऐसी खबरों को गलत बताया। आइए आपको बताते हैं कि आखिर ये माइक्रोवेव हथियार क्या होते हैं? ये कैसे काम करते हैं? क्या भारत भी ऐसे हथियार बनाने पर काम कर रहा है?
इस तकनीक के इस्तेमाल से तैयार हो रहे हथियार
माइक्रोवेव इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन का ही एक रूप है। इसका इस्तेमाल खाना पकाने और रडार सिस्टम में होता है। 2008 में ब्रिटेन की मैग्जीन न्यू साइंटिस्ट ने बताया था कि माइक्रोवेव शरीर के ऊतकों को गर्म कर सकता है। कानों के जरिये ये सिर के अंदर एक शॉक वेव पैदा करते हैं। इस तकनीक को हथियारों की तरह इस्तेमाल करने के लिए कई देश काम कर रहे हैं।
क्या होते हैं माइक्रोवेव हथियार ?
माइक्रोवेव हथियार को ‘डायरेक्ट एनर्जी वेपंस’ कहा जाता है।ऐसे हथियारों की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि ये कम घातक होते हैं, जिससे कोई गंभीर चोट लगने या मौत का खतरा नहीं होता। माइक्रोवेव हथियार शरीर के अंदर मौजूद पानी को गर्म कर देते हैं। इससे जलन होती है। ये जलन उतनी ही होती है, जितनी एक गर्म बल्ब को छूने पर होती है। माइक्रोवेव हथियार का असर तब तक होता है, जब तक टारगेट उसी जगह खड़ा होता है, लेकिन वहां से निकल जाने पर इसका असर खत्म या कम हो जाता है।
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कैसे काम करते हैं माइक्रोवेव हथियार?
आपने माइक्रोवेव ओवन में खाना गर्म किया होगा। ये माइक्रोवेव हथियार भी उसी तर्ज पर काम करते हैं। जिस तरह माइक्रोवेव ओवन खाने में मौजूद पानी को टारगेट कर गर्म करता है, ताकि खाना गर्म हो सके। इसी तरह माइक्रोवेव हथियार भी इंसान के शरीर में मौजूद पानी को गर्म कर देता है, जिससे शरीर का टेंपरेचर बढ़ जाता है। हालांकि, इन हथियारों के रेडिएशन में माइक्रोवेव्स की जगह मिलीमीटर वेव्स में निकलती हैं। इन हथियारों से 1 किलोमीटर तक टारगेट किया जा सकता है। माइक्रोवेव हथियार का हमला होने पर शरीर का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। जबकि, हमारे लिए 36.1 डिग्री से 37.2 डिग्री सेल्सियस के बीच के तापमान को सामान्य माना जाता है।
इस तरह किया जा सकता है टारगेट
चीन के सरकारी अखबार के मुताबिक, माइक्रोवेव हथियार दो तरह से काम करता है। पहला- जिसमें किसी एक ही व्यक्ति को टारगेट किया जाता है। दूसरा- जिसमें भीड़ को टारगेट किया जाता है।
माइक्रोवेव हथियार से हमले का असर
माइक्रोवेव हथियार से हमला करने पर शरीर में पानी की कमी हो जाती है, जिससे उल्टी आने लगती है। शरीर कमजोर हो जाता है और व्यक्ति में खड़े रहते की क्षमता नहीं रहती है। नाक से खून निकलने लगता है। सिरदर्द होता है। शरीर कांपने लगता है।
किन-किन देशों के पास है माइक्रोवेव हथियार?
माइक्रोवेव हथियार सबसे पहले वर्ष 2007 में सामने आए थे। इसे अमेरिका ने बनाया था, जिसे वो ‘एक्टिव डिनायल सिस्टम’ कहता है। अमेरिका के मुताबिक, इस सिस्टम को बनाने का मकसद भीड़ को कंट्रोल करना, सिक्योरिटी करना है। इन हथियारों को बनाने का एक मकसद ये भी है कि इससे कोई गंभीर नुकसान नहीं होता। अमेरिका ने 2007 में इसे अफगानिस्तान में तैनात किया था। हालांकि, उस समय इसका इस्तेमाल नहीं हुआ था।
चीन इन हथियारों पर कर रहा तेजी से काम
अमेरिका के अलावा चीन ने इस पर तेजी से काम किया है। डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 में चीन ने एयर शो में ‘पॉली WB-1’ डिस्प्ले किया था। 2017 में पॉपुलर साइंस ने बताया कि चीन ऐसे माइक्रोवेव हथियारों पर काम कर रहा था, जो इलेक्ट्रॉनिक्स का इस्तेमाल कर मिसाइलों या दूसरी मशीनरी को बेकार कर सकते हैं।चीन के अलावा रूस, ब्रिटेन, ईरान और तुर्की भी ऐसे हथियारों पर काम कर रहे हैं।
भारत भी कर रहा इन हथियारों पर काम :
भारत में रक्षा शोध एवं विकास संस्थान (डीआरडीओ) भी ऐसे हथियारों पर काम कर रहा है। हालांकि, ये अभी शुरुआती स्टेज में है। अगस्त 2019 में एक कार्यक्रम के दौरान डीआरडीओ के चेयरमैन डॉ. जी. सतीश रेड्डी ने कहा था, ''आज डायरेक्ट एनर्जी वेपन (डीईडब्ल्यू) बहुत जरूरी है। दुनिया इसकी तरफ बढ़ रही है। हम भी इसको लेकर कई प्रयोग कर रहे हैं। पिछले 3-4 सालों से हम 10 किलोवॉट से लेकर 20 किलोवॉट तक के हथियार डेवलप करने पर काम कर रहे हैं।'
बता दें कि वर्ष 2017 में डीआरडीओ ने कर्नाटक के चित्रदुर्गा में 1 किलोवॉट के हथियार का टेस्ट किया था। उस समय तब के रक्षा मंत्री अरुण जेटली भी मौजूद थे।