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ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध के कारण भारत के लिए कूटनीतिक दृष्टि से बेहद अहम चाबहार परियोजना पर फिलहाल कोई असर नहीं पड़ेगा। दरअसल नवंबर महीने में तेल क्षेत्र पर अमेरिकी प्रतिबंध के कारण आने वाली मुश्किलों को भांपते हुए भारत ने अप्रैल से अगस्त महीने तक ईरान से पूर्व की तुलना में दोगुना कच्चा तेल आयात किया है। गौरतलब है कि अमेरिका ने परमाणु समझौते से हटने के कारण भारत सहित दुनिया के तमाम देशों को इस साल चार नवंबर के बाजद ईरान से तेल आयात शून्य करने का फरमान सुनाया है।
सरकारी सूत्रों के मुताबकि भारत को ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध के कारण आपसी द्विपक्षीय रिश्ते पर प्रतिकूल असर पडने का पहले ही अंदेशा था। तेल क्षेत्र के इतर अन्य क्षेत्रों पर प्रतिबंध के बाद जब ईरान ने चाबहार परियोजना में भारत पर वादे के अनुरूप निवेश न करने का आरोप लगाया, तभी इस दिशा में कूटनीतिक पहल शुरू हुई।
इसी दौरान 4 नवंबर से तेल क्षेत्र पर अमेरिकी प्रतिबंध शुरू होने से पहले दीर्घकालिक कूटनीतिक उपाय के तहत ईरान से कच्चे तेल का आयात बढ़ा दिया। अप्रैल से अगस्त महीने तक ईरान से प्रतिदिन 6.40 लाख बैरल कच्चा तेल आयात किया जो कि अन्य दिनों की तुलना में लगभग दोगुना है। इस दौरान ईरान की निर्यात की क्षमता और उसकी इच्छा के अनुरूप भारत ने कच्चा तेल आयात किया गया।
भारत को उम्मीद है कि 4 नवंबर से तेल क्षेत्र पर प्रतिबंध की शुरुआत के कुछ समय बाद हालात में धीरे-धीरे बदलाव होंगे। इस दौरान ईरान या अमेरिका किसी भी एक देश के रुख में परिवर्तन के कारण हालात सामान्य हो जाएंगे। फिलहाल प्रतिबंध से पूर्व ईरान की सहमति से तेल आयात बढ़ा कर भारत ने द्विपक्षीय रिश्तों में तत्काल खटास आने की संभावना खत्म कर दी है।
बिना पाकिस्तान के मदद से सीधे अफगानिस्तान से जोड़ने और समुद्री सुरक्षा की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह परियोजना भारत के लिए कूटनीतिक दृष्टि से बेहद अहम है। अमेरिकी प्रतिबंध के कारण भारत को इस परियोजना में ईरान से झटका लगने और ईरान की चीन से दोस्ती बढने का अंदेशा था।
चीन भी नहीं चाहता कि चाबहार परियोजना का लाभ भारत उठा पाए। चूंकि चीन ने ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध को अस्वीकार कर दिया है और वह ईरान का सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। ऐसे में चीन ईरान के जरिए भारत को चाबहार परियोजना में झटका दे सकता था।
ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध के कारण भारत के लिए कूटनीतिक दृष्टि से बेहद अहम चाबहार परियोजना पर फिलहाल कोई असर नहीं पड़ेगा। दरअसल नवंबर महीने में तेल क्षेत्र पर अमेरिकी प्रतिबंध के कारण आने वाली मुश्किलों को भांपते हुए भारत ने अप्रैल से अगस्त महीने तक ईरान से पूर्व की तुलना में दोगुना कच्चा तेल आयात किया है। गौरतलब है कि अमेरिका ने परमाणु समझौते से हटने के कारण भारत सहित दुनिया के तमाम देशों को इस साल चार नवंबर के बाजद ईरान से तेल आयात शून्य करने का फरमान सुनाया है।
सरकारी सूत्रों के मुताबकि भारत को ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध के कारण आपसी द्विपक्षीय रिश्ते पर प्रतिकूल असर पडने का पहले ही अंदेशा था। तेल क्षेत्र के इतर अन्य क्षेत्रों पर प्रतिबंध के बाद जब ईरान ने चाबहार परियोजना में भारत पर वादे के अनुरूप निवेश न करने का आरोप लगाया, तभी इस दिशा में कूटनीतिक पहल शुरू हुई।
इसी दौरान 4 नवंबर से तेल क्षेत्र पर अमेरिकी प्रतिबंध शुरू होने से पहले दीर्घकालिक कूटनीतिक उपाय के तहत ईरान से कच्चे तेल का आयात बढ़ा दिया। अप्रैल से अगस्त महीने तक ईरान से प्रतिदिन 6.40 लाख बैरल कच्चा तेल आयात किया जो कि अन्य दिनों की तुलना में लगभग दोगुना है। इस दौरान ईरान की निर्यात की क्षमता और उसकी इच्छा के अनुरूप भारत ने कच्चा तेल आयात किया गया।
भारत को उम्मीद है कि 4 नवंबर से तेल क्षेत्र पर प्रतिबंध की शुरुआत के कुछ समय बाद हालात में धीरे-धीरे बदलाव होंगे। इस दौरान ईरान या अमेरिका किसी भी एक देश के रुख में परिवर्तन के कारण हालात सामान्य हो जाएंगे। फिलहाल प्रतिबंध से पूर्व ईरान की सहमति से तेल आयात बढ़ा कर भारत ने द्विपक्षीय रिश्तों में तत्काल खटास आने की संभावना खत्म कर दी है।
यह है भारत का डर
बिना पाकिस्तान के मदद से सीधे अफगानिस्तान से जोड़ने और समुद्री सुरक्षा की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह परियोजना भारत के लिए कूटनीतिक दृष्टि से बेहद अहम है। अमेरिकी प्रतिबंध के कारण भारत को इस परियोजना में ईरान से झटका लगने और ईरान की चीन से दोस्ती बढने का अंदेशा था।
चीन भी नहीं चाहता कि चाबहार परियोजना का लाभ भारत उठा पाए। चूंकि चीन ने ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध को अस्वीकार कर दिया है और वह ईरान का सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। ऐसे में चीन ईरान के जरिए भारत को चाबहार परियोजना में झटका दे सकता था।