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सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को असंवैधानिक बता कर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में महिलाओं के हक में फैसला सुनाया था। आज शाम पांच बजे सबके लिए (महिला और पुरुष) मंदिर के कपाट भी खुल जाएंगे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से ही इसका भारी विरोध किया जा रहा है। चलिए जानते हैं कि क्या है सबरीमाला की पूरी कहानी और महिलाओं को प्रवेश की अनुमति से पहले क्या कुछ हुआ।
कई रहस्य और धरोहर समेटे हुए है मंदिर
केरल का बेहद प्राचीन और पारंपरिक मंदिर इससे पहले भी विवादों में रहा है। ये मंदिर अपने आप में कई रहस्य और धरोहर समेटे हुए है। केरल का ये प्राचीन मंदिर राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर है और पहाड़ियों पर स्थित है। सबरीमाला मंदिर चारों तरफ से 18 पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
यह भी पढ़ें- सबरीमाला मंदिर LIVE: लाठीचार्ज में कई पुलिसकर्मी और प्रदर्शनकारी घायल, शाम 5 बजे खुलेंगे द्वार
क्या है इतिहास?
कंब रामायण, महाभारत के अष्टम स्कंध और स्कंदपुराण के असुर कांड में जिस शिशु शास्ता का जिक्र है, अय्यप्पा उसी के अवतार माने जाते हैं। उन्हीं का मंदिर अय्यप्पा का मशहूर मंदिर पूणकवन के नाम से विख्यात 18 पहाड़ियों के बीच स्थित है। इस मंदिर को लेकर कई मान्यताएं हैं। माना जाता है कि परशुराम ने अय्यप्पा पूजा के लिए सबरीमाला में मूर्ति स्थापित की थी। गौर करने वाली बात यह है कि कुछ लोग इसे शबरी से भी जोड़कर देखते हैं। सवाल उठता है कि जिस मंदिर का नाम शबरी के नाम से जुड़ा हो वहां महिलाओं के प्रवेश पर रोक क्यों था?
मंदिर में अय्यप्पा के अलावा मालिकापुरत्त अम्मा, गणेश और नागराजा जैसे उप देवताओं की भी मूर्तियां हैं। महिलाओं को प्रवेश से वंचित रखने को लेकर जहां मंदिर की काफी आलोचना हुई, वहीं कुछ मामलों को लेकर तारीफ भी की जाती है। इस मंदिर में न तो जात-पात का कोई बंधन है और न ही अमीर-गरीब के बीच की खाई। यहां प्रवेश करने वाले सभी धर्म और वर्ग के लोग समान हैं।
यहां आने वाले लोगों को दो महीने मांस-मछली और तामसिक प्रवृत्ति वाले खाद्य पदार्थों का त्याग करना पड़ता है। मान्यता है कि अगर कोई भक्त तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर व्रत रखता है तो उसकी मुराद पूरी हो जाती है।
- साल 2006 में मंदिर के मुख्य ज्योतिष परपन्नगडी उन्नीकृष्ण ने कहा था कि मंदिर में स्थापित अय्यप्पा अपनी ताकत खो रहे हैं। वह इसलिए नाराज हैं क्योंकि मंदिर में किसी युवा महिला ने प्रवेश नहीं किया है।
- इसके बाद कन्नड़ अभिनेत्री जयमाला ने दावा किया कि उन्होंने गलती से अय्यप्पा की मूर्ति को छुआ और उनकी वजह से वह नाराज हुए। इसलिए अब वह प्रायश्चित करना चाहती हैं। इसके बाद लोगों का इस मुद्दे पर ध्यान गया।
- साल 2006 में राज्य के यंग लॉयर्स असोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की। इसके बावजूद भी मामला 10 साल तक लटका रहा।
यह भी पढ़ें- सबरीमाला मुद्दे पर अब आदिवासियों ने जताया विरोध, कहा अशुद्ध महिलाएं नहीं कर सकतीं मंदिर में प्रवेश
- सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के ट्रस्ट त्रावणकोर देवासम बोर्ड से जवाब मांगा, जिसपर उन्होंने कहा कि भगवान अय्यप्पा ब्रह्मचारी थे इसलिए उन महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है जिन्हें मासिक धर्म होता हो।
- 7 नवंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में है।
- 11 जुलाई, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला संवैधानिक पीठ के पास भेजने का विचार किया। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
- 2017 में संवैधानिक पीठ के पास मामला भेजा गया। जिसके बाद साल 2018 में पांच जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई शुरू की।
- 28 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मंदिर में हर आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी।
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को असंवैधानिक बता कर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में महिलाओं के हक में फैसला सुनाया था। आज शाम पांच बजे सबके लिए (महिला और पुरुष) मंदिर के कपाट भी खुल जाएंगे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से ही इसका भारी विरोध किया जा रहा है। चलिए जानते हैं कि क्या है सबरीमाला की पूरी कहानी और महिलाओं को प्रवेश की अनुमति से पहले क्या कुछ हुआ।
कई रहस्य और धरोहर समेटे हुए है मंदिर
केरल का बेहद प्राचीन और पारंपरिक मंदिर इससे पहले भी विवादों में रहा है। ये मंदिर अपने आप में कई रहस्य और धरोहर समेटे हुए है। केरल का ये प्राचीन मंदिर राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर है और पहाड़ियों पर स्थित है। सबरीमाला मंदिर चारों तरफ से 18 पहाड़ियों से घिरा हुआ है।
यह भी पढ़ें- सबरीमाला मंदिर LIVE: लाठीचार्ज में कई पुलिसकर्मी और प्रदर्शनकारी घायल, शाम 5 बजे खुलेंगे द्वार
क्या है इतिहास?
कंब रामायण, महाभारत के अष्टम स्कंध और स्कंदपुराण के असुर कांड में जिस शिशु शास्ता का जिक्र है, अय्यप्पा उसी के अवतार माने जाते हैं। उन्हीं का मंदिर अय्यप्पा का मशहूर मंदिर पूणकवन के नाम से विख्यात 18 पहाड़ियों के बीच स्थित है। इस मंदिर को लेकर कई मान्यताएं हैं। माना जाता है कि परशुराम ने अय्यप्पा पूजा के लिए सबरीमाला में मूर्ति स्थापित की थी। गौर करने वाली बात यह है कि कुछ लोग इसे शबरी से भी जोड़कर देखते हैं। सवाल उठता है कि जिस मंदिर का नाम शबरी के नाम से जुड़ा हो वहां महिलाओं के प्रवेश पर रोक क्यों था?
मंदिर में अय्यप्पा के अलावा मालिकापुरत्त अम्मा, गणेश और नागराजा जैसे उप देवताओं की भी मूर्तियां हैं। महिलाओं को प्रवेश से वंचित रखने को लेकर जहां मंदिर की काफी आलोचना हुई, वहीं कुछ मामलों को लेकर तारीफ भी की जाती है। इस मंदिर में न तो जात-पात का कोई बंधन है और न ही अमीर-गरीब के बीच की खाई। यहां प्रवेश करने वाले सभी धर्म और वर्ग के लोग समान हैं।
यहां आने वाले लोगों को दो महीने मांस-मछली और तामसिक प्रवृत्ति वाले खाद्य पदार्थों का त्याग करना पड़ता है। मान्यता है कि अगर कोई भक्त तुलसी या रुद्राक्ष की माला पहनकर व्रत रखता है तो उसकी मुराद पूरी हो जाती है।
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सबरीमाला मामले पर कब क्या हुआ?
- साल 2006 में मंदिर के मुख्य ज्योतिष परपन्नगडी उन्नीकृष्ण ने कहा था कि मंदिर में स्थापित अय्यप्पा अपनी ताकत खो रहे हैं। वह इसलिए नाराज हैं क्योंकि मंदिर में किसी युवा महिला ने प्रवेश नहीं किया है।
- इसके बाद कन्नड़ अभिनेत्री जयमाला ने दावा किया कि उन्होंने गलती से अय्यप्पा की मूर्ति को छुआ और उनकी वजह से वह नाराज हुए। इसलिए अब वह प्रायश्चित करना चाहती हैं। इसके बाद लोगों का इस मुद्दे पर ध्यान गया।
- साल 2006 में राज्य के यंग लॉयर्स असोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की। इसके बावजूद भी मामला 10 साल तक लटका रहा।
यह भी पढ़ें- सबरीमाला मुद्दे पर अब आदिवासियों ने जताया विरोध, कहा अशुद्ध महिलाएं नहीं कर सकतीं मंदिर में प्रवेश
- सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के ट्रस्ट त्रावणकोर देवासम बोर्ड से जवाब मांगा, जिसपर उन्होंने कहा कि भगवान अय्यप्पा ब्रह्मचारी थे इसलिए उन महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है जिन्हें मासिक धर्म होता हो।
- 7 नवंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में है।
- 11 जुलाई, 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला संवैधानिक पीठ के पास भेजने का विचार किया। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
- 2017 में संवैधानिक पीठ के पास मामला भेजा गया। जिसके बाद साल 2018 में पांच जजों की बेंच ने मामले की सुनवाई शुरू की।
- 28 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मंदिर में हर आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दे दी।