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सुप्रीम कोर्ट ने मैसेजिंग दिग्गज व्हाट्सएप को उसकी निजता नीति को लेकर कड़ी फटकार लगाई है। शीर्ष अदालत ने कहा कि उसके पास डाटा प्रोटेक्शन की अथॉरिटी है। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने व्हाट्सएप की वर्ष 2016 की लाइसेंस पॉलिसी के स्वरूप पर सवाल उठाया। पीठ ने कहा कि आखिर कंपनी भारतीय नागरिकों के मुफ्त संवाद करने के अधिकार को कम करके कैसे आंक सकती है।
पीठ ने व्हाट्सएप से कहा, ‘हमारे पास भारत में डाटा प्रोटेक्शन की अथॉरिटी है। आप अपनी नीति की भाषा बदलकर भारतीय कानून का उल्लंघन नहीं कर सकते। हम अपने नागरिकों के मुफ्त संवाद करने के अधिकार को संरक्षण प्रदान करेंगे।’ दरअसल, भारत में डाटा प्रोटेक्शन और निजता के अधिकार को लेकर कोई खास कानून नहीं है।
पीठ ने यह भी कहा, ‘नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना हमारा संवैधानिक दायित्व है। हमारा मानना है कि कोई भी व्यक्ति यह नहीं चाहेगा कि उसका डाटा किसी और से साझा किया जाए।’ पीठ ने व्हाट्सएप से कहा कि आप भारत के डाटा प्रोटेक्शन का अलग पैमाना नहीं रख सकते।
पीठ ने व्हाट्सएप की ओर से पेश वकील से पूछा कि क्या उसने यूरोपीय संघ की अदालत में यह शपथपत्र दिया है कि डाटा किसी तीसरे व्यक्ति को साझा नहीं किया जाएगा। वकील ने जवाब दिया कि अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने इस तरह का एक अंतरिम आदेश दे रखा है और इस अंतरिम आदेश को कंपनी ने चुनौती दी है। इस पर पीठ ने कंपनी से कहा कि आपके द्वारा भारत में भी ऐसा किया जाना चाहिए।
साथ ही पीठ ने कहा कि वह इस पर विचार करेगी कि क्या अंतरिम आदेश पारित कर व्हाट्सएप को कहा जाए कि जब तक शीर्ष अदालत इस मसले का निपटारा नहीं कर लेती तब तक वह कोई डाटा साझा नहीं करेगी। हालांकि पीठ ने कहा कि संविधान पीठ ने आमतौर पर अंतरिम आदेश पारित नहीं करती लेकिन इस पर विचार करेंगे कि क्या इस मामले में पारित किया जा सकता है।
सरकार सुनिश्चित करे, यूजर्स फंसे नहीं ---
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि किसी भी तरीके से 16 करोड़ भारतीय व्हाट्सएप जैसे सेवा प्रदाओं के चंगुल में न फंसे। ये सेवा प्रदाता अपने यूजर्स को फ्री सर्विस उपलब्ध कराते हैं। वहीं सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि वह डाटा संरक्षण पर ऐसा नियामक विकसित करने की प्रक्रिया में है, जिसका पालन करना बाध्यकारी होगा। सरकार ने यह भी कहा कि वह पसंद की स्वतंत्रता और नागरिकों की निजता के अधिकार के लिए प्रतिबद्ध है।
सुप्रीम कोर्ट ने मैसेजिंग दिग्गज व्हाट्सएप को उसकी निजता नीति को लेकर कड़ी फटकार लगाई है। शीर्ष अदालत ने कहा कि उसके पास डाटा प्रोटेक्शन की अथॉरिटी है। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने व्हाट्सएप की वर्ष 2016 की लाइसेंस पॉलिसी के स्वरूप पर सवाल उठाया। पीठ ने कहा कि आखिर कंपनी भारतीय नागरिकों के मुफ्त संवाद करने के अधिकार को कम करके कैसे आंक सकती है।
पीठ ने व्हाट्सएप से कहा, ‘हमारे पास भारत में डाटा प्रोटेक्शन की अथॉरिटी है। आप अपनी नीति की भाषा बदलकर भारतीय कानून का उल्लंघन नहीं कर सकते। हम अपने नागरिकों के मुफ्त संवाद करने के अधिकार को संरक्षण प्रदान करेंगे।’ दरअसल, भारत में डाटा प्रोटेक्शन और निजता के अधिकार को लेकर कोई खास कानून नहीं है।
पीठ ने यह भी कहा, ‘नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना हमारा संवैधानिक दायित्व है। हमारा मानना है कि कोई भी व्यक्ति यह नहीं चाहेगा कि उसका डाटा किसी और से साझा किया जाए।’ पीठ ने व्हाट्सएप से कहा कि आप भारत के डाटा प्रोटेक्शन का अलग पैमाना नहीं रख सकते।
व्हाट्सएप की ओर से शपथपत्र पेश
पीठ ने व्हाट्सएप की ओर से पेश वकील से पूछा कि क्या उसने यूरोपीय संघ की अदालत में यह शपथपत्र दिया है कि डाटा किसी तीसरे व्यक्ति को साझा नहीं किया जाएगा। वकील ने जवाब दिया कि अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने इस तरह का एक अंतरिम आदेश दे रखा है और इस अंतरिम आदेश को कंपनी ने चुनौती दी है। इस पर पीठ ने कंपनी से कहा कि आपके द्वारा भारत में भी ऐसा किया जाना चाहिए।
साथ ही पीठ ने कहा कि वह इस पर विचार करेगी कि क्या अंतरिम आदेश पारित कर व्हाट्सएप को कहा जाए कि जब तक शीर्ष अदालत इस मसले का निपटारा नहीं कर लेती तब तक वह कोई डाटा साझा नहीं करेगी। हालांकि पीठ ने कहा कि संविधान पीठ ने आमतौर पर अंतरिम आदेश पारित नहीं करती लेकिन इस पर विचार करेंगे कि क्या इस मामले में पारित किया जा सकता है।
सरकार सुनिश्चित करे, यूजर्स फंसे नहीं ---
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि किसी भी तरीके से 16 करोड़ भारतीय व्हाट्सएप जैसे सेवा प्रदाओं के चंगुल में न फंसे। ये सेवा प्रदाता अपने यूजर्स को फ्री सर्विस उपलब्ध कराते हैं। वहीं सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि वह डाटा संरक्षण पर ऐसा नियामक विकसित करने की प्रक्रिया में है, जिसका पालन करना बाध्यकारी होगा। सरकार ने यह भी कहा कि वह पसंद की स्वतंत्रता और नागरिकों की निजता के अधिकार के लिए प्रतिबद्ध है।