19 साल पहले न मल्टीस्क्रीन्स वाले सिनेमाघर होते थे और न ही इतने शोज कि जितने लोग भी किसी फिल्म को पहले दिन ही देखना चाहें तो सबको टिकट मिल ही जाए। तो तय हुआ कि गदर एक प्रेमकथा का पहला शो सुबह छह बजे से शुरू होगा। पूरे देश में उस दिन उत्सव का माहौल था। सनी देओल के दीवाने ढोल ताशे लेकर ये फिल्म देखने पहुंचे और साथ में ही लोगों को लगान भी देखनी थी। मैंने ये दोनों फिल्में एक ही दिन नई दिल्ली में देखीं। पहले शीला थिएटर में लगान देखी और फिर वहां से भागकर पहुंचे कनॉट प्लेस के प्लाजा सिनेमाघर, जहां हमारी सीटें बुक होने के बावजूद सिनेमाहॉल के भीतर घुसने तक को जगह नहीं बची थी। जैसे तैसे धक्का मुक्की करते हॉल के भीतर पहुंचे तो वहां सिर्फ भीड़ दिख रही थी, जितने लोग सीटों पर बैठे थे, उतनी ही पब्लिक सिनेमाघर के भीतर खड़े होकर सिनेमा देख रही थी। खड़े होकर फिल्म देखने वाले इन दर्शकों की गिनती तो नहीं ही हुई होगी, लेकिन तब भी फिल्म गदर एक प्रेम कथा ने भारत में सबसे ज्यादा टिकटें बेचने का रिकॉर्ड बना दिया था। 15 जून 2001 को रिलीज हुई गदर एक प्रेम कथा ही हमारे आज के इस बाइस्कोप की फिल्म है।