हिंदी सिनेमा को दुनिया में एक अलग ही पहचान दिलाने वाले निर्माता निर्देशक यश चोपड़ा की एक और रूमानी फिल्म ‘जब तक है जान’ की जयंती पूरी दुनिया अपने अपने हिसाब से मना रही है। किसी को फिल्म में शाहरुख खान और अनुष्का शर्मा का ट्रैक याद आ रहा है तो किसी को कैटरीना कैफ के लिए तेज होती शाहरुख खान की सांसों की गर्माहट याद आ रही है। फिल्म ‘जब तक है जान’ हिंदी सिनेमा के लिए मील का पत्थर इस लिहाज से भी है कि ये यश चोपड़ा की आखिरी फिल्म रही। इस फिल्म के लिए उन्होंने वैसे ही जोशो खरोश के साथ काम किया जैसा जोश लोगों ने उनकी पहली फिल्म ‘धूल का फूल’ में देखा था। यश चोपड़ा ने लोगों को समझाया कि समय के साथ बदलते रहने में ही सिनेमा की भी तरक्की है और इंसान की भी। नए को उन्होंने हमेशा अपनाया और पुराने का सम्मान भी बनाए रखा। बदलाव और परंपरा के बीच एक अनूठा संतुलन यश चोपड़ा के निजी जीवन में भी दिखता है और युवा दर्शकों की पसंद और अपने पारंपरिक प्रशंसकों की थाती को भी उन्होंने इसी सामंजस्य के सहारे कभी खुद से दूर नहीं होने दिया। फिल्म ‘जब तक है जान’ यशराज फिल्म्स के लिए मील का वह पत्थर है जिसके पास आकर यश चोपड़ा की आने वाली कई पीढ़ियां मार्गदर्शन पाती रहेंगी।
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