सुबह सुबह आप इंटरनेट खोलें और गूगल के पेज पर जोहरा सहगल कथक की मुद्रा में खुशनुमा एहसास लिए सामने दिखें तो बस मन कुछ देर के लिए ठिठक जाता है। तकलीफें जोहरा सहगल ने अपने जीवन में बेहिसाब सहीं लेकिन मजाल की कोई फोटो उनका आप पा सकें, गमगीन चेहरे वाला। छोटी सी थीं कि मां गुजर गईं। अम्मी का बड़ा मन था कि जोहरा लाहौर जाकर पढ़े तो अपनी बहन के साथ वह चली गईं क्वीन मेरी कॉलेज में दाखिला लेने। कॉलेज में सख्त पर्दा होता था। तमाम पर्दादारी के बाद भी शादी के बाद बहन की हालत देख जोहरा ने तय किया कि उन्हें पहले अपनी जिंदगी बसानी है फिर देखा जाएगा कि घर बसाना भी है कि नहीं। खैर, हमें तो बातें जोहरा की भी करनी हैं और उनकी फिल्म ‘नीचा नगर’ की भी क्योंकि हमारी आज के बाइस्कोप की फिल्म यही है। 29 सितंबर 1946 को ये फिल्म फ्रांस के मशहूर शहर कान में होने वाले फिल्मों के मेले में दिखाई गई। गांधी टोपी लगाने वाला और चरखा कातने वाला एक हीरो कैसे सर्वहारा समाज के लिए इलाके के सबसे बड़े दबंग से भिड़ जाता है, यही फिल्म की कहानी है।