बाबरी विध्वंस की बरसी छह दिसंबर को इस बार अयोध्या में नई सुबह होगी। मुस्लिम अट्ठाइस साल से चली आ रही तल्खी, गम और गुस्सा भूलकर न काला झंडा लगाएंगे न यौम-ए-गम का आयोजन करेंगे। वे दुकान-कारोबार को भी आम दिनों की तरह संचालित करते नजर आएंगे। उधर, विश्व हिंदू परिषद समेत संत-धर्माचार्यों ने भी विजय और शौर्य दिवस की परंपरा को खारिज कर दिया है। सबका एक ही संदेश है कि अब राजा राम की अयोध्या आपसी सद्भाव का केंद्र बनेगी, न किसी से कोई बैर होगा न संताप। त्रेतायुग जैसी अयोध्या सजाने में जन-जन शिद्दत से कदम ताल करेगा। छह दिसंबर 1992 जेहन में आते ही कभी अयोध्या समेत समूचा विश्व अनहोनी की आशंका से कांप उठता था। इसी दिन बेकाबू लाखों कारसेवकों की भीड़ ने बाबरी ढांचा ढहा दिया था। रक्तपात में आस-पास के मुहल्लों में डेढ़ दर्जन लोगों की जाने गईं और लाखों की संपत्तियां राख हो गईं। प्रतिक्रिया में विश्वभर में मंदिरों-मस्जिदों पर हमले और भीषण दंगे हुए। तभी से यह तिथि दो समुदायों के बीच तल्खी का स्याह इतिहास बन गई थी। मुस्लिम समुदाय घरों-कारोबार, इबादतस्थलों आदि पर काला झंडा लगाकर यौम-ए-गम का इजहार करता था। इस दिन वह न अपनी दुकानें खोलता था, न कारोबार करने को घर से निकलता था। पूरे दिन गम और गुस्से के इजहार में कार्यक्रम होते थे और यह सिलसिला देश भर में चलता था। जबकि विश्व हिंदू परिषद समेत हिंदू संगठनों की ओर से विजय व शौर्य दिवस मनाने के कार्यक्रम होते थे। लेकिन, इस बार माहौल पूरी तरह बदला हुआ है। सरयू अपनी रौ में बह रही हैं, और दोनों समुदाय के लोग एक साथ घूमते-फिरते और चाय पीते हंसी-ठिठोली करते दिख रहे हैं। सरयू घाट से हनुमानगढ़ी, रामलला, कनक भवन, टेढ़ी बाजार मस्जिद, कटरा आदि का इलाका सामान्य है, न फोर्स की खास आमद दरफ्त दिख रही है, न कहीं रोक-टोक व बंदिश।