इसी दिन भगवान कृष्ण महारास रचाना आरम्भ करते हैं। देवी भागवत महापुराण में कहा गया है कि गोपिकाओं के अनुराग को देखते हुए भगवान कृष्ण ने चन्द्र से महारास का संकेत दिया। चन्द्र ने भगवान कृष्ण का संकेत समझते ही अपनी शीतल रश्मियों से प्रकृति को आच्छादित कर दिया। उन्ही किरणों ने भगवान कृष्ण के चहरे पर सुंदर रोली कि तरह लालिमा भर दी ! फिर उनके अनन्य जन्मों के प्यासे बड़े बड़े योगी, मुनि, महर्षि और अन्य भक्त गोपिकाओं के रूप में कृष्ण लीला रूपी महारास ने समाहित हो गए, कृष्ण कि वंशी कि धुन सुनकर अपने अपने कर्मो में लीन सभी गोपियां अपना घर-बार छोड़कर भागती हुईं वहां आ पहुचीं।
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