पेशेवर अपराधियों से भी ज्यादा दुस्साहस दिखाते हुए उसने खुद अपनी गाड़ी में लाश फिरोजाबाद तक ले जाने का फैसला लिया। साढ़े चार घंटे के इस सफर में अवधेश की लाश पिछली सीट पर पड़ी रही और कुछ किलोमीटर आगे दूसरी गाड़ी में चल रहा उसका भाई लगातार मोबाइल पर उसके संपर्क में रहा ताकि कोई खतरा होने पर फौरन उसे आगाह कर सके।