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भारत में महिलाओं की सामाजिक स्थिति में भले ही थोड़ा बहुत सुधार हुआ हो लेकिन स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं में सुधार बहुत कम नजर आता है। शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण बहुत सारी ऐसी बीमारियां हैं जिसको लेकर महिलाएं खुद से लापरवाही करती हैं और शरीर में होने वाले गंभीर लक्षणों को अनदेखा करती हैं। जिसका परिणाम अनेक शारीरिक परेशानियां लेकर आता है और वो तकलीफों से गुजरती हैं। जरूरी है कि इन सारी समस्याओं को नजरअंदाज न किया जाए और स्वास्थ्य से जुड़ी लापरवाहियां न की जाए। ऐसी ही समस्या जो भारत की लगभग हर तीसरी महिला में देखने को मिलती है, वो है पेट के निचले हिस्से में दर्द। ये दर्द पेट के निचले हिस्से से लेकर कूल्हे और जांघों तक होता है। लेकन वो इस दर्द को सामान्य पीरियड का दर्द समझ कर दरकिनार करती हैं। लेकिन ये दर्द गंभीर बीमारी पेल्विक कंजेशन सिंड्रोम के लक्षण हो सकते हैं। जिसका सही इलाज बहुत जरूरी है।
इस तरह के दर्द को महिलाएं पीरियड का सामान्य दर्द समझ कर नजर अंदाज करती हैं। जो कि ठीक नही है क्योंकि लगातार छह महीने से ज्यादा अगर ये दर्द शरीर में बना रहे तो ये पेल्विक कंजेशन सिंड्रोम यानी PCS का रूप ले लेता है। जिसमें खड़े होने पर भी बेहद तेज दर्द होता है। इस बीमारी में जांघ, नितंब और योनि क्षेत्र की नसों के सामान्य से ज्यादा खिंच जाने की वजह से असहनीय दर्द होना शुरू हो जाता है। ज्यादातर 20 से 45 आयु वर्ग की महिलाएं इसकी शिकार होती हैं जो महिलाएं हाल ही में मां बनती हैं, युवा होती हैं,या कई बार मां बन चुकी होती हैं, उन्हें यह समस्या अधिक होती है क्योंकि इसी उम्र में वह संकेतों को नजर अंदाज कर देती हैं, नतीजा समस्या बढ़ जाती है। इस बीमारी का कारण होता है हार्मोनल और शरीर की बनावट में गड़बड़ी।
गर्भावस्था के दौरान अधिकतर महिलाओं में होने वाले हार्मोंस में बदलाव और वजन बढ़ने के कारण कूल्हे के आसपास के हिस्सों में बदलाव आता है। गर्भाशय की नसों पर दबाव बढ़ने के कारण ये कमजोर होकर फैल जाती हैं। जिसकी वजह से वॉल्व बंद नही होते और रक्त वापस शिराओं में आ जाता है। जिसकी वजह से पेल्विक एरिया में खून के दबाव के कारण दर्द बढ़ जाता है। इसके इलाज के लिए किसी तरह के ऑपरेशन की जरूरत नहीं होती है। बस खराब नसों को बंद कर दिया जाता है। जिससे कि उनमें रक्त जमा न हो। ये किसी भी तरह की सर्जरी से आसान प्रक्रिया है और इसके इलाज के बाद ये पूरी तरह से ठीक हो जाता है। लेकिन महिलाओं को इस बारे में पूरी जानकारी नहीं होती और वो इस कष्ट को सहती रहती हैं।
भारत में महिलाओं की सामाजिक स्थिति में भले ही थोड़ा बहुत सुधार हुआ हो लेकिन स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं में सुधार बहुत कम नजर आता है। शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण बहुत सारी ऐसी बीमारियां हैं जिसको लेकर महिलाएं खुद से लापरवाही करती हैं और शरीर में होने वाले गंभीर लक्षणों को अनदेखा करती हैं। जिसका परिणाम अनेक शारीरिक परेशानियां लेकर आता है और वो तकलीफों से गुजरती हैं। जरूरी है कि इन सारी समस्याओं को नजरअंदाज न किया जाए और स्वास्थ्य से जुड़ी लापरवाहियां न की जाए। ऐसी ही समस्या जो भारत की लगभग हर तीसरी महिला में देखने को मिलती है, वो है पेट के निचले हिस्से में दर्द। ये दर्द पेट के निचले हिस्से से लेकर कूल्हे और जांघों तक होता है। लेकन वो इस दर्द को सामान्य पीरियड का दर्द समझ कर दरकिनार करती हैं। लेकिन ये दर्द गंभीर बीमारी पेल्विक कंजेशन सिंड्रोम के लक्षण हो सकते हैं। जिसका सही इलाज बहुत जरूरी है।
इस तरह के दर्द को महिलाएं पीरियड का सामान्य दर्द समझ कर नजर अंदाज करती हैं। जो कि ठीक नही है क्योंकि लगातार छह महीने से ज्यादा अगर ये दर्द शरीर में बना रहे तो ये पेल्विक कंजेशन सिंड्रोम यानी PCS का रूप ले लेता है। जिसमें खड़े होने पर भी बेहद तेज दर्द होता है। इस बीमारी में जांघ, नितंब और योनि क्षेत्र की नसों के सामान्य से ज्यादा खिंच जाने की वजह से असहनीय दर्द होना शुरू हो जाता है। ज्यादातर 20 से 45 आयु वर्ग की महिलाएं इसकी शिकार होती हैं जो महिलाएं हाल ही में मां बनती हैं, युवा होती हैं,या कई बार मां बन चुकी होती हैं, उन्हें यह समस्या अधिक होती है क्योंकि इसी उम्र में वह संकेतों को नजर अंदाज कर देती हैं, नतीजा समस्या बढ़ जाती है। इस बीमारी का कारण होता है हार्मोनल और शरीर की बनावट में गड़बड़ी।
गर्भावस्था के दौरान अधिकतर महिलाओं में होने वाले हार्मोंस में बदलाव और वजन बढ़ने के कारण कूल्हे के आसपास के हिस्सों में बदलाव आता है। गर्भाशय की नसों पर दबाव बढ़ने के कारण ये कमजोर होकर फैल जाती हैं। जिसकी वजह से वॉल्व बंद नही होते और रक्त वापस शिराओं में आ जाता है। जिसकी वजह से पेल्विक एरिया में खून के दबाव के कारण दर्द बढ़ जाता है। इसके इलाज के लिए किसी तरह के ऑपरेशन की जरूरत नहीं होती है। बस खराब नसों को बंद कर दिया जाता है। जिससे कि उनमें रक्त जमा न हो। ये किसी भी तरह की सर्जरी से आसान प्रक्रिया है और इसके इलाज के बाद ये पूरी तरह से ठीक हो जाता है। लेकिन महिलाओं को इस बारे में पूरी जानकारी नहीं होती और वो इस कष्ट को सहती रहती हैं।