पढ़ें अमर उजाला ई-पेपर
कहीं भी, कभी भी।
*Yearly subscription for just ₹299 Limited Period Offer. HURRY UP!
पद्म भूषण महाशय धर्मपाल गुलाटी वर्ष 2012 में हिमाचल के सोलन जिले के झाड़माजरी में अपने दामाद के सीमेंट बैग के थान की फैक्ट्री के उदघाटन अवसर पर बद्दी आए थे। उनकी आने की खबर सुनते ही बद्दी के लोग दुकान पर एकत्रित हो गए थे। इस दौरान उन्होंने हर माह प्रकाशित होने वाली अपनी किताब की कई लोगों को मुफ्त में सदस्यता दी थी। जो आज तक भी सुचारू रूप से आ रही है।
दुकान पर बैठ कर उन्होंने सबसे एक-एक बादाम उठाया और उसे चबाया और साथ बैठे लोगों से पूछा कि बादाम टूटने की आवाज आई। जिस पर सभी लोगों ने हां कहा, तो उन्होंने कहा कि यह मेरे दांत असली हैं। नकली नहीं हैं और फिर खूब ठहाके लगाकर हंसे। गौरव मित्तल ने कहा कि गुलाटी जितने अच्छे व्यवसायी थे उससे भी अच्छे एक इंसान थे। लाज मोटर्स कंपनी के एमडी कृष्ण कुमार ने बताया कि देश के विभाजन के बाद उनका पुराना काम छूट गया था और उनके पास मात्र 1500 रुपये थे।
दिल्ली आने के बाद उन्होंने इन पैसों में से 650 रुपये में तांगा खरीदा और इस तांगे को वह रेलवे स्टेशन से लेकर कुतुब रोड तक चलाते थे। लेकिन बाद में यह तांगा अपने भाई को दे दिया और स्वयं करोल बाग के अजमल खां रोड पर एक छोटी सी दुकान लेकर मसालों का कारोबार शुरू किया जो आज एमडीएच के नाम से मशहूर है। सामाजिक सेवा में बढ़चढ़ कर भाग लेने पर राष्ट्रपति ने उन्हें पद्म भूषण अवार्ड से सम्मानित किया। उनके निधन पर बीबीएन में उनके समर्थकों में मायूसी छाई हुई है।
पद्म भूषण महाशय धर्मपाल गुलाटी वर्ष 2012 में हिमाचल के सोलन जिले के झाड़माजरी में अपने दामाद के सीमेंट बैग के थान की फैक्ट्री के उदघाटन अवसर पर बद्दी आए थे। उनकी आने की खबर सुनते ही बद्दी के लोग दुकान पर एकत्रित हो गए थे। इस दौरान उन्होंने हर माह प्रकाशित होने वाली अपनी किताब की कई लोगों को मुफ्त में सदस्यता दी थी। जो आज तक भी सुचारू रूप से आ रही है।
दुकान पर बैठ कर उन्होंने सबसे एक-एक बादाम उठाया और उसे चबाया और साथ बैठे लोगों से पूछा कि बादाम टूटने की आवाज आई। जिस पर सभी लोगों ने हां कहा, तो उन्होंने कहा कि यह मेरे दांत असली हैं। नकली नहीं हैं और फिर खूब ठहाके लगाकर हंसे। गौरव मित्तल ने कहा कि गुलाटी जितने अच्छे व्यवसायी थे उससे भी अच्छे एक इंसान थे। लाज मोटर्स कंपनी के एमडी कृष्ण कुमार ने बताया कि देश के विभाजन के बाद उनका पुराना काम छूट गया था और उनके पास मात्र 1500 रुपये थे।
दिल्ली आने के बाद उन्होंने इन पैसों में से 650 रुपये में तांगा खरीदा और इस तांगे को वह रेलवे स्टेशन से लेकर कुतुब रोड तक चलाते थे। लेकिन बाद में यह तांगा अपने भाई को दे दिया और स्वयं करोल बाग के अजमल खां रोड पर एक छोटी सी दुकान लेकर मसालों का कारोबार शुरू किया जो आज एमडीएच के नाम से मशहूर है। सामाजिक सेवा में बढ़चढ़ कर भाग लेने पर राष्ट्रपति ने उन्हें पद्म भूषण अवार्ड से सम्मानित किया। उनके निधन पर बीबीएन में उनके समर्थकों में मायूसी छाई हुई है।