नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, हर साल 24 नंवबर को गुरु तेगबहादुर जी के शहीदी दिवस के रुप में याद किया जाता है।
- फोटो : सोशल मीडिया
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आज गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस मनाया जा रहा है। नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, हर साल 24 नंवबर को गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी दिवस के रुप में याद किया जाता है। गुरु तेग बहादुर सिख धर्म के नौवें गुरु थे। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था। वे प्रेम, त्याग और बलिदान के सर्वोच्च प्रतीक हैं।
पंजाब के अमृतसर में हुआ था जन्म
विश्व इतिहास में धर्म और मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय रहा है। गुरु तेग बहादुर का जन्म पंजाब के अमृतसर में गुरु हरगोबिन्द साहिब जी के घर हुआ था। बचपन में उनका नाम त्यागमल था। वे बाल्यकाल से ही धार्मिक, निर्भीक, विचारवान और दयालु स्वभाव के थे।
इस्लाम को कबूलने से किया था मना
सन् 1675 में धर्म की रक्षा के लिए गुरु तेगबहादुर ने अपना बलिदान दिया था। मुगल बादशाह औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर जी को मौत की सजा सुनाई थी क्योंकि गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम धर्म को अपनाने से इंकार कर दिया था। इसके बाद मुगल बादशाह के आदेश पर सबके सामने गुरु जी का सिर कलम कर दिया गया था।
दिल्ली में स्थित है उनका शहीद स्थल
दिल्ली स्थित गुरुद्वारा शीश गंज साहिब और गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उनके सर्वोच्च बलिदान का प्रतीक स्थल हैं। दरअसल, गुरु तेगबहादुर की याद में उनके शहीदी स्थल पर जो गुरुद्वारा बना है, उसे गुरुद्वारा शीश गंज साहिब के नाम से जाना जाता है।
निर्भय आचरण और धर्म के प्रति अडिगता के सर्वोच्च उदाहरण थे गुरु जी
यह गुरुजी के निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था। गुरुजी मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे। गुरु जी ने धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए कई जगहों की यात्राएं की।
सार
नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, हर साल 24 नंवबर को गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी दिवस के रुप में याद किया जाता है। गुरु तेग बहादुर सिख धर्म के नौवें गुरु थे। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था।
विस्तार
आज गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी दिवस मनाया जा रहा है। नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, हर साल 24 नंवबर को गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी दिवस के रुप में याद किया जाता है। गुरु तेग बहादुर सिख धर्म के नौवें गुरु थे। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था। वे प्रेम, त्याग और बलिदान के सर्वोच्च प्रतीक हैं।
पंजाब के अमृतसर में हुआ था जन्म
विश्व इतिहास में धर्म और मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय रहा है। गुरु तेग बहादुर का जन्म पंजाब के अमृतसर में गुरु हरगोबिन्द साहिब जी के घर हुआ था। बचपन में उनका नाम त्यागमल था। वे बाल्यकाल से ही धार्मिक, निर्भीक, विचारवान और दयालु स्वभाव के थे।
इस्लाम को कबूलने से किया था मना
सन् 1675 में धर्म की रक्षा के लिए गुरु तेगबहादुर ने अपना बलिदान दिया था। मुगल बादशाह औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर जी को मौत की सजा सुनाई थी क्योंकि गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम धर्म को अपनाने से इंकार कर दिया था। इसके बाद मुगल बादशाह के आदेश पर सबके सामने गुरु जी का सिर कलम कर दिया गया था।
दिल्ली में स्थित है उनका शहीद स्थल
दिल्ली स्थित गुरुद्वारा शीश गंज साहिब और गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब उनके सर्वोच्च बलिदान का प्रतीक स्थल हैं। दरअसल, गुरु तेगबहादुर की याद में उनके शहीदी स्थल पर जो गुरुद्वारा बना है, उसे गुरुद्वारा शीश गंज साहिब के नाम से जाना जाता है।
निर्भय आचरण और धर्म के प्रति अडिगता के सर्वोच्च उदाहरण थे गुरु जी
यह गुरुजी के निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था। गुरुजी मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतंत्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रांतिकारी युग पुरुष थे। गुरु जी ने धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए कई जगहों की यात्राएं की।